शहर के कुछ होटलों में जो कुछ होता है उसको लेकर आए दिन समाचार पत्रों में तमाम खबरें छपती हैं। इनमें से मर्डर और मारपीट व यौन शोषण के समाचार भी होते हैं और सभी को पता है कि बड़ी तादात में रिहायशी इलाकों व बाहरी क्षेत्रों में होटल नियम विरूद्ध चल रहे हैं। मगर ओयो होटलों पर पुलिस द्वारा मारे गए छापों का विरोध करने वाले जब इससे संबंध अच्छी खबरें नहीं छपती और इनकी कमियां उजागर होती हैं तो इन होटल का क्यों विरोध नहीं करता। जबकि यह किसी से छिपा नहीं है कि कानून व्यवस्था की स्थिति अपराधों और गलत नामों से दोस्ती कर लड़कियों को होटलों में लाकर उनका यौन शोषण की खबरों से पुलिस प्रशासन की बदनामी तो होती ही है यूपी के सीएम साहब की भावनाओं के अनुसार अपराध और भयमुक्त वातावरण की स्थापना भी प्रदेश में नहीं हो पा रही है। आखिर यह घटनाएं रोकने के लिए कभी ना कभी तो पुलिस को एक्शन में आना ही है। ऐसा आम नागरिकों का मानना है। कुछ तो इन ओयो होटलों में पड़े छापों को लेकर प्रसन्न है क्योंकि इनसे संबंध कई मामलों में उनके अपने भी परेशान हो चुके हैं। लेकिन होटल वालों की धींगामुश्ती के सामने किसी की चलती नहीं और आम दिनों में पुलिस ज्यादा ध्यान देती नहीं। यह तो एसएसपी रोहित सिंह सजवाण ने जो सख्ती दिखाई उसका परिणाम कितने होटलों पर छापा नजर आता है। बताते चलें कि शहर और देहात के 59 होटल सील किए गए। जिनमें से 35 होटल शहर और 24 होटल देहात के रहे। खबर के अनुसार इनमें से 80 प्रतिशत नियमों के विपरित चलना बताया गया। किसी में सराय एक्ट के तहत लाइसेंस नहीं था तो कुछ के पास फायर एनओसी नहीं थी। सीसीटीवी कैमरे खराब थे और 30 दिन का बैकअप भी नहीं था। पार्किंग नियमानुसार, कर्मचारियों का डाटा और वेरिफिकेशन रजिस्टर पूरा नहीं था और ज्यादातर अवैध रूप से निर्मित तथा घरेलू उपयोग की भूमि पर बने हुए मिले। अब इतनी कमियां होने के बाद भी अगर होटल एसो. छापों का विरोध कर रही है तो फिर ऐसा लगता है कि अब विरोध करने की हर मामले में प्रवृति बढ़ती जा रही है। 15 अगस्त को भी पुलिस ने कई होटलों पर छापा मारा था और उन्हें सुधार के निर्देश दिए गए थे। तो भी सुधार नहीं किया गया। पिछले दिनों गंगानगर निवासी सतेंद्र संदीप आशीष आदि ने जिलाधिकारी से शिकायत भ्ीा इस बारे में की थी कि कुछ घरों में ही होटल चलाए जा रहे हैं। वैसे भी जबसे यह ओयो होटल खुलने शुरू हुए तब से इनमें से ज्यादातर में होने वाली गतिविधियों को लेकर चर्चाएं आम रहती है। विरोध करने वाले एसोसिएशन के संरक्षक बताए जाने वाले मनोज गुप्ता खुद गढ़ रोड पर शासन की निर्माण नीति के विपरित बने दो अवैध विवाह मंडप चलाते हैं। इनकी एक विवाह मंडप में तो शादी विवाह होते हैं तो सारी सड़क जाम हो जाती और आवागमन में परेशानी होती है। ओयो होटलों में छापे तथा गत दिवस हुए विरोध प्रदर्शन में यह कहते हुए कि मानक पूरे होने तक होटल खोलने की मिले अनुमति की मांग करते हुए पुलिस पर उत्पीड़न का आरोप भी लगाया। उनकी बात से कोई इनकार नहीं करता है लेकिन जागरूक नागरिकों का यह मत उभरकर आया कि अब तक मानक क्यों पूरे नहीं किए गए। क्या आवासीय जगह में अवैध रूप से बने होटल क्या कभी भी मानक पूरे कर सकते हैं। इसकी गारंटी होटल एसोसिएशन दे सकती है। अगर ऐसा है तो कोई भी किसी का व्यापार खत्म नहीं कराना चाहता। होटल व रेस्टारेंट भी वक्त की आवश्यकता है। इसलिए होटल एसोसिएशन प्रशासन को लिखकर दे कि इतने दिन में होटल मानक पूरे कर लेंगे अथवा उन्हें बंद करेंगे। शासन की निर्माण नीति के अनुसार भूउपयोग बदलावाएं लेकिन जो भी हो विरोध की जो प्रवृति उभर रही है उसे ठीक नहीं कहा जा सकता। आखिर पुलिस प्रशासन की शासन के नियमों का पालन कराने की जिम्मेदारी होती है। वो पूरी ना होने से असंतोष और बदअमनी फैलने का खतरा बना रहता है। मैं यह तो नहीं कहता कि किसी का व्यापार बंद हो या सारे होटल नियम विरूद्ध चल रहे हों लेकिन कुछ के बंद होने से नागरिक खुश हैं क्योंकि चर्चा अनुसार यहां होने वाले कई अवैध कार्याें से लोगों को परेशानी का सामना करना पड़ता है जिससे छुटकारा दिलाना भी पुलिस प्रशासन की जिम्मेदारी है।
मानक के विरूद्ध चल रहे ओयो होटलों पर कार्रवाई का विरोध क्यों! एसोसिएशन सुधार क्यों नहीं कराती
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