केंद्र और प्रदेश की सरकारें हमारे भावी भविष्य बच्चों को शिक्षित बनाने और आगे बढ़ाने के लिए हर संभव प्रयास कर रही है लेकिन स्कूल संचालक हैं कि सरकार की बात और नीतियां मानने के लिए तैयार नजर नहीं आ रहे। गत दिनों मेरठ की बेसिक शिक्षा विभाग के अधिकारियों को शिकायतें मिली कि पब्लिक स्कूल आरटीई के तहत होने वाले प्रवेश के तहत आवंटित स्कूल में दाखिला नहीं दे रहे है। बीएसए आशा चौधरी ने अभिभावकों से आग्रह किया है वो सीधे विभाग में आएं। उन्हें न्याय और बच्चों को दाखिला मिलेगा। दूसरी तरफ दिल्ली के एक स्कूल में पांचवी के छात्र को फेल कर दिया और काफी प्रयास के बाद भी जब उसके अभिभावकों की सुनवाई नहीं हुई तो अपने बच्चे के हित के लिए अभिभावकों ने माननीय न्यायालय का द्वार खटखटाया और पांचवी फेल बच्चे को पास कर अगली क्लास में कोर्ट के आदेश पर स्कूल को देना पड़ा दाखिला। खबर के अनुसार पांचवीं कक्षा का बच्चा यदि खिलौने लेने पर अड़े या टॉफी के लिए लड़े तो उसकी लड़ाई भी प्यारी लगती है। हैरत और कुफ्त तब होती है जब दस वर्षीय बालक को अपने हक के लिए कानूनी लड़ाई लड़नी पड़े। जाहिर तौर पर मैदान-ए-जंग उर्फ कोर्ट में अभिभावकों और वकील ने मोर्चा संभाला होगा, मगर युद्ध तो उसी का था। वो लड़ा और छठी कक्षा में जाने का हक हासिल किया।
न्यायमूर्ति सी. हरिशंकर की पीठ ने पिता की मार्फत दायर याचिका को स्वीकारते हुए कहा, संतुलन का सिद्धांत बच्चे के हक में है, क्योंकि उसकी शिक्षा प्रभावित होती है तो वह अपूर्णीय क्षति होगी, जिसकी भरपाई नहीं हो सकती। वहीं, स्कूल बच्चे को छठी कक्षा में बैठने देता है तो इससे स्कूल पर कोई प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ेगा। बच्चे का आरोप था कि उसे गलत ढंग फेल कर दिया गया। इससे शिक्षा के अधिकार अधिनियम का उल्लंघन हुआ है। इस पर अदालत ने निजी स्कूल औैर शिक्षा निदेशालय को चार हफ्ते में जवाब देने को कहा है। मामले की सुनवाई चार जुलाई को होगी।
तैयारी का समय नहीं दिया
छात्र का कहना है कि स्कूल ने उसे फेल होने की जानकारी नहीं दी। इसके अलावा पुन परीक्षा के लिए दो माह का वक्त भी दिया जाना चाहिए था, ताकि परीक्षा की तैयारी कर सके, यहां ऐसा नहीं किया गया। हालांकि, स्कूल का कहना था कि दो माह के भीतर कभी भी यह परीक्षा ली जा सकती है।
यह है मामला
याचिका के अनुसार, छात्र ने अलकनंदा स्थित निजी स्कूल में वर्ष 2023-24 में पांचवीं कक्षा की परीक्षा दी थी। परिणाम बताए बिना महज 15 दिन के भीतर 6 और 18 मार्च को उसकी पुन परीक्षा ली गई और फेल घोषित कर छठी कक्षा में प्रमोट करने से इनकार कर दिया। छात्र के मुताबिक, यह शिक्षा के अधिनियम की धारा 16(3) का उल्लंघन है।
दिल्ली हाईकोर्ट के फैसले से उन अभिभावकों का मार्ग प्रशस्त होता है जिनके बच्चों को बिना कारण फेल कर दिया जाता है और परीक्षा दिए जाने का मौका नहीं दिया जाता और पास होने पर अगली क्लास में बैठने का मौका ना देने तथा बच्चे के मनमाफिक विषय देने में आनाकानी करने वाले स्कूलों के खिलाफ अदालत का द्वार खटखटाया जा सकता है। सरकार ने इसके लिए नियम बनाए हैं इसलिए अभिभावक अपने बच्चे के भविष्य को ध्यान में रखते हुए डीएम, कमिश्नर, डिप्टी रजिस्टार चिट फंड सोसायटी के कार्यालयके यहां भी शिकायत कर सकते हैं। प्रयास किया जाएगा तो उन्हें न्याय अवश्य मिलेगा। दिल्ली हाईकोर्ट के निर्णय को देखकर यह बात कही जा सकती है।