प्रयागराज 30 सितंबर। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक मामले में दुष्कर्म पीड़िता गर्भवती महिला की पहचान छिपाने के संदर्भ में अपने कार्यालयों को यह निर्देश दिया कि गर्भावस्था की मेडिकल टर्मिनेशन की मांग करने वाली गर्भवती पीड़िता की पहचान सभी अदालती रिकार्ड में छिपाई जाए, जिसमें न्यायालय द्वारा पारित सभी संचार और आदेश भी शामिल होंगे। उक्त आदेश न्यायमूर्ति सलिल कुमार राय और न्यायमूर्ति सुरेंद्र सिंह (प्रथम) की खंडपीठ ने पीड़िता को मेडिकल टर्मिनेशन की अनुमति देते हुए पारित किया।
दरअसल अनजाने में हाईकोर्ट की वेबसाइट पर उपलब्ध आदेश में पीड़िता के नाम का उल्लेख कर दिया गया है। अतः कोर्ट ने अपने कार्यालय को सभी स्थानों पर पीड़िता का नाम बदलकर एबीसी करने का निर्देश दिया है, जिससे याची की पहचान उजागर न हो। मालूम हो कि आईपीसी की धारा 228 ए दुष्कर्म पीड़िता की पहचान या किसी अन्य विवरण के प्रकाशन पर रोक लगाती है।
इसके साथ ही कोर्ट ने यह भी निर्देश दिया कि उक्त आदेश के साथ याचिका की प्रति जिला मजिस्ट्रेट और मुख्य चिकित्सा अधिकारी, गाजियाबाद को उपलब्ध कराने से पहले बदलावों की प्रतीक्षा करने के बजाय रजिस्ट्रार (अनुपालन ) द्वारा याची का नाम व्हाइटनर से मिटा दिया जाए। मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी एक्ट, 1971 की धारा 3 (2) के तहत कोर्ट ने कहा कि चूंकि गर्भावस्था उसके साथ हुए अपराध का परिणाम है, इसलिए गर्भावस्था को उसकी पीड़ा का कारण माना जाएगा। अतः वह गर्भावस्था का मेडिकल टर्मिनेशन कराने की हकदार है।