Thursday, November 13

सोशल मीडिया एसोसिएशन की मांग, नेपाली पीएम प्रतिबंध हटाएं, 26 सोशल मीडिया साइटों पर नेपाल में प्रतिबंध बना हिंसा का कारण, आंदोलनकारी और सरकार देश और जनहित में बैठकर करें वार्ता

हिंसा बुरी है चाहे वह किसी भी बात के हित या अपने हितों पर कुठाराघात के लिए ही क्यों ना की गई हो। लेकिन यह भी जरुरी है कि शासक चाहे प्रशासनिक अधिकारी हो या सरकार उन्हें भी यह सोचना होगा कि ऐसा कोई आदेश या काम ना किया जाए जिससे विद्रोह की भावना पनपती हो। क्योंकि जब भी कहीं छोटी बड़ी ऐसी घटनाएं घटती है तो उसका खामियाजा आम आदमी के साथ साथ इसमें शामिल लोगों के परिवारों को भी भुगतना पड़ता है और जिस शहर में यह होती है वहां के विकास में बाधा उत्पन्न होना अनिवार्य है। इसलिए मेरा मानना है कि भले दो दिन बाद तुम्हारी बात सुनी जाए और सामने वाला उत्पीड़न की कार्रवाई पर ना उतरे तो हिंसा ना करनी चाहिए और ना किसी को करने देनी चाहिए। युवाओं को यह बात विशेष रूप से ध्यान देनी होगी कि मांग कितनी भी बड़ी हो सकती है लेकिन महात्मा गांधी ने अपने साथ घटी छोटी घटना को लेकर अहिंसक आंदोलन छेड़ा हो लेकिन उनके शांतिपूर्ण संघर्ष के चलते देश को आजादी मिली और अंग्रेजों को भागना पड़ा।
वर्तमान समय में किसी से यह छिपा नहीं है कि सोशल मीडिया हर घर में किसी ना किसी की पसंद और काम का माध्यम बन रही है। दुनियाभर में हमारे युवा इसके माध्यम से बड़ी उपलब्धियां प्राप्त कर रहे हैं। और कुछ तो प्रचलन में आने के बाद आर्थिक कठिनाईयों और सामाजिक अवहेलना को ही भूल गए हैं क्योंकि इसके माध्यम से उपलब्धियां पैसा और सम्मान मिलता है वो आसानी से बिना बड़ा खर्च किए प्राप्त होने वाला नहीं है। पड़ोसी मित्र देश नेपाल जिसे हिंदू राष्ट्र भी कहा जाता है में सरकार द्वारा चार सितंबर को फेसबुक वॉटसऐप सहित 26 सोशल मीडिया साइटों पर प्रतिबंध लगाया गया जिसका शांतिपूर्ण प्रदर्शन शुरू हुआ लेकिन मामला जहां तक पढ़ने देखने को मिल रहा है संबंधित प्रतिबंध लगाने वालों ने सही प्रकार से टेकल नहीं किया। परिणामस्वरूप जो हिंसा भड़की उसके हाल सबके सामने हैं किसी को बताने की आवश्यकता नहीं है। इस आंदोलन और उसके बाद घटी घटनाओं से पीड़ितों को खबरों के अनुसार कलाकारों अभिनेताओं का समर्थन मिल रहा है। गत दिवस दिन में साढ़े बारह बजे से संसद भवन के आसपास के इलाकों में रात दस बजे के लिए कर्फ्यू भी लगाया गया। 350 प्रदर्शनकारी पुलिस के साथ झड़प में घायल हुए जिनमें कई गंभीर बताए जाते हैं। काठमांडू में प्रदर्शनकारियों पर गोलियां चलाने के बावजूद युवाओं का कहना है कि सरकार हम पर यह फैसला थोप नहीं सकती
मुझे लगता है कि सोशल मीडिया पर प्रतिबंध लगाने के बाद विरोध की जैसे ही सुगबुगाहट शुरू हुई थी सरकार को आंदोलनकारियों को बुलाकर वार्ता करनी चाहिए थी और जिस बात को लेकर फेसबुक, मैसेंजर, इंस्टाग्राम, एक्स, लिंक्डइन, रेडिट, थ्रेड्स, यूट्यूब, स्नैपचौट, पिंटरेस्ट, सिग्नल, क्लबहाउस और रंबल टिकटॉक, वाइबर, विटक, निंबज और पोपो लाइव पर कार्रवाई की गई उसका समाधान वार्ता से निकाला जा सकता था। अगर सही प्रकार से कोशिश होती तो नेपाल में सोशल मीडिया पर प्रतिबंध को लेकर इतनी बड़ी कार्रवाई नहीं होती क्योंकि दुनियाभर में विभिन्न अवसरों पर जनहित में प्रतिबंध लगता है मगर कुछ देशों जैसे चीन, ईरान, उत्तर कोरिया, माली, जापान, अमेरिका, फ्रांस नार्वे जॉर्जिया, केन्या, बांग्लादेश और श्रीलंका में तो सोशल मीडिया पर प्रतिबंध के बाद आंदोलन तेज हुए लेकिन बाकी देशों में ऐसा अभी सुनने