Monday, December 23

पीएम और सीएम साहब दे ध्यान! कुत्ते और बंदर सहित हिंसक जानवरों के आतंक से आम आदमी को राहत दिलाने, लापरवाह अफसरों के विरूद्ध हो कार्रवाई

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कुत्तों का आतंक देश में बढ़ता ही जा रहा है। तथा उप्र पश्चिम बंगाल कर्नाटक राजस्थान और उड़ीसा मे खबरों के अनुसार के लोग इनसे ज्यादा आतंकित है। अगर बात यूपी की करे तो एक जानकारी से पता चलता है कि यूपी में नोएडा मेरठ तथा देश में दिल्ली और हैदराबाद तथा तेलगांना में भी इनके आतंक की चर्चा बढ़ती ही जा रही है। एक आंकड़े के अनुसार हर साल 5 हजार से ज्यादा की जान ले रहे है आवारा कुत्ते। इसके अतिरिक्त खबरों से पता चलता है कि देशभर में कुत्तों के काटने के चार साल में हुए मुकदमों में 2019 में 7277523, 2020 में 463393, 2021 में 1701133, 2022 में 1916863 मामले दर्ज होने की चर्चा सुनाई देती है। अब स्थिति यह हो गई है। कि देश के गांव देहातों से लेकर राजधानी दिल्ली और पॉश कालोनियों में भी गली मौहल्लों के साथ इनका भय बढ़ता ही जा रहा है।
मेरठ की तहसील सरधना के रूहासा गांव में शीशपाल नामक वृद्ध को घायल करने के बाद भी कुत्ता खुला घुम रहा है और आरोपित मालिक अभी भी गिरफ्तार नहीं हो पाया है। तो दूसरी ओर 130 साल पुरानी हर वर्ष सौ करोड़ का कारोबार करने वाली वाघ बकरी चाय के व्यवसाय को दो सौ करोड़ तक पहुंचाने वाले इसके मालिक पराग देसाई को 15 अक्टूबर को सुबह अनावली स्कान रोड़ पर टहलने के दौरान आवारा कुत्तों ने हमला किया। और गत दिवस इलाज के दौरान इनकी मौत हो गई। 60 देशों में चाय का व्यवसाय करने वाली इस प्रमुख चाय कंपनी पर हमला करने वाले कुत्तों और उनके मालिकों के विरूद्ध भी अभी तक कोई कार्रवाई होने की खबर सुनाई नहीं दे रही है। सवाल यह उठता है कि आवारा कुत्तों की भरमार अब हर जगह नजर आ रही है। ऐतिहासिक जनपद मेरठ की पॉश कालोनियों व गली मौहल्लों में आवारा कुत्तों की संख्या तो बढ़ी नजर आती ही है जो प्रतिबंधित कुत्ते है वो भी कुछ पूर्व अधिकारियों और बड़े लोगों ने पाल रखे है। पिटबुल लिवस्की आदि नस्ल के कुत्तों को बिना लाईसेंस के पालने पर प्रतिबंध है। लेकिन और इनकी सूचना भी सोशल मीडिया पर साजा हो रही है। जनपद के 12 थानों पल्लवपुरम शीलकुंज सरधना सरूरपुर आदि 12 थानों में मुकदमें भी दर्ज हो चुके है लेकिन जिम्मेदार अधिकारियों के कानों पर जूं क्यों नहीं रेग रही और उनकी आंखे क्यों नहीं खुल रही यह विषय चर्चाओं में है। अब कुछ लोगो में मौखिक रूप से यह बात भी सुनने को मिलने लगी है कि लगता है कि कुत्ता बंदर आदि हिंसक जानवरों से आप को और अपने बच्चों को बचाने के लिए गांधीवादी तरीके से धरना प्रदर्शन आदि का रास्ता अपनाना पड़ेगा क्योंकि आये दिन कुत्तों के हमले में घायल और मरने वालों की खबरे सुनने और पढ़ने को मिलती है। लेकिन उस हिसाब से कार्रवाई नहीं हो पा रही है। और अपनों को खोने का दुख वो ही व्यक्ति जान सकता है जो पीड़ित हो।
इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि मुख बधिर जानवरों चाहे वो किसी भी नस्ल का क्यों न हो और उसे किसी भी नाम से पुकारा जाता हो उसे भी शांति से जीने का अधिकार है। और हर व्यक्ति को इनकी सुविधा अपने हिसाब से ध्यान में रखनी चाहिए। लेकिन इस बात से लोगों में भारी रोष है। कि जब हिंसक या हमलावर जानवरों को रोकने के लिए कोई पीड़ित सख्ती करता है तो इनकी सुरक्षा की बात करने वाली संस्थाओं के लोग सामने आ खड़े होते है और वन विभाग भी तत्पर कार्रवाई करता है। लेकिन जब इन्हें पकड़ने की बात आती है तो ये सब चुप्पी साध जाते है। अभी पिछले दिनों बैंगलोर में कनड रियल्टी शो के प्रतिभागी को वन विभाग के अधिकारियों ने इसलिए गिरफ्तार कर लिया कि उसने बाघ के नाखून से तैयार पेडेंट गले में पहन रखा था। बताते चले कि पीड़ित ने यह ताबिज 20 हजार रूपये में खरीदा था। लेकिन वन विभाग ने बिना कोई कार्रवाई विक्रेता के खिलाफ किये वरथूर संतोष को गिरफ्तार कर लिया।
माननीय प्रधानमंत्री जी और मुख्यमंत्री जी हिंसक जानवरों की कार्यप्रणाली अब देशभर के नागरिकों के लिए एक बड़ी समस्या बनती जा रही है और इनसे पीड़ितों की संख्या में आये दिन इजाफा हो रहा है। आपसे आग्रह है कि जिस प्रकार से प्राथमिकता के आधार पर आपकी सरकार और सहयोगी अन्य समस्याओं का समाधान कर और करा रहे है उसी हिसाब से जानवरों कुत्ते बंदर आदि के आतंक से इंसानो को भी छुटकारा दिलाने के लिए कार्रवाई करने के साथ ही जनपदों में इनसे संबंध तैनात अफसरों के विरूद्ध अपनी जिम्मेदारी पूरी न किये जाने पर की जाए सख्त कार्रवाई। इस मामले में अगर आप चाहे तो देश के किसी भी एक स्थान पर या सभी प्रदेशों अथवा जनपदों में खाली उपयोग में ना आने वाली जमीनों पर इनके लिए वन आदि विकसित कर उसमें बाड़ लगाकर पकड़े हुए जानवर वहां छोड़े जाए। और इनकी रोज की आवश्यकताओं की जिम्मेदारी के लिए उन अफसरों को तैनात किया जाए जिन्हें इन्हें पकड़ने की जिम्मेदारी सौंपी गई है।

(जनहित में प्रस्तुतिः अंकित बिश्नोई पूर्व सदस्य मजीठिया बोर्ड यूपी व संपादक)

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