होश में आओ खालिस्तानी-पृथक कश्मीर चाहने वालों अथवा समय आ गया है कुचल डालने का नापाक इरादों को अथवा देशद्रोहियों की अब खैर नहीं :आर.के. सिन्हा

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प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की हालिया सफल लंदन यात्रा के दौरान पृथक खालिस्तान और कश्मीर का सपना देखने वाले कुछ मुट्ठीभर गुमराह लोग नारेबाजी करते पाए गए। इन्होंने भारतीय तिरंगे का भी अपमान-अनादर किया। वैसे, ये गिनती में बहुत थोड़े में थे। पर नारेबाजी कर रहे थे। इन्हें नियंत्रित करने के लिए पुलिस की तो जरुरत तक नहीं पड़ी I इन्हें तो भारत समर्थकों की भारी भीड़ ने ही दौड़ा-दौड़ा कर खदेड़ दिया I ये चिर असंतुष्ट तत्व हैं I इनका कोई इलाज भी नहीं है I ये लातों के भुत बातों से नहीं, भरपेट पिटाई से ही संतुष्ट होते हैंI इन्होंने तिरंगे का अपमान करके सारे देश को मानो चुनौती देने की कोशिश की है। ये भारत की एकता और अखंडता को ललकारने की असफल कोशिश कर रहे हैं। यह सवा सौ करोड़ भारतीयों का देश कभी स्वीकार नहीं करेगा। आपका किसी व्यक्ति विशेष से विरोध हो सकता है। आप उसके खिलाफ आंदोलन या प्रदर्शन करने को स्वतंत्र हैं। यहाँ तक तो लोकतंत्र में हर नागरिक को अनुमति हैI पर आप तिरंगे का अपमान नहीं कर सकते। ये 125 करोड़ भारतीयों का अपमान है। तिरंगे में हरेक हिन्दुस्तानी की जान बसती है।

ये सिरफिरे पागल्नुमा लोग यदि इतिहास के पन्नों को खंगाल लेते तो ये काल्पनिक खालिस्तान या पृथक कश्मीर के हक में समर्थन करने की सोचते तक नहीं । पंजाब में खालिस्तान आंदोलन के उस अंधेरे दौर से देश को निकले अब एक लंबा अरसा बीत चुका है। पंजाब में सब ओर अमन-चैन का माहौल है। पर उस दौर में खालिस्तानी आतंकियों ने हजारों बेगुनाह लोगों को अपनी गोलियों से बिना वजह छलनी कर डाला था। हजारों बच्चों को अनाथ और हजारों विधवाओं को बेसहारा छोड़ दिया थाI सिरफिरे खालिस्तानियों ने उन्हें सरहद पार से समर्थन मिल रहा था। लेकिन, जब देश ने उन्हें कुचलने का मन बनाया तबब वे कहीं के ना रहे। कुछ बचे-खुचे थे वे दुनिया के कुछ देशों में जाकर छिप गए। उनमें से कुछ खालिस्तानी तत्व अभी भी ब्रिटेन और कनाडा में बच रहें हैं।

