हम 13 और 14 को देश का सबसे बड़े त्योहारों में शामिल होली मनाने जा रहे हैं। ब्रज क्षेत्र में तो आज भी लठठमार होली का बोलबाला मीडिया में सुर्खियां बना हुआ है लेकिन आम आदमी में देश की प्रगृति के लिए बढ़ती इच्छा और आर्थिक सुविधाएं व रोजगार में हो रही कमी बढ़ते खर्चों को देखते हुए त्योहार मनाने का तो पूरा जोश दिखाई दे ही रहा है लेकिन पहले जो एक एक सप्ताह पूर्व गली मोहल्लों व बाजारों में आने जाने वाले लोगों को बच्चों द्वारा पानी के गुब्बारे या रंग डालकर रंगा जाता था उसमें कुछ कमी इस साल नजर आ रही है जो एक अच्छी पहल नागरिकों और बच्चों की सोच की कह सकते है। एक तो इससे आम आदमी घर से निकलने में घबराता था। कपड़े खराब होते थे और भीगने से बीमारी का डर रहता था। इस बार ऐसा नजर नहीं आया। जो इस बात का प्रतीक है कि नागरिकों की सोच अब सकारात्मकता की तरफ बढ़ रही है।
दूसरी तरफ यह तो नहीं कह सकते है कि होली जलाने की संख्या कम हो रही और यह भी नहीं कहा जा सकता कि उसमें लकड़ियां जलाने में कोई कमी आई है। लेकिन एक बात कही जा सकती है कि जागरूकता के चलते कुछ स्थानों पर गोबर के उपलों से होलिका जलाने की जो परंपरा शुरू हुई है वो जनहित की है क्योंकि एक तो पेड़ों का कटान कम होने से पर्यावरण संतुलन बना रहेगा। दूसरे उपलों की होली से वातावरण शुद्ध होगा। भविश्य में यह कह सकते हैं कि आज जो शुरूआत है कल वो वृहद रूप ले सकती है। साथियों सुधार हर क्षेत्र में होता है। त्योहार मनाना मस्ती करना नाचना गाना हमारे जीवन के लिए बहुत जरूरी है। इसलिए जो सुधार अभी तक नजर आए हैं उन्हें और मजबूती देते हुए जब हम होली खेलने निकलें तो एक बात का ध्यान जरूर रखें कि सही सलामत बिना बीमारी लिए अपने परिवार में पहंुचे और अपनों को बधाई देने में पीछे ना रहे। इसलिए कैमिकल से युक्त रंग या पदार्थ उपयोग में ना लाए। मैं यह तो नहीं कहता कि टेसु के फूलों का उपयेाग करें लेकिन कम गुलाल और रंग खरीदें तो आपके परिवार के लिए यह त्योहार एक अच्छी यादें लेकर साल भर तक इसकी चर्चा कर सकते हैं। इसलिए आओ इस संकल्प के साथ होली को खूब मस्ती करें कि हम भी खूब मस्ती करें और पड़ोसी भी ना हो परेशान
(प्रस्तुतिः रवि कुमार बिश्नोई संपादक दैनिक केसर खुशबू टाइम्स मेरठ)
शालीनता पूर्ण माहौल में पूरे मस्ती और हुड़दंग के साथ खेलें होली
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