मोटर व्हीकल एक्ट के नियम सख्त किए जाने के विरोध में देशभर के ट्रक बसों के संचालकों ने चक्का जाम किया। जिससे पूरे देश में डीजल पेट्रोल गैस व अन्य आवश्यक वस्तुओं का आवागमन प्रभावित हुआ। अकेले उत्तर प्रदेश में जानकारी अनुसार दस हजार बसें रोडवेज की नहीं चली। स्मरण रहे कि भारतीय दंड संहिता की 279 यानी लापरवाही से वाहन चलाने 304ए लापरवाही से मौत और 338 जान जोखिम में डालने के तहत केस दर्ज किए जाते रहे हैं पूर्व में लेकिन अब नए कानून के तहत मौके से फरार होने वाले डाइवर पर धारा 104 (2) के तहत केस दर्ज होगा। पुलिस या मजिस्ट्रेट को सूचना ना देने पर उसे सात साल कैद और दस लाख जुर्माना देना होगा। वाहन दुर्घटनाओं को रोकने और आम आदमी को मौतों से बचाने के लिए पुराने कानूनों में बदलाव किया जाना कोई गलत नहीं है लेकिन अगर उनमें बदलाव करने से पूर्व वाहन चालकों ट्रांसपोर्टरों की एसोसिएशन के प्रतिनिधियों से सलाह कर ली जाती तो ज्यादा अच्छा रहता और आगे को सरकार को इस बात पर विशेष ध्यान देना चाहिए कि कोई भी नया कानून बनाने से पूर्व उससे संबंध संगठनों और नागरिकों से विचार विमर्श करके ही नए नियम पर मोहर लगानी चाहिए। क्योंकि कई बार देखने को मिला है कि दफ्तरों में बैठक कर सरकारी बाबू जिन्हें जमीनी हकीकत का ज्ञान नहीं होता वो नियम और नीति तैयार करते हैं और उन पर कोई चर्चा किए बिना मोहर लगा दी जाती है। जो बाद में आम आदमी के लिए भारी परेशानी का कारण बनती है।
इसके जीते जागते उदाहरण के रूप में बसों और ट्रकों की हड़ताल से यात्रियों को हो रही परेशानी व रेलों में यात्रियों के भारी दबाव को देखा जा सकता है। अगर जल्द ही इस बारे में कोई निस्तारण नहीं हुआ तो जानकारों के अनुसार पंजाब, बिहार और यूपी सहित आठ राज्यों में इसका संचालन तो प्रभावित होगा ही जिससे खाद्य सामग्री सब्जी फल के महंगा हो जाने की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता और इन सबका असर आम आदमी पर ही पड़ता है। ऐसा नियम बनाने वाले अफसरों को इससे कोई फर्क शायद पड़ने वाला नहीं है। हड़ताल के दौरान तमाम राज्यों में ट्रक और बसें खड़ी नजर आई। मेरा मानना है कि सरकार को ऐसे नियम बनाने और लागू करने के दौरान काफी अहतियात बरतने के साथ ही हर संभवना पर विचार कर निर्णय लेना चाहिए और साथ ही यह इंतजाम भी कर लिए जाएं कि उसका विरोध होता है तो आम नागरिकों को उससे नुकसान ना हो और वो परेशानियां ना झेले। मेरा सुझाव है कि सरकार को कुछ आवश्यक क्षेत्रों से जुड़े विभागों में हड़ताल पर रोक लगानी चाहिए जो विभाग जनसमस्याओं से संबंधित हो।
नए कानून बनाने और लागू करने से पहले नागरिकों और संगठनों से होना चाहिए विचार, क्योंकि हड़ताल और महंगाई की मार अफसरों को नहीं नागरिकों को झेलनी पड़ती है
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