कुछ वर्ष पूर्व अमिताभ बच्चन और हेमामालिनी की एक फिल्म बागबा आई थी और उस समय वह अच्छा बिजनेस कमाने में सफल रही थी। अब भी जब उसका प्रदर्शन किसी चैनल या सिनेमा में होता है तो लोग खूब देखने जाते हैं और हर उम्र के सिनेमाप्रेमी इसे देखते हैं और हेमा मालिनी व अमिताभ बच्चन के बेटों ने जो फिल्म में किया उसकी आलोचना की जाती है। मगर ग्रामीण कहावत औरों को उपदेश बहुतेरे को साकार करते हुए समाज में हमारे कुछ भाई खूब ऐसी घटनाओं को अंजाम दे रहे हैं। अभी बीते दिनों बाप बड़ा ना भईया सबसे बड़ा रूपया वाली कहावत को साकार करते हुए मेरठ में हुमायंुनगर निवासी 85 साल के महमूद के निधन के बाद उसका अंतिम संस्कार करने की बजाय पुत्र संपत्ति को लेकर आपस में भिड़ गए। पांचों को पुलिस थाने ले गई और जब समझाया तो वो अंतिम संस्कार के लिए कब्रिस्तान ले गए। दूसरी तरफ गोपालगंज बिहार के रहने वाले 20 वर्षाीय हिमांशु पुत्र ओमप्रकाश अपनी 42 वर्षीय मां प्रतिमा देवी के साथ हरियाणा के हिसार में रहता है। बीते 13 दिसंबर को मां के पांच हजार रूपये ना देने पर उसने मां की हत्या कर दी और शव को सूटकेस में बंद कर दिया।
इसके अलावा सर्राफा व्यासायी रहे श्याम लाल के पांच संताने चार लड़के और एक लड़की उन्हें अपने साथ रखने को तैयार नहीं है। जिन बेटो की हर इच्छा और मांग श्यामलाल पूरी करते चले आए आज वो उन्हें अपने साथ रखने में पूरी तौर पर असमर्थ पा रहे है और इनका कहना है कि पिताजी की जो मांग है वो पूरी कर पाना संभव नहीं है। और उन्होंने मोदीपुरम के वृद्धाश्रम में बाप को पहुंचा दिया। मुझे लगता है कि अब समय आ गया है कि मां बाप को भी बच्चों के आचरण का जवाब उन्हीं के हिसाब से देना होगा। क्योंकि जीवनभर की कमाई औलाद हड़प ले और मां बाप को लावारिस छोड़ दे ना तो ये सही है और ना होना चाहिए। अब तो सरकार ने मां बाप के हित में इतने नियम बना दिए हैं कि अगर कोई बच्चा धोखाधड़ी से मां बाप की संपत्ति हड़प लेता और मां बाप को अपने साथ ना रखकर बोझ समझ लेता है तो ऐसे बच्चों से पूरी संपत्ति वापस ली जा सकती है। इतना ही नहीं मां बाप अदालत द्वारा उनकी कमाई के अनुसार आमदनी से अपना खर्च वसूलने और रहने का इंतजाम कराने के हकदार हैं। इसलिए मेरा स्पष्ट मानना है कि अगर बच्चे अपनी जिम्मेदारियां भूल रहे हैं तो मां बाप को भी सम्मान के साथ रहने का अधिकार है और इसकी जिम्मेदारी उन्हें बच्चों को उठानी ही पड़ेगी। मेरा मानना है कि सेवाभाव से सक्रिय कुछ लोगों को श्यामलाल की मदद करते हुए अगर वो अनाथ आश्रम में नहीं रहना चाहते तो उनकी अचल चल संपत्ति उन्हे दिखाकर उन्हें रहने का ठिकाना तय कराएं। क्योंकि वृद्ध की क्या मजबूरी है कि वो मन मानकर अनाथ आश्रम में अपना जीवन गुजारे। ऐसे बच्चों को समाज में भी यह दिखवाकर कि गलती किसकी है बहिष्कृत किया जाए। क्योंकि बचपन और बुढ़ापा एक समान होते। जब हर इच्छा अभिभावक पूरी करते हैं तो बच्चे यह कहकर नहीं बच सकते कि पिताजी की इच्छा पूरी नहीं कर सकते। पुलिस को भी श्यामलाल के मामले की गहन जांच करनी चाहिए।
जब मां बाप बच्चों की सब इच्छा पूरी करते हैं तो बुढ़ापे में उनका निरादर क्यों, समाज श्याम लाल जैसे वृद्धों को दिलाए न्याय व सम्मान
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