कुचले जाएंगे खालिस्तानी

कनाडा में अभी भी खालिस्तानी तत्व सक्रिय हैं। ये भारत को फिर से खालिस्तान आंदोलन की आग में झोंकने की मंशा पल रहे हैं। हालांकि ये चाहे भले जितने भी दिवा स्वप्न देखते रहें, ये कभी सफल तो हो ही नहीं सकते। कुछ समय पहले कनाडा की अन्टोरियो विधानसभा ने वर्ष 1984 में भारत में हुए सिख विरोधी दंगों को सिख नरसंहार और सिखों का राज्य प्रायोजित कत्लेआम करार देने वाला एक प्रस्ताव पारित किया था। और क्या कोई भूल सकता है कनिष्क विमान हादसा? सन 1984 में स्वर्ण मंदिर से आतंकियों को निकालने के लिए हुई सैन्य कार्रवाई के विरोध प्रदर्शन में यह दर्दनाक हमला किया गया था। मांट्रियाल से नई दिल्ली जा रहे एयर इंडिया के विमान कनिष्क को 23 जून 1985 को आयरिश हवाई क्षेत्र में उड़ते समय, 9,400 मीटर की ऊंचाई पर, बम से उड़ा दिया गया था और वह अटलांटिक महासागर में गिर गया था। इस आतंकी हमले में 329 लोग मारे गए थे, जिनमें से अधिकांश भारतीय मूल के कनाडाई नागरिक थे। अब आखिर लंदन में मोदी जी का विरोध करने वाले चाहते क्या हैं.? उन्हें खालिस्तान तो ख्वाबों में भी नहीं मिलेगा। वे यह जरूर याद रखें कि भारत के करोड़ों सिख देश के लिए अपने प्राणों की आहुति देने के लिए भी हर पल तैयार हैं। वे खालिस्तानियों के साथ ना पहले थे, न अब हैं। मुठ्ठी भर भटके हुए तत्वों के कारण भारत- कनाडा संबंध बीते कुछ समय के दौरान कटु हुए हैं। पिछले साल कनाडा के रक्षा मंत्री हरजीत सिंह सज्जन ने अपने भारत दौरे के समय 1984 में सिख विरोधी दंगों जैसे संवेदशील सवाल को उठा दिया था । वह निर्विवाद रूप से कत्लेआम ही था। उसे कतई जायज नहीं माना जा सकता। पूरा देश उस नर संहार की निंदा करता हैI परन्तु, किसी अन्य देश के रक्षा मंत्री को तो यह कतई शोभा नहीं देता कि वो इंदिरा गांधी की हत्या के बाद सुनियोजित ढंग से भड़काए गए उन दंगों को मसले को उठाए। सिख नरसंहार चाहे कितना ही अर्द्नक या शर्मनाक क्यों न हो, है तो वह भारत का आंतरिक मामला ही न? बड़बोले सज्जन साहब ने एक अखबार के साथ एक साक्षात्कार में कह डाला था कि “1984 में भारत में सिख विरोधी दंगों से हमारे देश कनाडा में रहने वाले सिख बहुत आहत हुए थे। उन दंगों के संबंध में सोचकर मुझे लगता है कि हम कितने भाग्यशाली हैं कि कनाडा में रहते हैं, जिधर मानवाधिकारों को लेकर संवेदनशीलता बरती जाती है”। आखिर वे होते ही कौन हैं इस तरह की गैर-जिम्मेदाराना टिप्पणी करने वाले। वैसे वे घोर खालिस्तान समर्थक माने जाते हैं। पिछले वर्ष वे भारत आए तोपंजाब के मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह ने ‘’सज्जन’’ से मिलने से मना कर दिया था क्योंकि उन्होंने सज्जन को खालिस्तान समर्थक बताया था। हालाँकि, वह भी उचित नहीं था I किसी विदेशी मेहमान को प्रयाप्त सम्मान तो मिलना ही चाहिएI यही तो भारतीय शिष्टाचार हैI अब भारत 1980 के दौर का भारत भी नहीं रह गया है। अब देश में रहकर देश विरोधी गतिविधियों में लिप्त खालिस्तानियों या किसी भी देशद्रोही की गर्दन में अंगूठा डाल देने में देश सक्षम भी है, समर्थ भीI

