छावनी क्षेत्र के थाना सदर बाजार के अंतर्गत योगेन्द्र हाॅट के सामने हुआ यह अवैध निर्माण इस बात का गवाह है की छावनी परिषद के अवैध निर्माण रोकने से सबंध अधिकारियों की मिली भगत से हुआ है यह अवैध निर्माण
मेरठ 23 नवंबर। प्रदेश के शहरों, देहातों, कस्बों व गांवों में हो रहे अवैध निर्माणों, अतिक्रमणों से आम नागरिकों को होने वाली परेशानी एवं सरकार की निर्माण नीति के होने वाले उल्लंघन से कोई भी अनजान नहीं हैं। इसके लिये जिम्मेदार कौन है। यह बताने किसी के लिये आवश्यक नहीं। क्योंकि सब जानते हैं कि उपर दिये गए विभागों में अवैध निर्माण और अतिक्रमण रोकने से संबंध अधिकारियों की मिलीभगत से यह सब हो रहा है। और इसकी एवज मंे नागरिकों का कहना है कि एक एक अधिकारी एक साल में 5 व 10 लाख से लेकर कई करोड़ रूपये कमाता है। क्योंकि मिलीभगत के चलते होने वाले अवैध निर्माण और अतिक्रमण नाले और नालियांें तथा खेतों के सरकारी रास्ते कब्जाने के साथ साथ सरकारी जमीन भी माले मुफ्त दिले ए रहम वाली कहावत को चरितार्थ करते हुए इनके द्वारा जमीने घिरवा देती हैं।
आज सरकार, शासन, प्रशासनिक अधिकारियों के समक्ष एक समस्या के रूप में और नागरिकों के लिये जान का बवाल बन रही जाम की समस्या के लिये केाई ओर नहीं । उपर दिये गए विभागों के अधिकारी सीधे सीधे जिम्मेदार है। ओर हडडी के चक्कर में कटरा कटवाने की कहावत को चरितार्थ करते हुए कुछ लाभ के लिये इनके द्वारा अपनी और अपनी शह पर निर्माण करने वाले जान बचाने के लिये उन्हे नोटिस देकर या सील लगाकर एक अदालती कार्रवाई शुरू करा दी जाती हैं जिसमे इन विभागों को विभिन्न टैक्सों के रूप में मिलने वाले राजस्व का पैसा मुकदमेबाजी में लगना शुरू हो जाता है और यह दोनों मिलकर चैनकी बंसी बजाते हैं।
शहरों में कितने ही निर्माण ऐसे मिल जाएंगे जिन पर विभाग की फाईल में सील लगी होगी मगर मौके पर भव्य शोरूम ओैर दुकान चल रही होगी। इतना ही नहीं अवैध निर्माण कर्ता को बचाने के लिये विभाग के जिम्मेदार अधिकारी ऐड़ी से चोटी तक का जोर लगाते हुए मामले को कागजी चक्रव्यू में ऐसे फंसाते है जो साले साल अदालत में चलता रहे। जनता की कमाई इस पर खर्च होती रहे और यह अधिकारी अपना स्थानातंरण कराकर दूसरी जगह जाकर अपनी जेब भरते हैं। जनता के इस कथन से मैं भी सहमत हूं कि इन विभाग के अधिकारियों द्वारा अवैध निर्माण करने और अतिक्रमण हटाने के लिये मांगी जाने वाली पुलिस फोर्स इन्हे बिल्कुल नहीं दी जानी चाहिये और फोर्स के लिये पत्र लिखने वाले अधिकारियों से यह भी पूछा जाए कि जो निर्माण ढहाने के लिये तुम फोर्स मांग रहे हो उसके लिये जिम्मेदार अधिकारियों के खिलाफ क्या कार्रवाई की तथा तुम्हारी तैनाती के बाद तो तुम्हारे क्षेत्र में अतिक्रमण व निर्माण तो शुरू नहीं हुआ। पाठकों को स्मरण होगा कि आए दिन अखबारों में इन विभागों के अधिकारियों द्वारा खबर छपवाई जाती है कि इतने अवैध निर्माण तोड़ने थे मगर फोर्स नहंी मिली। इनके बारे में जनता का कहना है कि यह सब पेशबंदी और अपनी जान बचाने के लिये इनके द्वारा किया जाता है। क्योंकि आए दिन समाचार पत्रों में नए नए अवैध निर्माण शुरू होने की खबरें प्राधिकरण, छावनी परिषद, आवास विकास, नगर निगम के क्षेत्र की पढने को मिलती है। उन्हे तो यह रोकते नहीं। मगर फोर्स न मिलने का ठिकरा प्रशासन और पुलिस के अधिकारियों पर फोड़ कर उन्हे बदनाम करने और अपने आप को सही दिखाने के लिये इनके द्वारा यह प्रयास किये जाते है।
प्रमुख सचिव गृह डीजीपी, प्रमुख सचिव आवास, डायरेक्टर जनरल छावनी बोर्ड अगर चाहे तो एक कमेटी गठित कर जांच कराए। तो यह स्पष्ट हो जाएगा कि 100 में 98 प्रतिशत निर्माण इन विभागों के अधिकारियों व अवैध निर्माण रोकने के संबंध अधिकारियों की शह पर हो रहे हैं और अपने आप केा बचाने के लिये यह फोर्स मांगकर पुलिस ओर प्रशासन के अधिकारियों का समय बर्बाद करते हैं। क्योंकि केई मौकों पर देखने को मिला फोर्स तो मिल गई अधिकारी पहुंच गए। लेकिन अवैध निर्माण तोड़ने के लिये तैनात किये जाने वाले बुल्डोजर व गाड़ियां खराब की बात कहकर अभियान को खत्म करा दिया जाता है। और आखिर मौके पर पहुंचकर ही इनकी गाड़ियां खराब क्यों होती है। यह भी सोचने का विषय है।