दैनिक केसर खुशबू टाइम्स
नई दिल्ली, 12 जून (विशेष संवाददाता) आम आदमी के समक्ष जीते जी और उसके परिवार के सामने मरने के बाद आने वाली आर्थिक समस्याओं के समाधान हेतु आजकल बीमा कराना अत्यंत महत्वपूर्ण समझा जाने लगा है। और वर्तमान में नागरिक अपने संस्थानों का भी बीमा कराने लगे हैं जिससे अगर कोई घटना या दुर्घटना संस्था में हो जाए तो बीमे का मुआवजा मिलने से कई परेशानियों का हल अपने आप निकल जाता है। नागरिकों में इसीलिए निरंतर लोकप्रिय हो रही बीमा व्यवस्था को लेकर होने वाली चर्चा अनुसार अब कई चर्चाएं भी होने लगी हैं। वो कितनी सही है कितनी गलत यह तो जांच का विषय है। मगर मौखिक चर्चाओं के अनुसार कई बड़े उद्योगपति छोटा नुकसान होने के बावजूद मिली भगत कर बड़ा मुआवजा ले लेते हैं। कुछ लोगों का मौखिक रूप से कहना है कि कई लोग जानबूझकर नुकसान करते हैं और फिर मुआवजे का दावा कर मोटी रकम वसूल लेते हैं। यह तथ्य महत्वपूर्ण और गहन जांच होने की ओर इंगित करता है। ऐसे मामलों में अभी बीते दिनों दिल्ली में कुछ लोगों के बीच मौखिक चर्चा होती सुनी जिससे पता चलता था कि एनसीआर क्षेत्र में कही गोदाम और दुकानों में पानी भर जाने और कहीं आग लग जाने या और कारण दिखाकर लाखों रूपये का बीमा कराकर करोड़ों की वसूली की जा रही हो सकती है। इस बारे में एक व्यक्ति का कहना था कि आजकल एनसीआर के एक बड़े प्रकाशक का ऐसा ही मामला चर्चाओं में है। जिसमें कहा जा रहा है कि गोदाम में माल तो लाखों का था लेकिन बीमा एजेंट और अन्य अधिकारियों से मिलीभगत कर या तो करोड़ों का मुआवजा ले लिया गया है या लेने की कोशिश की जा रही है। मामला किस जिले का है और घटना क्या थी उक्त शब्द लिखे जाने तक यह तो पता नहीं चल पाया। लेकिन सूत्रों का कहना था कि प्रकाशक के इस प्रकरण में नुकसान 20 से 25 लाख का था लेकिन मुआवजा कई करोड़ का वसूलने की चर्चा है। नाम पता और प्रकरण से संबंधित और जानकारी मिलती है तो पाठकों को अवगत कराया जाएगा। लेकिन जनहित में बीमा क्षेत्र से संबंध वरिष्ठ अधिकारियों को ऐसे मामलों में मुआवजा स्वीकृत करने से पहले गहन छानबीन करानी चाहिए। क्योंकि इससे कहीं ना कहीं आम आदमी को आर्थिक नुकसान पहुंचता है। जो शासन की नीति के विपरित है।
लाखों का हुआ नुकसान, प्रकाशक ने मांगा करोड़ों का मुआवजा
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