मेरठ 27 फरवरी (प्र)। आजकल भगवान की भक्ति में लीन तथा भजन और कथा समारोह में दिलचस्पी रखने वाले श्रद्धालु अपने आपको ठगा सा महसूस कर रहे है। चर्चा अनुसार अभी कुछ माह पूर्व दुनिया के जाने माने कथावाचक रमेश भाई ओझा जी की भैंसाली मैदान में हुई कथा के दौरान एक धार्मिक भजन संध्या के आयोजन की घोषणा की गई और एन वक्त पर उसे निरस्त कर दिया गया। अब उसमें कितनी सत्यता थी ये तो आयोजक ही जाने। लेकिन भक्तों का कहना था कि कुछ लोगों से उसके लिए धन भी अर्जित किया गया था मगर कथा आयोजकों से तालमेल न होने के चलते उसे निरस्त किया गया था। भैंसाली मैदान में गत दिवस श्री वेंक्टेसाय सेवा ट्रस्ट द्वारा कथा का आयोजन किया गया था।बीते दिवस इसके लिए वेस्ट एण्ड रोड़ काली पलटन मार्ग पर अन्नपूर्णा मंदिर से कलश यात्रा निकलनी थी तथा कथा वाचक देवी हेमलता और उनके सहयोगियों के ठहरने की व्यवस्था भी अन्नपूर्णा ट्रस्ट द्वारा की जानी थी कि अचानक बिना कोई विशेष कारण बताये आयोजकों ने कथा का कार्यक्रम निरस्त कर दिया।
बताते है कि 22 लाख के बजट से होने वाली कथा में देवी हेमलता शास्त्री वृन्दावन को कथा के लिए आना था मगर कुछ चर्चाओं के अनुसार समय से तय राशि उपलब्ध नहीं कराई गई इसलिए वो नहीं पहुंची। तो आज एक खबर छपी कि कथा के मुख्य आयोजक पश्चिम यूपी प्रभारी खतौली निवासी विनोद मोटला लापता हो गये। वो सुभारती की ओर जाने की बात कहकर फिर किसी को दिखाई नहीं दिये। परिणाम स्वरूप श्रीराम कथा स्थगित होने से भक्त और श्रद्धालु मायूस है। तो दूसरी ओर यह भी चर्चा है कि इसके लिए चंदा इक्ट्ठा किया गया था जानकारों का मानना है कि वो वापस किया जाना चाहिए।
श्री वेंक्टेसाय सेवा ट्रस्ट के ट्रस्टी निवासी मोदीपुरम रतनेश पांडे का कहना है कि 24 फरवरी तक निमंत्रण पत्र बांटे गये। भैंसाली मैदान में व्यवस्थाओं के संदर्भ में तैयारियों का जायजा लेने हेतु बैठक होनी थी लेकिन विनोद मोटला गायब हो गये। नागरिकों का कहना है कि कारण कोई भी हो ऐसी कथाओं का आयोजन करने से पूर्व आयोजकों को सभी तैयारियां और हर विषय पर पूरी तौर पर ध्यान देकर ही कथा की घोषणा करनी चाहिए। वैसे तो कुछ ऐसे धार्मिक आयोजनों को छोड़ कर बाकी में श्रद्धालु पहुंच ही नहीं पाते है लेकिन कुछ ऐसे भगवान के भक्त भी है जो कोशिश करते है कि उनके आसपास ही भागवत कथा सुन्दरकांड या शिवपुराण आदि जो भी हो तो वहां जरूर पहुंचे। भगवान में ऐसी आस्था रखने वालों को जब ऐसे आयोजन स्थगित होते है तो काफी मानसिक कष्ट होता है। और वो अपने को ठगा सा महसूस कर रहे है और अन्य आयोजनों पर प्रश्नचिन्ह लगता है कि ये भी कथा करा पाएंगे भी नहीं।