Thursday, January 30

राहुल जी रोटी खाने को नहीं, गरीब और मेहनतक कैसे पहनेगा सफेद टीशर्ट

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पांच सिद्धांतों करूण हिंसा एकता समानता और सबकी प्रगृति का प्रतीक करार देते हुए कांग्रेस के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी द्वारा सोशल मीडिया एक्स पर पोस्ट कर व्हाइट टीशर्ट मूवमेंट की जानकारी दी गई। भारत जोड़ो यात्रा से लेकर संसद तक में सफेद टीशर्ट पहनकर आने वालों राहुल गांधी के प्रति ध्यान आकर्षित होता है। कहा जा रहा है कि सफेद टीशर्ट कांग्रेस ने मेहनतकश वर्ग को ध्यान में रखकर आंदोलन शुरू किया है। इनका कहना है कि केंद्र सरकार गरीब और मेहनतकश लोगों से अपना मुंह मोह चुकी है। वो सिर्फ गिने चुने उद्योगपतियों पर ध्यान देकर उन्हें समृद्ध कर रही है। सरकार की गलत नीतियों की वजह से असमानता निरंतर बढ़ रही है। श्रमिकों की स्थिति बद से बदतर होती जा रही है। ऐसे में कांग्रेसियों का कहना है कि हम सबकी जिम्मेदारी बनती है कि उन्हें न्याय व हक दिलाने के लिए मजबूती से आवाज उठाएं। राहुल गांधी ने युवाओं से इस आंदोलन में बढ़ चढ़कर हिस्सा लेने की अपील की है और इसके लिए एक वेबसाइट भी शुरू की गई बताई जा रही है। राहुल गांधी ने डेढ़ मिनट का एक वीडियो भी साझा किया है।
पिछले 5-6 साल से अपनी गतिविधियों और सक्रियता से देशभर में कांग्रेसियों को सक्रिय करने और पार्टी को मजबूती देने के लिए राहुल गांधी ने जो किया उसके बारे में किसी को बताने की जरूरत नहीं हैं क्योंकि यह उसी का परिणाम है कि आज वो लोकसभा में विपक्ष के नेता हैं और कांग्रेसी मेहनत से पार्टी को और आगे बढ़ाने का प्रयास कर रहे हैं। राहुल जी आपकी मुहिम के बारे में मुझे कोई टिप्पणी नहीं करनी और यह भी सही है कि सफेद रंग शांति का प्रतीक है और हर व्यक्ति टीशर्ट पहनकर अपने आप को युवा महसूस करता है। बड़ी बात यह है कि जिस मेहनतकश मध्यम दर्जे की बात की जा रही है वह टीशर्ट के रखरखाव का आर्थिक भार उठाने में सक्षम नहीं होगा। क्योंकि सफेद कपड़ा गंदा जल्दी होता है और यह बिना प्रेस के नहीं पहनी जा सकती। एक टीशर्ट पर 20 रूपये रोजाना का खर्च बैठता है। अगर परिवार में पांच पुरूष है तो 3000 रूपये सफेद टीशर्ट पहनने के लिए खर्च करने होंगे जिससे मध्यम दर्जें का व्यक्ति भी आसानी से व्यय नहीं कर पाएगा। इसलिए राहुल जी सफेद टीशर्ट मुहिम पर मैं तो यही कह सकता हंू कि पहले गरीब की आर्थिक स्थिति सुधारकर अच्छे कपड़े उपलब्ध कराईये जिससे वो सफेद टीशर्ट पहन आपके आंदोलन में भाग ले सके वरना बड़े लोगों में यह मुहिम सिर चढ़कर बोलेगी लेकिन गरीब और मध्यम दर्जे का आम आदमी तो दूर आपका कार्यकर्ता भी आसानी से नहीं धारण कर सकता। यह रोज गंदी होगी और नहीं धुली तो सफेद का कोई मतलब नहीं रह जाता।
(प्रस्तुतिः रवि कुमार बिश्नोई संपादक दैनिक केसर खुशबू टाइम्स मेरठ)

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