Friday, July 26

लापरवाही: लाइफलाइन नाले में छोड़ रहे फैक्ट्रियों का दूषित केमिकल

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मेरठ 14 फरवरी (प्र)। लापरवाही की इससे बड़ी मिसाल क्या होगी कि जिस नगर निगम को शहर की सफाई का जिम्मा दिया गया है। उसी नगर निगम के कर्मचारी शहरवासियों का जीना मुहाल कर रहे हैं। लाइफलाइन कहे जाने वाले नाले में वह फैक्ट्रियों का खतरनाक केमिकल युक्त कचड़ा छोड़ रहे हैं। पहले से ही सड़ रहे इन नालों में केमिकल और कीचड़ छोड़े जाने से आसपास की कालोनियों में रहने वाले लोगों का जीना मुहाल हो गया है।

हालात यह हो गये हैं कि जितना कूड़ा डलता है, उससे अधिक इन नालों में डाल दिया जाता है। हालांकि दुनिया दिखावे को सफाई का अभियान भी चलता है, लेकिन कूड़े को निकालकर बाहर ही डाल दिया जाता है। फिर कई दिन यह कूड़ा ऐसे ही पड़े रहने से इन मार्गों से गुजरना भी दुश्वार हो जाता है। शिकायत मिलने के बाद भी नगर निगम के अधिकारी चुप्पी साधकर तमाशा ही देखते रहते हैं।

किसी नाले की तस्वीर मैला पानी, गंदगी यही तो होती है, लेकिन अपने मेट्रो शहर की सबसे घनी आबादी गंगानगर में मीनाक्षीपुरम के पास लाइफलाइन वाले नाले की हकीकत कुछ और तस्वीर दिखा रही है। नाले में पानी, गंदगी, दलदल के ऊपर कूड़े और मलबे की ऐसी परत कि मानो जैसे कोई सड़क हो। हम बात कर रहे हैं गंगानगर शुरू होने से प्रारंभ में मीनाक्षीपुरम से गुजर रहे बड़े नाले की। यह नाला आगे जाकर मोहनपुरी, यूनिवर्सिटी के पास से गुजरता हुआ काली नदी से जाकर मिल रहा है। शहर के भीतर ही भीतर कई छोटे नाले व नालियां भी इस बड़े नाले से जुड़ते हैं।

नगर निगम और महापौर के नाला सफाई कराने, बेहतर निकासी देने के दावों को आइना दिखा रहा है नाला। मीनाक्षीपुरम के पास इस नाले के इर्द-गिर्द गंगा नगर, डिफेंस कालोनी, डिफेंस एंक्लेव जैसी वीआईपी कालोनियों के हजारों लोग रहते हैं। स्थानीय लोगों के मुताबिक नाले की गहराई भी करीब सात फीट है, लेकिन ऊपर कूड़े की परत है तो नीचे सिल्ट जमी पड़ी है। यहां कूड़े के ढेर सड़ने से वातावरण दूषित हो रहा है और आसपास का भूगर्भीय जल भी प्रदूषित कर रही है।

नगर निगम की देखा-देखी मवाना रोड की कई फैक्ट्रियों के संचालक फैक्ट्रियों का वेस्ट मेटीरियल गंगानगर में मुख्य मार्ग पर मीनाक्षीपुरम के नाले में ही डाल रहे हैं। जिससे पूरे नाले में झाग और जहरीली बदबू से सांस तक लेना मुहाल हो गया है। स्थानीय लोगों का कहना है कि पहले कई कंपनी संचालक बारिश के पानी की आड़ में फैक्ट्रियों का गंदा पानी व केमिकल इन नालों में छोड़ देते थे, लेकिन अब तक बिना बारिश आए भी रसायनयुक्त पानी छोड़ रहे हैं।

शहर के बड़े नालों को बच्चों और आमजन की सुरक्षा व स्वच्छता की दृष्टि से ऊपर से कवर किया जाना है, लेकिन यह नाला ऐसे ही खुला होने से अधिक दुश्वारी हो रही है। क्षेत्रवासियों का कहना है कि पहले नाला चौड़ा तो इतना ही था, लेकिन सफाई होती थी। अब सफाई न होने और पुलिया किनारों पर कूड़ा जमा होने से मच्छर और संक्रामक रोग पनपने लगे हैं। कोई सुनता नहीं है। हालांकि सफाई करने के लिए साल भर में कई बार नगर निगम वाले आते हैं। केवल ऊपर का कचरा हटाते हैं। ऐसा नहीं कि इस नाले पर किसी ने सफाई होते नहीं देखी। दिखावे के तौर पर यहां जेसीबी व 52 फीट बूम मशीन लगाकर नाले की सिल्ट भी निकाली जाती रहती है, लेकिन यह सिल्ट बाहर ही नाले के किनारे पर डाल दी जाती है।

जलभराव की समस्या को दूर करने के लिए जहां सरकार से लेकर प्रशासनिक अधिकारी ऐड़ी चोटी का जोर लगा रहे हैं तो वहीं नगर निगम के कर्मचारी समस्या को बढ़ावा देने में लगे हुए हैं। शासन द्वारा नालों में खुले में पानी नहीं छोड़ने के लिए सभी कंपनियों को पाबंद किया गया है तो वहीं दूसरी तरफ शहर के गंदे पानी को एसटीपी प्लांट तक लाने के लिए लगाए गए टैंकर गंदे पानी को एसटीपी प्लांट में न ले जाकर आबादी क्षेत्र में स्थित नालों में छोड़ रहे हैं।

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