Tuesday, October 14

दशहरा पर्व पर हार्दिक बधाई व शुभकामनाएं! रामलीलाओं की बढ़ती संख्या और भव्यता भगवान राम की प्रेरणा

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हजारों साल पहले त्रेता युग में जन्मे भगवान श्रीराम ऐसे आदर्श हुए हैं जिन्हें आज भी सर्वमान्य प्रेरणास्त्रोत आदर्श के रूप में हर सोच वाला व्यक्ति मान रहा है। जब-जब हर साल रामलीला का समय आता है तो इसे लेकर बचपन से जुड़ी आज तक की सभी स्मृतियां ताजा हो जाती हैं और वर्तमान में किसी भी परिस्थिति में जीवन यापन कर रहे हो मगर जब वो सामने नजर आती है तो मन मयूर नाचने लगता है। व्यक्ति अमीर हो या गरीब हर कोई हर साल दशहरा पर्व बुराईयों पर अच्छाई की जीत के प्रतीक के रूप में मनाता है।
दोस्तों भगवान राम इतिहास में ऐसे अकेले महापुरूष नजर आते हैं जो अपने पिता के कहने पर सिंहासन त्याग 14 वर्ष के लिए वनवास चले जाते हैं। अपनी पत्नी सीता को उस समय के सबसे ताकतवर असुर रावण से मुक्त कराने के लिए वानरों और अन्य जानवरों की सेना लेकर उससे युद्ध करते हैं और सफल रहते हैं। यह उनके प्रेरणास्त्रोत व्यक्ति का ही प्रभाव है कि हम आदिकवि ऋषि वाल्मिीकी से लेकर तुलसीदास जी की पुस्तकों से लेकर दुनिया में जो 300 रामकथाएं प्रचलित हैं उनके बारे में जान सकते हैं। साथियों जैसे जैसे समय सरक रहा है रामलीलाओं की भव्यता और संख्या बढ़ती ही जा रही है मगर रामलीलाओं के प्रदर्शन और प्रस्तुतिकरण के पीछे जो पवित्र भावना थी वो अब घटती और आयोजकों द्वारा अपनी स्थापना करने की होड़ बढ़ती जा रही है। वर्तमान समय में तो ऐसा हो गया है कि कौन कितनी बड़ी रामलीला का प्रस्तुतिकरण करेगा और कितना चंदा उगाहकर खर्च किया जाएगा। जो सबसे आगे होगा उसी की रामलीला बड़ी बताई जाने लगती है और उनके पात्रों के साथ साथ आयोजकों को भी हमारे वर्तमान नायक सम्मानित करने में नहीं चूक रहे हैं। चाहे कुछ आयोजकों की भावना और कार्यप्रणाली बिल्कुल ही भगवान श्रीराम द्वारा दिखाए गए मार्ग और प्रेरणास्त्रोत प्रसंगों से बिल्कुल अलग ही क्यों ना हो। यह सब ऐसे प्रकरण है जिनका रामायण से कोई सीधा संबंध नहीं है क्योंकि वो तो सीधे सज्जन सेवाभावी व्यक्तियों के राम थे। और उनके कार्यकाल से हमें प्रेरणा भी यही मिलती है। जो हमारे वर्तमान ज्यादातर रामलीलाओं के आयोजक जितना देखने में आ रहा है वो भगवान राम के सिद्धांत लगभग भूल गए हैं क्योंकि भगवान राम तो बुराईयों का संहार करने वाले नैतिक मानवीय और सामाजिक मूल्यों के प्रतीक हैं। भगवान श्रीराम का जीवन सदमार्ग पर चलने और दूसरों की मदद करने की प्रेरणा देता है। यह पर्व आशा उत्साह के साथ लक्ष्य प्राप्ति का संदेश देने के साथ ही आतंक अधर्म रूपी रावणों का वध कर बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है।
आओ इस पावन पर्व पर हारेगी बुराई जीतेगी सच्चाई सारे बाहुबली है हाईफाई उनके अंत की घड़ी आई भावनाओं के साथ दशहरे के इस पावन पर्व पर भगवान श्रीराम के प्रेरणास्त्रोत मार्ग पर चलने की शपथ लेते हुए इस कामना कि रामलीला की आधुनिक भव्यता और उसे आधुनिक रूप में ढालने की जो योजना कुछ आयोजकों के मन में पनपती रही है वो समाप्त होगी और जो पैसा अतिथियों की कृपा प्राप्त करने के लिए आवभगत पर खर्च होता है वो कम होगा और जो प्रंसंग रामलीला से दूर दूर तक संबंध ना होने वाले दिखाएं जाते हैं उन्हें छोड़कर इकटठा पैसा कर दशहरे के दिन गरीब कन्याओं और जरूरतमंदों की जीवन में जरूरी वस्तुओं को बांटकर सेवा भावी काम किए जाएंगे। इन्हीं शब्दों के साथ सभी को इस पावन पर्व की बधाई देते हुए आशा व्यक्त करता हूं कि हम सब मिलकर देश की अखंडता गरीब आदमी की मजबूरियां समाप्त करने और सेवा का कार्य करेंगे यही रामलीला और भगवान राम का जीवन हमें संदेश देता है।
(प्रस्तुतिः- रवि कुमार बिश्नोई संपादक दैनिक केसर खुशबू टाइम्स मेरठ)

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