बीते दिनों देश में शादी विवाह की भरमार के बीच कुछ शादियां चर्चा का विषय भी बनी और उससे यह साबित हुआ कि सबकी सोच और कार्यनीति एक समान नहीं हो सकती। कुछ अगर अच्छे निर्णय लेने में सक्षम हैं तो कई लालची इस जीवनभर के साथ को अपना बैंक बैलेंस बढ़ाने और सुविधा जुटाने का माध्यम भी बना रहे हैं। यह सही है कि जिस प्रकार हाथ की अंगुलियां एक समान नहीं होती उसी प्रकार सबके निर्णय भी समान नहीं होते। शादी विवाह ऐसा बंधन है तो अनबन के साथ प्रेम और आस्था बनी रही है जो गाड़ी के पहियों के समान परिवार को आगे बढुाने का काम करती है।
अभी पढ़ने को मिला कि सुबह घर आई दूल्हन रात को सामान समेटकर चली गई। एक लड़की ने कई विवाह किए और घर का सामान बांधकर ले गई। तो ऐसा भी सुनने को मिलता है कि विभिन्न नामों पर शांदिया करती और फिर लड़के व उसके परिवार को ब्लैकमेल कर पैसे लेने का काम कर रही है। ऐसे में हम महिलाओं को तो हम गलत नहंीं कह सकते लेकिन इन पवित्र संबंधों को बांधे रखने के लिए हमें लालच हर प्रकार का अपने से दूर रखना होगा। मेरठ के दौराला में दुल्हन करती रही इंतजार सिपाही दूल्हा बीस लाख की मांग पूरी ना होने पर बारात लेकर ही नहीं पहुंचा। दूल्हे अभिषेक शर्मा और उसके पिता गोपाल शर्मा पर दहेज व अन्य धाराआं में मुकदमा दर्ज हुआ। तो दूसरी तरफ यह भी मिसाल रही कि सहारनपुर के बड़ा गांव के दूल्हे ने गांव शब्बीरपुर निवासी अजब सिंह की बेटी की शादी में शगुन के १३ लाख लेने से मना कर दिया। गांव टावर की बेटी अंजना का रिश्ता फुगाना निवासी उत्कर्ष पुंडीर के साथ तय हुआ था। बीते दिवस बारात गांव में आई तो कन्या पक्ष ने शगुन के पांच लाख दिए जिन्हें दूल्हे ने लेने से इनकार कर दिया। मुझे लगता है कि इन दोनों ही मामलों के हीरो उत्कर्ष पुंडीर व गुलशन से प्रेरणा लेकर दहेज प्रथा का समापन और शादियों में दहेज मांगने वालों का बहिष्कार करने में पीछे नहीं रहना चाहिए क्योंकि अब समाज में सिर उठाकर चलने के लिए दूल्हा और दूल्हन को कुछ उदाहरण प्रस्तुत करने की आवश्यकता है
(प्रस्तुतिः- रवि कुमार बिश्नोई संपादक दैनिक केसर खुशबू टाइम्स मेरठ)
गुलशन व उत्कर्ष ने दहेज के १८ लाख रूपये ना लेकर पेश किया सराहनीय उदाहरण, दहेज मांगने वालों का हो समाज में बहिष्कार
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