घाटी के कलंक

कश्मीर घाटी में तिरंगे का अपमान करने वाले लंदन में भी दिखाई पड़े । ये भारत और मोदी जी के खिलाफ नारेबाजी कर रहे थे। जाहिर है कि इन्हें पाकिस्तान ने सरकारी खर्चे पर ही भेजा ही होगा I वहां पर उन्होंने तिरंगे का अपमान किया। हालांकि इस मुद्दे पर उनकी वहीं पर एकत्र शेष प्रवासी भारतीयों ने तबीयत से कुटाई भी कर दी। दरअसल कोई भी स्वाभिमानी भारतीय तिरंगे का अनादर किसी भी परिस्थिति में स्वीकार कर ही नहीं सकता। तिरंगे का अनादर करने वाले कशमीर घाटी में आई.एस.आई. से पैसे लेकर पाकिस्तानी झंडा फहरा कर अपने को बहुत महान समझते हैं। वे यह याद रखें कि वे जिस पाकिस्तान को जन्नत मानते हैं, वहां पर मानवाधिकारों का घनघोर उल्लंघन होता है। वहां पर हिन्दुओं, ईसाइयों,सिखों,शियाओं और अहमदियों कासरेशाम कत्लेआम जारी है। और तो और पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर में भी मानवाधिकार नाम की कोई चीज बची तक नहीं है।

पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर में लगातार भारी तादाद में जनता सड़कों पर उतरकर पाकिस्तान के खिलाफ नारेबाजी कर रही है। ये आजादी और बुनियादी हक की मांग कर रहे हैं। ये अपने राज्य में विकास ना होने से त्राहि-त्राहि कर रहे हैं। वहां पर युवाओं को रोजगार नहीं मिल रहे। इस तरह के विरोध प्रदर्शन मुजफ्फराबाद, गिलगित और कोटली सहित कई इलाकों में हो रहे हैं। इसके बावजूद पाकिस्तान कश्मीर में अलगावादियों को खाद-पानी देने से बाज नहीं आ रहा। सरहद पार से आतंकियों को भेजता है।पाक अधिकृत कश्मीर के अवाम का कहना है कि कश्मीर या बलूचिस्तान किसी भी कानून की नजर से पाकिस्तान का हिस्सा नहीं है। पाकिस्तान अधिकृतकश्मीर के इस चेहरे को हमारे कश्मीर के भटके हुए लोग देखना नहीं चाहते। इन्हें तो तिरंगे का अनादर करके ही बहुत आनंद की अनुभूति होती है। अब भारत में पाकिस्तानी झंडा फहराए जाने वाले बख्शे ना जाएं। कश्मीर में आतंकियों के जनाजों में शामिल होने वाले भी ठीक से कसे जाएं। देश ने देखा जब भारतीय सुरक्षा बलों के साथ मुठभेड़ में मारे गए बुरहान मुजफ्फर वानी के जनाजे में हजारों लोग उमड़े थे। शवयात्रा के समय जमकर उत्पात भी हुआ। क्या कानून की नजरों में गुनहगार साबित हो चुके बुरहान को लेकर कश्मीर के एक वर्ग का उसे नायक मानना सही है? बुरहान हिजबुल मुजाहिदीन के कमांडर के तौर पर काम कर रहा था। आतंकवादियों की भर्ती कर रहा था। जेएनयू के तथाकथित प्रगतिशील कहे जाने वाले गुमराह छात्रों के बीच ‘क्रांतिकारी’ बने उमर खालिद ने अपने फेसबुक पोस्ट पर बुरहान की तुलना लैटिन अमेरिकी क्रांतिकारी ‘’चे ग्वेरा’’ तक से कर दी थी।

अब मेरा सवाल उन तमाम सेक्युलरवादी लेखकों और मानवाधिकारवादियों से है कि वे कब उन खालिस्तानियों और पृथक कश्मीर का सपना देखने वालों की निंदा करेंगे जो मोदी जी की लंदन यात्रा के दौरान तिरंगे का अपमान कर रहे थे? इन्हें कश्मीर के अलगाववादी नेताओं यासीन मलिक और इफ्तिखार गिलानी के समर्थन में कैंडिल मार्च निकालने में शर्म नहीं आती। इनमें अरुंधति राय भी शामिल हैं। वो कश्मीर की आजादी की पैरोकार हैं। क्या वो अब तिरंगे के अपमान पर कुछ बोलेंगी?

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