Friday, July 26

त्योहारों के मौके पर प्रदूषण व पटाखों की बिक्री रोकने व सफाई कराने के दांव ढोल के पोल ही साबित हुए

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केंद्र और प्रदेश की सरकारों एवं अदालत द्वारा हमेशा जनहित के लिए जो आदेश किए जाते हैं उनका जो परिणाम इनको लागू कराने वालों में से कुछ की लापरवाही के चलते होता है। वैसा ही आजकल प्रदूषण और पटाखों की बिक्री और उन्हें चलाने पर रोक के फैसले व निर्णयों का हाल हुआ। क्योंकि कुछ वीआईपी इलाकों या जनप्रतिनिधि व अफसरों की कोठियों के आसपास सफाई करा देने और धूल ना उड़े इसके लिए पानी छिडकवा देने से शहर साफ हो जाएगा यह सोच सही नहीं है। क्योंकि उसके बावजूद सफाई के लिए जिम्मेदार विभाग और उनके अफसर अपना काम सरकार की मंशा के तहत कराने में पूर्ण रूप से सफल नहीं हो पाए। यह बात कहने में कोई हर्ज नहीं महसूस होता है क्योंकि कितने ही इलाके ऐसे दिखाई दिए जहां पिछले छह माह से सफाई तो हुई ही नहीं आसपास के निवासियों के अनुसार कूड़ा भी नहीं उठा। जिस कारण दिनभर वहां बदबू और धूल का गुब्बार नजर आता है। जो सही मायनों में प्रदूषण से नुकसान का कारण इससे संबंध अधिकारियों के चलते हो रहा है। दूसरी तरफ दीवाली से पूर्व पटाखों की बिक्री और उनके छोड़ने पर पाबंदी लगाने और उसका पालन कराने के दावे हर स्तर पर किए गए। लेकिन गत रात को आठ बजे से 12 बजे तक जो धूमधड़ाका हुआ वो कुछ नागरिकों के अनुसार पिछले साल से भी ज्यादा था। सवाल यह उठ रहा था कि जब आतिशबाजी की बिक्री पर रोक थी तो इतनी बड़ी तादात में पटाखें कहां से आ गए। इस बारे में एक पर्यावरण प्रेमी का कहना था कि दावे और छापे सिर्फ दिखाने के लिए थे जिन लोगों को इसका पालन कराना था उन्हें पता था कि कहां आतिशबाजी बिक रही है फिर भी वो सब हुआ जो एनजीटी के आदेशों के अनुसार नहीं होना चाहिए था।
प्रधानमंत्री जी और मुख्यमंत्री जी सरकार जनहित में जो योजनाएं और आदेश कर रही है वो अगर लागू हो जाएं तो वाकई में वो जनहित के बड़े काम हो सकते हैं लेकिन इन्हें पूरा करने और इसका पालन कराने वालों की लापरवाही के चलते जो गलतफहमियां पैदा हो रही है कि इन योजनाओं का लाभ सत्ताधारी दल को चुनावों में मिलेगा वो गफलत बनकर ना रह जाए इसके लिए आदेशों का पालन कराने की बड़ी आवश्यकता है वरना नागरिकों का यह कथन सही प्रतीत होता है कि जनहित के आदेश हाथी के दांत दिखाने के कुछ और खाने के कुछ और के समान हो गए है। उक्त लाइन लिखे जाने तक दीपावली पर कोई बड़ा संवेदनशील समाचार सुनने को नहीं मिला तो प्रशासनिक अधिकारियों की व्यूह रचना का ही परिणाम हो सकता है। जिसके लिए इस काम में लगे सभी अफसर बधाई के पात्र हैं।

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