Wednesday, November 12

कम उपस्थिति पर कानून के छात्रों को न रोका जाए परीक्षा देने से

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दिल्ली हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसला देते हुए कहा कि कानून के छात्र को कम उपस्थिति के आधार पर परीक्षा देने से नहीं रोका जाएगा। न्यायमूर्ति प्रतिभा एम सिंह और न्यायमूर्ति अमित शर्मा की खंडपीठ ने इस बारे में स्वतंत्र संज्ञान एक याचिका पर लेते हुए उक्त फैसला दिया बताते हैं। बताते चलें कि २०१६ में एमिटी के छात्र सुशांत की आत्महत्या मामले के बाद सुप्रीम कोर्ट द्वारा शुरू की गई व्यवस्था के बाद यह कहा गया कि कानूनी शिक्षा इतनी कठोर नहंी होनी चाहिए कि छात्र की जान तक चली जाए। उन्होंने बीसीआई को नियमों में संशोधन के आदेश दिए और नई नीति तैयार करें।
अदालत का यह फैसला पूरी तौर पर युवाओं के हित में हैं और इससे पढ़ाई के उत्पीड़न से आत्महत्याओं पर रोक लगेगी। लोकतंत्र में सबको बोलने का अधिकार है इसलिए मेरा सुझाव है कि कानून के छात्रों को ही नहीं सभी छात्रों को इस सुविधा का लाभ मिलना चाहिए। क्योंकि जान सभी की कीमती है और समस्याएं सभी के सामने आती हैं। पहली कक्षा उच्च शिक्षा तक उपस्थिति की परेशानी बच्चो के बीमार पड़ने या अन्य कारणों से सामने आती है। मुझे लगता है कि कम उपस्थिति आत्महत्या कारण ना बने इसलिए यह भी तय किया जाए कि बहानेबाजी से कम उपस्थिति को आसानी से माफ नहीं किया जाना चाहिए क्येांकि यह सोच बन गई तो फिर किसी भी छात्र का भय समाप्त हो जाएगा जो नहीं होना चाहिए।
(प्रस्तुतिः- रवि कुमार बिश्नोई संपादक दैनिक केसर खुशबू टाइम्स मेरठ)

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