को नहीं मिला। नेपाल में प्रमुख 26 सोशल मीडिया साइट पर प्रतिबंध से जेन-जी युवा नाराज थे। इन युवा प्रदर्शनकारियों की भावना सरकार ने भाप ली होती तो जो हुआ वो शायद नहीं हुआ होता। फिलहाल भ्रष्टाचार असमानता के खिलाफ जो युवाओं का गुस्सा गहरा रहा है इस संकट को टालने के लिए गोलियां बरसाने की बजाय नेपाल सरकार और उसके प्रतिनिधियों को प्रदर्शनकारियों से वार्ता कर मामले में सुलझाया जा सकता है वरना सोशल मीडिया की आवश्यकता कहीं आगे तक बढ़ सकती है इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता। कुछ लोग कह रहे हैं कि प्रतिबंध से सोशल मीडिया से कमाई का जरिया था वो रूका इसलिए विद्रोह भड़का तो इस बारे में यह कहा जा सकता है कि यह बिंदु इतना बड़ा नहीं था कि प्रदर्शन उग्र हो जाए और पुलिस को गोलियां बरसानी पड़े। इस आंदोलन में मरने वालों की संख्या छपी खबरों में विरोधाभासा हो सकता है क्योंकि पंजाब केसरी ने लिखा 16 मरे तो राष्ट्रीय सहारा ने 19 तो जनवाणी ने 20 की बात कही। खबरों के अनुसार अगर प्रदर्शनकारियों पर गोली ना चलाई जाती और पानी की बौछार और रबर की गोलियां चलाई होती तो बागेश्वर काठमांडू, मेटोपोलिटन सिटी महाराजगंज, नारायण हित दरबार सिंह दरबार क्षेत्र में कफ्ूर्य नहीं लगाना पड़ता। कहते हैं कि हर समस्या का समाधान मिल जाता है इसे ध्यान में रखते हुए नेपाल के पीएम केपी शर्मा औली गठबंधन की सरकार चला रहे हैं उन्हें व अन्य दलों के नेताओं को शांतिवार्ता से इस आंदोलन को समाप्त करने हेतु युवा प्रदर्शनकारियों से बात करनी चाहिए। उससे पहले यह आश्वासन दिया जाए कि अगर सही निष्कर्ष निकलता है तो सोशल मीडिया पर प्रतिबंध हटाया जाएगा। जान किसी की भी गई हो लेकिन वह किसी का लाल तो होगा कि इसे ध्यान में रखते हुए नेपाल सरकार तुरंत मृतकों के परिवारों को मुआवजा और राहत व घायलों के पूर्ण इलाज की घोषणा करे।
आज की तारीख में पांच साल के बच्चे से लेकर 90 साल का बुजुर्ग तक वॉटसऐप फेसबु्रक पर सक्रिय है। यह बात सही है कि भले ही 18 साल के कम का अकांउट ना खुलने की बात हो तो लेकिन इससे कम उम्र के बच्चों को रोटी के लिए सोशल मीडिया का सहारा लेना पड़ रहा है। दुनिया में कई परिवार सम्मान के साथ जीवन यापन कर रहे हैं। आज शायद ही कोई क्षेत्र ऐसा है जहां सोशल मीडिया का यूज ना हो रहा हो। आदिवासी इलाकों में भी कोई घटना घटती है तो वो सोशल मीडिया के माध्यम से वायरल होनी लगी है और जो लोग इसकी आलोचना करते हैुं वो खुद 16 घंटे तक इसका उपयोग कर रहे हैं। मैं सोशल मीडिया एसोसिएशन एसएमए जो भारत की पहली सोशल मीडिया में शुमार है के राष्ट्रीय अध्यक्ष के रूप में प्रदर्शनकारियों से अपील करता हूं कि वो वार्ता का मार्ग अपनाएं क्योंकि हिंसा किसी समस्या का समाधान नहीं है। उससे कष्ट जीवन में उत्पन्न हो जाते हैं। नेपाली पीएम को इस मामले में युवाओं की भावनाओं पर मरहम लगाने के लिए देशहित में काम करना होगा क्योंकि यह सोशल मीडिया का सैलाब ऐसी गति है जिससे कोई भी जीत नहीं सकता। हर व्यक्ति की भावना से यह मुददा जुड़ा है इसलिए शांति से समाधान निकालने के लिए पुलिस कार्रवाई पर संयम रखा जाए जिससे आंदोलन और ज्यादा ना भड़के। दुनिया जानती है कि सख्ती से लोगों की भावनाओं को रौंदा जा सकता है मगर आंदोलन दबाए नहीं जा सकते। इसके प्रमाण के रूप में कई देशों के हुए विभाजन को देखा जा सकता है। भारत सरकार को नेपाल की वर्तमान स्थिति और सोशल मीडिया को लेकर करनी चाहिए पूर्ण समीक्षा।
(प्रस्तुतिः- रवि कुमार बिश्नोई संपादक दैनिक केसर खुशबू टाइम्स मेरठ)