Saturday, July 27

छोटे दुकानदारों को पकड़ने की बजाए सरकार या न्यायालय लगाये पटाखों के निर्माण पर प्रतिबंध, बिजली से चलने और ग्रीन आतिशबाजी को दिया जाए प्रोत्साहन

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जस्टिस एएस बोपन्ना एवं जस्टिस एमएम सुंदरेश की पीठ ने पूरे देश में पटाखों पर प्रतिबंध के संदर्भ में कहा कि पर्यावरण को दूषित कर जश्न मनाने का मतलब पूरी तरह स्वार्थी होना है। इस संदर्भ में किसी नये निर्देश की जरूरत नहीं है। राजस्थान सरकार के पिछले आदेश पर विशेष ध्यान देना होगा। पीठ का कहना था कि पूर्ण प्रतिबंध तब तक लागू नहीं किया जा सकता जब तक सब लोग इनका इस्तेमाल बंद करने की जिम्मेदारी नहीं लेते। बरियम पटाखों पर प्रतिबंध के मामले में त्यौहारों के दौरान वायु एवं ध्वनि प्रदूषण के संदर्भ में राजस्थान के शीर्ष अदालत के आदेशों का पालन कराने का निर्देश देने की मांग पर मांग की अर्जी पर आया।
ये सही है कि बैरियम और प्रतिबंधित रासायन के इस्तेमाल से सब तरह का प्रदूषण फैलता है और उससे कई प्रकार की बिमारियां उत्पन्न होने का खतरा बना रहता है। बताते है कि दिल्ली और एनसीआर ही नहीं पूरे देश के लिए पटाखों पर लगे है प्रतिबंध।
स्मरण रहे कि साल भर में शादी विवाह अन्य समारोह और सभी वर्गों के त्यौहारों पर आतिशबाजी कहीं खुशी में तो कहीं दिखावे के लिए तो कहीं धार्मिक दृष्टिकोण से की जाती है। और यह भी पक्का है कि कोई भी व्यक्ति और समुदाय अथवा सरकार पूरी तौर पर कोरोना जैसी शक्ति बरते बिना पटाखों को चलाने को प्रचलन पर रोक नहीं लगा सकती। मेरा मानना है कि जनहित में बिजली वाले पटाखों ग्रीन आतिशबाजी तथा प्रदूषण न फैलाने वाले रोशनी पटाखों को अगर प्रोत्साहन दिया जाए तो इस समस्या का समाधान फिर भी तभी हो सकता है जब पूरे देश में आतिशबाजी बनाने वाले कारखानों पर बारहों महीने 24 घंटे नजर रखी जाए और उनके निर्माण पर पूर्ण प्रतिबंध लगाया जाए। क्योंकि जब ये बनेगी ही नहीं तो बिकेगी कैसे और अगर कोई घरों में बनाते पकड़ा जाता है तो सजा से ज्यादा उसे सामाजिक रूप से प्रताड़ित किया जाए जिससे उसका हर्ष देख अन्य ऐसा करने की ना सोचे।
माननीय प्रधानमंत्री जी अदालत भी आदेश कर रही है जिला प्रशासन पुलिस भी प्रतिबंध लगा रही है लेकिन करोड़ों रूपये के पटाखे पकड़े जाने के बावजूद आतिशबाजी चलने की आवाजें भी सुनाई देेती है। तो कहीं न कहीं से तो ये आती ही होंगी। लेकिन छोटी मछलियों की भांति इन गली मौहल्लों के छोटे दुकानदारों या थोक में पटाखे बेचने वालों की गिरफ्तारी से कुछ होने वाला नहीं हैं। इससे तो इस चर्चा को ही बढ़ावा मिलता है कि पकड़ने वालों ने करोड़ों के पकड़े लाखों के दिखाये। अथवा सुविधा शुल्क बढ़ाने के लिए छापेमारी हो रही है इससे जहां ईमानदार अफसरों की छवि भी पटाखों के धुएं के समान धूमिल हो रही है। वहीं जो समय सरकारी अधिकारियों व पुलिस वालों का विकास कार्यों को गति देने अथवा कानून व्यवस्था कायम कर भय मुक्ति वातावरण बनाने में लगना चाहिए वो पटाखों की बिक्री और इनके चलने में रोकथाम में ही निकला जा रहा है।
एक सामान्य नागरिक की भांति मेरे मन में भी विचार उठता है कि सरकार कई कारणों से आतिशबाजी के मामले में कोई बड़ा कठोर निर्णय ले नहीं पाएंगी इसलिए पर्यावरण संतुलन बनाये रखने के पक्षधर नागरिकों का मानना ही उचित है कि माननीय न्यायालय आतिशबाजी से होने वाले नुकसान का संज्ञान लेकर खुद किसी भी प्रकार का प्रदूषण फैलाने वाली आतिशबाजी के निर्माण पर रोक लगाते हुए इनकी फैक्ट्रीयों पर सील लगाकर इनके संचालकों को निर्देश दे कि वो कोई और ऐसे उत्पादन तैयार करे जो प्रदूषण न फैलाते हो और जनहित के हो। क्योकि अब धीरे धीरे जो परिस्थितियां उत्पन्न हो रही है इसलिए इसका समाधान तो खोजना ही होगा और सभी जानते है कि भय बिन प्रीत न होए गोपाला को आत्मसात कर जब तक कार्यवाही नहीं की जाएगी पटाखे जैसा दिखाई दे रहा है चोरी से बिकते और चलते रहेंगे।
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