देश में परीक्षाएं नियमानुसार हो जिससे बच्चे आगे बढ़कर परिवार और देश का गौरव बढ़ाने के साथ सफलता का ध्वज फहराते रहे। सरकारें भी ऐसा ही चाहती हैं। इसीलिए नए नियम प्रतियोगी परीक्षा के लिए बनाकर लागू करने की कोशिश की जा रही है। उनका कितना असर हो रहा है यह लागू करने वालों को देखना है। पारदर्शी वातावरण में परीक्षा कराने के लिए जिम्मेदारों को यह भी समझाना चाहिए कि कुछ फैसले व्यवस्था या धार्मिक दृष्टि से भी लिए जाएं जिससे कोई बखेड़ा ना हो और किसी की भावनओं को ठेस ना पहुंचे। बीते दिनों राजस्थान न्यायिक परीक्षा देने जयपुर पहुंची पंजाब की गुरप्रीत कौर को परीक्षा केंद्र में इसलिए प्रवेश नहीं दिया गया क्योंकि वो सिख धर्म के प्रतीकों के साथ परीक्षा देनी पहुंची थी। पहले भी ऐसी खबर पढ़ी थी कि परीक्षार्थी ने कलावा बांधा गया और उसने कहा कि यह धार्मिक गुरूओं ने बांधा है। उसे भी परीक्षा में नहीं जाने दिया गया। नोएडा में बीडीएस छात्रा को इसलिए परेशान किया गया कि उसके पास एक पर्ची मिली जो पेपर से कोई मतलब नहीं रखती थी।
परिणामस्वरूप 19 वर्षीय खूशबु ने अपनी जान दे दी। सरकार और शिक्षाा विभाग इस तरफ ध्यान देकर सुधार कराएं क्योंकि बच्चों को आत्महत्या के लिए उकसाने या पूरे साल की मेहनत बर्बाद करने के लिए नियम कानून नहीं बनाए गए हैं। परीक्षा सेंटर पर अधिकारी को यह भी समझाया जाए कि नकल की संभावना ना हो तो धार्मिक चिन्ह उतरवाने की जिद पर उतारू ना हो। कहा जाता कि दस मुजरिम बच जाएं लेकिन एक बेगुनाह को सजा ना हो इसका मकसद यही नजर आता है कि नियम कानून किसी का भविष्य बर्बाद करने के लिए नहीं है। सेंटर पर परीक्षक निर्णय ले तो बच्चों का भविष्य बचा रहेगा। वैसे भी कहा जाता है कि बच्चे कल का भविष्य है। इसलिए इस तरफ ध्यान देने की जरूरत महसूस की जा रही है।
(प्रस्तुतिः- रवि कुमार बिश्नोई संपादक दैनिक केसर खुशबू टाइम्स मेरठ)
परीक्षा सेंटरों पर निरीक्षकों व अधिकारियों को संयम से निर्णय लेने का पाठ भी पढ़ाया जाए
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