Wednesday, February 12

बीवी को निहारने की बजाय उद्योगपति सरकार से मिलकर आम आदमी की समस्याओं के समाधान के बारे में सोचें ?

Pinterest LinkedIn Tumblr +

एलएंडटी के सीएमडी एसएस सुब्रहमण्यम द्वारा कर्मचारियों से 90 घंटे काम लेने के बयान के बाद देश के बड़े उद्योगपतियों में एक बहस छिड़ गई है। कोई कह रहा है कि मैं अपनी बीवी को पूरे दिन निहार सकता हूं। तो कुछ के द्वारा अलग अलग टिप्पणी की जा रही है। ज्यादातर इन शब्दों के लिए एसएस सुब्रहमण्यम की आलोचना ही कर रहे हैं। एक खबर में छपा था कि अडानी ने कहा था कि कोई घर पर आठ घंटे से ज्यादा रहेगा तो बीवी भाग जाएगी तो हर्ष गोयनका ने कहा कि लंबे समय तक काम करना कामयाबी नहीं थकान का सबब बन सकता है। यह तो इन बड़े लोगों की राय व सोच है। यह सुविधा संपन्न और आर्थिक रूप से मजबूत है। इसलिए इस बिंदु को लेकर जो चर्चा कर सकते हैं कर रहे हैं। किसी को आठ घंटे से ज्यादा काम करने के बाद थकान चढ़ जाएगी तो किसी की बीवी इससे ज्यादा काम करने पर भाग जाएगी। कौन अपनी बीवी को कितनी देर निहार सकता है यह विषय विचार योग्य नहीं है। सोचने की बात यह है कि देश का आम आदमी कितने घंटे काम कर रहा है। जहां तक नजर आता है। उसके हिसाब से गांव गली शहर कस्बों में रहने वाला आम आदमी घर से निकलकर लौटकर आने तक लगभग 12 घंटे काम में व्यस्त रहता है। कुछ तो आर्थिक परिस्थितियों को ठीक करने के लिए ओवरटाइम भी करते हैं। इंसान वो भी है। सोचने समझने की ताकत उनमें भी है। लेकिन इसे मजबूरी कह लें या वक्त की मांग जो भी हो कुछ लोगों को तो अब यह काम करना प्रिय लगने लगा है। उन्हें अब 12 घंटे काम करना मेहनत नहीं रोजमर्रा की व्यवस्था लगती है। इसलिए मुझे लगता है कि इन बड़े उद्योगपतियों को काम के घंटों को लेकर चर्चा करनी है तो यह जितने घंटे काम करना चाहें करें मगर हर किसी के यहां बड़ी तादात में कर्मचारी काम करते हैं तो समझते सब है कि किसके सामने क्या परेशानी है। चाहे एसएस सुब्रहमण्यम हो या अडानी अंबानी अथवा नारायण मूर्ति अगर इस बहस को सकारात्मक रूप से लेकर सरकार को एक सुझाव दें कि कुछ ऐसी व्यवस्था करें जिस प्रकार से बेरोजगारों को भत्ता देने की बात चल रही है उसी प्रकार से अपने परिवार का पालन पोषण करने के लिए निजी संस्थानों में काम करने वाले कर्मचारी को जो वेतन उसे मिलता है उसके अलावा सरकार 10 हजार रूपये माह का भत्ता हर कर्मचारी को देना तय करे इसमें काम के घंटों को लेकर बात करने वाले उद्योगपति भी अपनी सहभागिता करे। यह नियम बनाया जाए कि इतने घंटे से ज्यादा प्राइवेट संस्थानों में कर्मचारी चाहकर भी काम नहीं करेगा और उसकी एवज में सरकार उसे हर माह मुआवजा देगी।
क्योंकि यह बात सही है कि देश की आर्थिक दिशा ज्यादातर मामलों में उद्योगपति तय करते हैं तो बड़े स्तर पर व्यापारी रोजगार देता है। और सरकार उसकी समस्याओं के समाधान के साथ ही एक व्यवस्था बनाती है। लेकिन इस सबके बाद भी जो आम आदमी सबसे ज्यादा मजबूर होने के बाद भी समाज की प्रगृति देश के विकास और उद्योगधंधों के उत्थान में अपना योगदान देता है उसे कोई भी भुला नहीं सकता। सत्ता संभाल रही पार्टियों को तो बिल्कुल भी नहीं क्योंकि आज वो इस आम आदमी की वजह से ही सरकार चला रहे हैं।
कुल मिलाकर कहने का आश्य सिर्फ इतना है कि बीवी को निहारना जैसी बातों से उभरकर यह बड़े उद्योगपति अपनी काबिलियत का उपयोग सरकार के साथ मिलकर आम नागरिकों के हित में करेंगे तो वो सबसे अच्छा और सदकार्य नागरिकों के हित में होगा।
(प्रस्तुतिः रवि कुमार बिश्नोई संपादक दैनिक केसर खुशबू टाइम्स मेरठ)

Share.

About Author

Leave A Reply