आदिकाल से महिलाओं के लिए कई कठिनाईयों का कारण बन रही माहवारी के दौरान इनके कितने उत्पीड़न होते थे यह किसी को बताने की आवश्यकता नहीं है। इस मुददे पर जागरूकता लाने हेतु फिल्म अभिनेता अक्षय कुमार फिल्म भी बना चुके हैं। लेकिन अब जो बालिकाओं में जागरूकता इस विषय को लेकर आ रही है उसे देखकर यह कहा जा सकता है कि महिलाओं को इस दौरान सामाजिक और अन्य रूप से होने वाली परेशानियों से अब राहत मिलेगी। बीते दिवस मेरठ के तेजगढ़ी चौराहे से सीसीएसयू तक इस बारे में छात्राओं द्वारा एसबीआई फाउंडेशन और सच्ची सहेली व नया सवेरा के पदाधिकारियों के सहयोग से बेटियों ने जागरूकता रैली निकाली और माहवारी से होने वाली समस्याओं व पैड के उपयोग से होने वाले फायदों को बताया। इस बारे में विवि के नेताजी सुभाषचंद्र बोस सभागार में लघु नाटक का भी प्रस्तुतिकरण किया गया। जिसमें छात्राओं ने सरकार से मांग की कि सभी प्राइवेट व सरकारी स्कूलों में पीरियड रूम बनाया जाए जिससे बालिकाओं को आराम और सम्मान दोनों मिले। इन तीनों आयोजक संस्थाओं के पदाधिकारियों के रूप में सच्ची सहेली की संस्थापिका डॉ शोभी सिंह, एसबीआई के एमडी संजय प्रकाश व एसडीएम सदर दीक्षा जोशी ने भी अपने विचार रखे। वक्ताओं ने आग्रह किया कि प्राकृतिक बदलावों को समझना होगा। बेटे भी शरीर में होने वाले प्राकृतिक बदलावों को समझे।
75 स्कूलों की लगभग एक हजार छात्राओं ने खुलकर अपनी बात रखी। नारे लगाए अब पता चलने पर माहवारी शर्म की नहीं गर्व की बात है। रैली में शिक्षकों व समाजसेवियों का भी योगदान रहा। अंतरराष्ट्रीय बालिका दिवस के अवसर पर निकली यह जागरूकता रैली सामाजिक बदलावों का कारण बनेगी। इसके आयोजक और भाग लेने वाली छात्राओं को बधाई दी जानी चाहिए क्योंकि माहवारी के दौरान महिला रसोई में नहीं जा सकती। यह भी सुनने को मिला कि वह किसी को छू नहीं सकती और अलग कमरे में रहेगी। कुछ जगह तो गांवों के बाहर कमरे बना दिए जाते थे और वहां माहवारी काल का समय गुजारना होता था। ऐसी रैलियों से समाज को सीधे जुड़ने का मौका मिलेगा। मुझे लगता है कि प्राइवेट व सरकारी स्कूलों में बालिकाओं के लिए अलग से कमरे बनने चाहिए जहां पैड आदि उपलब्ध हो। बेटियों द्वारा दिया गया नारा बेडियों को तोड़ने के लिए इस कार्यक्रम से समाज में नया सवेरा आएगा और गंदा कपड़ा और अन्य माध्यम उपयोग करने से जो बीमारियां बढ़ती थी उनसे भी निजात मिलेगी। आज दुनिया में बेटियां कामयाबी का झंडा फहरा रही हैं। हर क्षेत्र में भागीदारी की ओर बढ़ रही हैं। पिछले पांच दशक में देखा कि माहवारी कहीं भी हो सकती है इसलिए सरकार मल्टीनेशनल कंपनियों के कार्यालय में भी ऐसी व्यवस्था कराए कि माहवारी के दौरान काम करने वाली महिलाओं को परेशानी ना हो। टीवी पर दिखाए जाने वाले कुछ विज्ञापनों में माहवारी से ग्रस्त महिलाओं का मनोबल बढ़ाने और उन्हें इस दौरान काम करने के लिए प्रेरित करते हैं। इसलिए यह कह सकता हूं कि माहवारी को अभिशाप नहीं समझना होगा। जो बच्चियां आवाज उठा रही है यह बात सही भी है कि खबर पढ़ने सुनने को मिलती है कि बच्ची को माहवारी शुरू होने पर परिजनों ने जश्न मनाया क्योंकि उनका मानना है कि यह भी व्यवस्थाओं का एक अंग है और उन्हें यह पता चलता कि उनकी बहन बेटी बड़ी हो गई है। जागरूकता रैली में शामिल होने वाली छात्राएं और पदाधिकारी बधाई के पात्र हैं।
(प्रस्तुतिः- रवि कुमार बिश्नोई संपादक दैनिक केसर खुशबू टाइम्स मेरठ)
माहवारी पैड जागरूक यात्रा सराहनीय प्रयास!
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