Thursday, November 13

विश्व आत्महत्या रोकथाम दिवस पर विशेष! सोशल मीडिया मंच के सकारात्मक कार्यक्रमों से कम हो सकती है अपने आप को समाप्त करने की प्रवृ़ति

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वर्ष 2024 में देश में एक लाख 64 हजार 33 लोगों ने आत्महत्या कर ली। इस हिसाब से 450 लोगों की मौत आत्महत्या से होना सामने आता है। विश्व आत्महत्या रोकथाम दिवस पर मनोवैज्ञानिक शोधार्थी डॉक्टर नरेश पुरोहित का कहना है कि देश में आत्महत्या दर 12.4 प्रति लाख आबादी है और सबसे ज्यादा 18 से 30 साल के युवा आत्महत्या करते हैं। एनसीआरबी के आंकड़ों के हिसाब से देश में 2022 में जितने लोगों ने आत्महत्या की उनमें से 72 फीसदी पुरुष थे। डॉ. पुरोहित का मानना हेै कि युवा एआई पर सलाह लेने में ज्यादा भरोसा करते हैं जो खतरनाक हो सकता है क्योंकि यह मानवीय भावनाएं नहीं समझते। ऐेसे में युवा ज्यादा अकेलापन महसूस करते हैं। पंजाब में भी आत्महत्या करने वालों की संख्या बढ़ रही है। यहां 15 से 25 आयुवर्ग में यह प्रवृति बढ़ी है। लोगों का कहना है कि आत्महत्या करने की बात करने वालों की स्थिति पर समीक्षा की जरुरत है। क्योंकि अगर कोई ऐसी स्थिति में आत्महत्या की कोशिश करता है और बचा लिया जाता है तो वह दो से तीन सप्ताह बाद वह फिर ऐसा प्रयास करता है। इस बारे में जानकारों का कहना है कि शादी और करियर पढ़ाई में परेशानी व्यस्कों को आत्महत्या की प्रवृति बढ़ाती है। इसलिए जो लोग आत्महत्या की बात करते हैं वो ऐसा नहीं करते क्योंकि यह बिना चेतावनी अचानक होती है।
आत्महत्या महिला करे या पुरूष यह अत्यंत आत्मघाती कायराना निर्णय होता है। हो सकता है चौट बॉट या एआई से अकेला पन बढ़ता हो मगर मुझे लगता है कि इस मामले में परिजनों व मित्रों आदि को ऐसा माहौल बनाना चाहिए कि कोई भी ऐसा ना सोचे। आपस में बातचीत करना लाभदायक है लेकिन अगर पढ़ाई या नौकरी के दौरान आप घर से बाहर रहते हैं तो ऐसे में परिवार का कोई सदस्य पास नहीं होता तो अकेलापन गलत निर्णय लेने पर मजबूर कर सकता है इसलिए लोग सोशल मीडिया मंचों के बारे में कुछ भी कहते हो लेकिन जो इस पर सक्रिय है अगर वो समझे कि जिस प्रकार ज्यादा खाना दवाई लेना घातक होता है उसी प्रकार इन मंचों पर गलत बातें देखना घातक है लेकिन अगर 24 घंटे चलने वाली फिल्में, भजन गाने देखने के साथ पढ़ाई या व्यापार में आगे बढ़ने के लिए सोशल मीडिया मंचों का उपयोग किया जाए तो इससे अकेलापन और तनाव में जाने की समस्या कुछ दूर हो सकती है क्योंकि ऐसा सबके साथ होता है इसलिए अगर मानसिक परेशानी है या निगेटिव विचार आने लगे तो आप गाने लगाकर नाचने लगे तो दुविधा और अकेलापन समाप्त होगा और स्वास्थ्य भी अच्छा रहेगा व नींद भी आएगी। कहने का आश्य सिर्फ इतना है कि एक टीवी मोबाइल या कंप्यूटर का उपयोग सकारात्मक सोच को पैदा करने के लिए किया जाए तो मुझे लगता है कि आत्महत्याओं की संख्या कम हो सकती है। जिस उम्र में आत्महत्या ज्यादा हो रही है उसमें भविष्य की चिंता ज्यादा होती है इसलिए अकेले रहने वाले बच्चों के पास मां बाप जाएं या उन्हें आप पास बुला ले और स्कूल संचालकों से कहें कि छात्रों पर किसी प्रकार का दबाव ना डाले और हॉस्टल के बच्चों को समय से भोजन और सुविधा उपलबध कराएं क्योंकि जितनी मोटी फीस ली जाती है उसमें यह जरुरी। हो सकता है मेरी सोच से कुछ लोग सहमत ना हो लेकिन विचार सबके अपने हैं।
(प्रस्तुतिः- रवि कुमार बिश्नोई संपादक दैनिक केसर खुशबू टाइम्स मेरठ)

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