Saturday, July 27

पुजारियों के लिए है खुशखबरी राम मंदिर में मिल रहा है मोटा वेतन, सभी प्रबंध समितियों को करनी चाहिए व्यवस्था

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श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट द्वारा अयोध्या के राम मंदिर में दैनिक अनुष्ठान करने वाले पुजारियों के वेतन में बढ़ोतरी करते हुए मंदिर के प्रधान पुजारी आचार्य सतेंद्रदास के अनुसार अब दास को 32900 रूपये जबकि चार सहायकों को 31-31 हजार रूपये वेतन मिलेगा। यह सब राम जन्म भूमि अस्थायी मंदिर में दैनिक अनुष्ठान करते हैं। वैसे तो यह खबर एक सामान्य सी बात है लेकिन अगर ध्यान से देखा जाए तो इससे यह स्पष्ट होता है कि हिंदी और संस्कृत की शिक्षा प्राप्त कर अब हर व्यक्ति पूजा पाठ के माध्यम से अपनी काबिलियत के दम पर समाज में सम्मान के साथ ही अच्छा वेतन भी प्राप्त कर सकता है। स्मरण रहे कि बड़ोदरा में आरएसएस के महासचिव दत्तात्रेय होसबोल ने कार्यकर्ताओं से जाति आधारित भेदभाव को खत्म किए जाने के आग्रह के साथ कहा कि कोई भी कहीं भी मंदिर मंे प्रवेश कर सकता है। विरोध करने से नहीं काम करने से खत्म होगा भेदभाव। अगर दत्तात्रेय होसबोले की बात को सही मानकर चले तो अब यह मंदिरों में भी वर्ग व्यवस्था धीरे धीरे समाप्त हो सकती है क्योंकि आरएसएस के साथ समाज का एक बहुत बड़ा वर्ग कदम से कदम मिलाकर चल रहा है। और जब होसबोल की यह राय है तो कहीं ना कहीं इस पूरे वर्ग का समर्थन कहा जा सकता है। ऐसे में अब देर सबेर धार्मिक दृष्टि और पूजा पाठ के मामले में हिंदी और संस्कृत में पढ़े लिखे हमारे नौ जवानों को विदेश के साथ साथ देश में भी मंदिरों में नौकरी करने का मौका और वेतन दोनों मिल सकती हैं। मेरा मानना है कि जो मंदिर अच्छे और भक्तों को आकर्षित कर रहे हैं उनके अतिरिक्त जिन धार्मिक स्थलों के बारे में लोग अभी कम जानते हैं उनकी पहचान और जानकारी समाज को दी जाए। इनकी प्रबंध समितियां भी अपने यहां के पुजारियों को चढ़ावे की आय के अनुसार वेतन सेवा का पुरस्कार शुरू करे। क्योंकि पुजारी किसी नामचीन मंदिर का हो या गली मोहल्ले के मंदिर का। है तो सब भगवान के घर। जो पूजा करा रहा है वो हमारे लिए श्रद्धा और आदर का पात्र है। ऐसे में उसे किसी भी प्रकार की आर्थिक कठिनाई और सम्मान में कमी होना ठीक नहीं कह सकते। अब कुछ मंदिर समितियां यह भी कह सकती है कि हमारे यहां भक्त कम आते हैं या चढ़ावा नहीं चढ़ाते तो इसमें पुजारियों का तो कोई कसूर नहीं है। यह प्रबंध समितियों को देखना है कि वो कैसे मंदिरों की आमदनी बढ़ाएं जिससे पुजारी और उनका परिवार आर्थिक रूप से समर्थ और बच्चों के पालन पोषण की व्यवस्था कर पाए। इसमें एक सुझाव यह भी हो सकता है कि नए धार्मिक स्थान बनाने की जगह हम एकत्रित होकर पुरानों के जीणोद्धार का काम करें इससे जहां सरकार द्वारा नए धार्मिक स्थलों पर लगी रोक का पालन होगा वहीं पुराने का होगा उद्धार। और मुझे लगता है आवश्यकता पड़ने पर मंदिर समितियां सरकार से अनुदान भी मांग सकती है। क्योंकि जब आपदा आने पर सरकार सबकी आर्थिक मदद करती है तो फिर धार्मिक स्थानों पर नियुक्त पुजारियों की करने में शायद कोई कठिनाई नहीं होगी।

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