देश के यशस्वी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी लोकतंत्र की रक्षा और सबको बोलने के अधिकार की स्वतंत्रता देने के पक्षधर रहे हैं। राज्यों के मुख्यमंत्रियों का भी ऐसे मामलों में एक ही सुर होता है उसके बावजूद जो यह धारणा कि अपनी बात सही प्रकार से कहने और न्याय की बात करने और अधिकार मांगने को जिस प्रकार से देशद्रोह आदि जैसी कार्रवाईयों से जोड़ा जा रहा है उसका संदेश कोई अच्छा नहीं है। यह किसी से छिपा नहीं है कि चुना हुआ प्रतिनिधि सांसद और विधायक हो या ग्राम प्रधान क्योंकि उसे दोबारा भी चुनाव लड़ना और लड़ाना पड़ता है इसलिए वो विरोधियों के खिलाफ भी ऐसा कोई कार्य नहीं करते जिससे उन्हें निरंकुश कहा जाए। प्रधानमंत्री जी देश में लोकतंत्र तभी कायम रहता है जब विपक्ष अपनी बात कहे और राष्ट्रपिता के दिखाए मार्ग का अनुसरण करते हुए उनकी बात सुने। वो ही बात जनहित और सरकार के भले की कही जा सकती है लेकिन पिछले दो वर्षो से यह देखने में आ रहा है कि कुछ निरंकुश नौकरशाह अपनी आवाज उठाने वाले कई लोगों को मुकदमे में फंसाते हैं और उन पर राष्ट्रद्रोह आदि के मुकदमे चलते हैं। बाद में ज्यादातर पीड़ित बरी भी हो जाते हैं क्योंकि उनका कोई दोष नहीं होता।
शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे द्वारा बीते दिनों भाजपा पर निशाना साधते हुए मुंबई की दशहरा रैली में कहा गया कि अब न्याय के लिए लड़ना देशद्रोह बनता जा रहा है और इस मामले में उनके द्वारा लेह लददाख के सोनम वांगचुक का हवाला दिया गया। कांग्रेस भी कुछ ऐसा ही कह रही है। और वांगचुक की पत्नी गीतांजलि ने भी पति के उत्पीड़न का आरोप लगाया। आम आदमी का मानना है कि अगर सोनम वांगचुक का आंदोलन गलत हाथों में पहुंच गया है तो वांगचुक से वार्ता की जाए और गलत लोगों पर कार्रवाई हो।
दूसरी तरफ मध्य प्रदेश में सरकारी कर्मचारियों ने दो बच्चे की नीति के डर से बब्लू डंडोलिया ने बताया कि उनकी पत्नी राजकुमारी और मैंने अपनी सरकारी नौकरी बचाने के लिए अपने नवजात बच्चे को जिंदा दफनाने का प्रयास किया। जिंदवाड़ा के स्कूल में नौकरी करने वाले इस दंपति की बात से स्पष्ट होता है कि दो बच्चों का नियम कितना घातक हो रहा है।
देश में जनसंख्या कम करने के लिए नियम भी बने और आम आदमी को बोलने का अधिकार हो इसके लिए उसे डराया नहीं जाए। समझाया जाए कि इस व्यवस्था से क्या नुकसान हो सकते हैं। लेकिन डर के मारे लोग अपने बच्चे को जिंदा दफन करने को मजबूर हो ऐसा नहीं होना चाहिए। वैसे भी हिंदूवादी नेता हमेशा दो से ज्यादा बच्चों की वकालत करते रहे हैं ऐसे में अगर किसी के तीन बच्चे हैं तो उसे यह ना सोचना पड़े कि उसका काम जा सकता है। नियम कानून व शांति व्यवस्था लागू करने की नीति के साथ यह भी ध्यान रखा जाए कि चाहे मुकदमे का डर हो या नौकरी जाने का कोई भी ऐसा निर्णय ना ले जो मानवीय दृष्टि से सही ना हो। किसी को भी अराजकता की छूट देने की सलाह कोई नहीं देगा लेकिन अपनी बात कहने का मौका हर आदमी को मिलना चाहिए। यही लोकतंत्र की सबसे बड़ी उपलब्धि कही जा सकती है।
(प्रस्तुतिः- रवि कुमार बिश्नोई संपादक दैनिक केसर खुशबू टाइम्स मेरठ)
पीएम साहब ! ऐसा क्यों हो रहा है कि नौकरीपेशा अपने बच्चे को मारने तथा आम आदमी अपनी आवाज दबाकर बैठने को है मजबूर
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