Wednesday, March 12

पतंगबाजी रोकने अभिभावकों के खिलाफ कार्रवाई करने से चीनी मांझे की समस्या का समाधान ? पुलिस खुफिया तंत्र को सक्रिय करे

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देशभर में इस समय चीनी मांझा सबसे ज्यादा चर्चाओं का विषय बना हुआ है। आम आदमी के साथ साथ आसमान में उड़ने वाले पक्षियों के लिए भी घातक इस मांझे की रोकथाम के लिए नए नए बिंदु उभरकर सामने आ रहे हैं। लेकिन सही व्यवस्था और रोकथाम की बजाय औरों की छोड़ दें पुलिस प्रशासन भी नासमझी वाले वाक्य उछाल रहे हैं। एक खबर पढ़ी कि चीनी मांझे का उपयोग करने वाले बच्चों के अभिभावकों के खिलाफ होगी कार्रवाई तो दूसरा समाचार पढ़ने को मिला कि चाइनीज मांझे को लेकर पुलिस का छतों पर पहरा। इसकी रोकथाम के लिए पूरे दिन चला पुलिस का अभियान। मांझा मिला ना चरखी। तो एक सज्जन ने सुझाव दे डाला कि रिहायशी इलाकों में प्रतिबंधित हो पतंग उड़ाना। अब सवाल उठता है कि क्या यह संभव है क्योंकि पतंगे हमारी धार्मिक भावनाओं से भी जुड़ी हुई है। मकर संक्रांति से लेकर बसंत पंचमी तक खूब उड़ती है। भगवान राम ने भी एक जानकारी अनुसार पतंग उड़ाई थी। बच्चों के साथ बड़ों का भ्ीा यह शौक है। क्यों रिहायशी इलाकों में पतंगों पर रोक लग सकती है तो जवाब नहीं होगा। दूसरी ओर छतों पर भागने या चौकसी करने से चाइनीज मांझे का प्रचलन रूकने वाला नहीं है। ना ही अभिभावकों के उत्पीड़न की बात करके इसका समाधान मिल सकता है। यह किसी से छिपा नहीं है बच्चे काफी जागरूक और अधिकारों के प्रति सतर्क है। समाज के एक वर्ग का तो मनोरंजन का यह स्त्रोत है। बच्चों पर अंकुश लगाया नहीं जा सकता मगर अभिभावकों पर कार्रवाई को कोई भी सही नहीं कह सकता। अगर ऐसा होगा तो यह भी कहा जा सकता है कि कोई सरकारी आदमी गलती करता है कि उच्च पद पर बैठे व्यक्ति के खिलाफ हो कार्रवाई क्योंकि वह उसके विभाग का कर्मचारी है। इससे पुलिसकर्मी भी नहीं बच सकते। इसलिए अभिभावकों पर कार्रवाई या बंद हो पतंग उड़ाना किसी भी रूप में सही नहीं है।
समस्या पतंगबाजी नहीं है। समस्या है चाइनीज मांझा। क्योंकि यह इसका कारोबार करने वालों के लिए लाभ का धंधा है जिसे वो छोड़ना नहीं चाहते। मजे की बात यह है कि इसे कौन बेचता है। कहां से आता है और इसकी जानकारी रोकने वाले चाहे तो मुखबिरों को सक्रिय कर हर बात का पता चला सकते हैं। इस चीनी मांझे की बिक्री रोककर इस समस्या का समाधान पूर्ण रूप से कर सकते है। इसलिए मेरा मानना है कि एक कहावत कि एक जंगल में बंदर बहुत थे। उन्होंने सोचा संख्या में हम ज्यादा है तो राजा भी हमारा हो। चुनाव में बंदर ही राजा चुन लिया गया लेकिन समस्या का समाधान किसी जानवर की नहीं हो रहा था। कहने का मतलब है कि राजा बनने से ही मतलब नहीं है। व्यक्तिगत रौब का उपयोग कर चीनी मांझे की बिक्री रोक दी जाए तो ना तो इस मनोरंजन के साधन की रोक की बात होगी और ना पुलिस के जवानों को छतों पर भागना पड़ेगा। इसलिए थानेदार साहब अपनी सोच को आगे बढ़ाइये और अपने तंत्र से पता कर इस घातक व्यवस्था को रोकिए। आम आदमी और पक्षियों के हित में यही अच्छा है।
(प्रस्तुतिः रवि कुमार बिश्नोई संपादक दैनिक केसर खुशबू टाइम्स मेरठ)

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