मेरठ 23 दिसंबर। नागरिकों में मौखिक रूप से होने वाली चर्चाओं में कितनी सत्यता है यह तो मूकबधिर विद्यालयों की संचालनकर्ता समिति द्वारा इनमे मनमानी करने के साथ साथ शिक्षको और कर्मचारियों का उत्पीड़न तथा बच्चों को वो सभी सुविधाएं जो जनता और सरकार द्वारा उन्हे उपलब्ध करायी जाती है वो नहीं दी जाती है। में कितनी सत्यता है यह तो इनके संचालक ही जान सकते हैं या फिर जांच उपरांत को निष्कर्ष निकलकर ही सामने आ सकता है।
फिलहाल एक चर्चा जोर शोर पर चल रही है कि एक मूक बधिर विद्यालय की संचालन समिति के पदाधिकारियों द्वारा प्रधानाचार्या से मिलीभगत कर उसमे कार्यरत शिक्षकों, कर्मचारियों, का आर्थिक और मानसिक शोषण किया जा रहा है।
इन सूत्रों का कहना है कि प्रबंध समिति और प्रधानाचार्य हस्ताक्षर तो ज्यादा रूपयों के वाउचर पर करा लेते हैं और तनख्वाह के रूप में मात्र 3 से 4 हजार रूपये दिये जाते हैं। स्कूल के संचालक और प्रबंध समिति के किसी पदाधिकारी से उनके मोबाइल नंबर प्राप्त न होने की वजह से वार्ता नहीं हो सकी। और डरे हुए शिक्षक व कर्मचारी मिलने को भी तैयार नहीं है। इसलिये सही स्थिति का ज्ञान उक्त लाईन लिखे जाने तक नहंी हो सका।
मगर दबे शब्दों में उड़ते हुए सूत्रों से यह जरूर पता चला कि जो तथ्य उभरकर आ रहे हैं वो लगभग सही हैं अगर अचानक किसी उच्च अधिकारी से जांच करायी जाए तो काफी कुछ स्थ्ािित स्पष्ट हो सकती है।
जो शिक्षक और कर्मचारियों के मानसिक और आर्थिक उत्पीड़न हो रहा है उस पर भी रोक व बच्चों को सरकार व जनता द्वारा उपलब्ध करायी जाने वाली सुविधाएं भी मिलना शुरू हो सकती है इसलिये जनहित में जिलाधिकारी, किसी प्रशासनिक अधिकारी से मूक बाधिर विद्यालय की जांच कराए तो सबकुछ सामने आ सकता है।
चर्चाः मानसिक व आर्थिक उत्पीड़न का शिकार हो रहे मूकबधिर विद्यालय के शिक्षक व कर्मचारी
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