नरेंद्र मोदी जब पहली बार प्रधानमंत्री बनें तो कई राजनीतिकों और नागरिकों का कहना था कि उन्होंने सोशल मीडिया मैनेजमेंट में कई महारथी लगाए थे और उनके प्रचार से उनकी पार्टी चुनाव जीत गई। मेरा तब भी मानना था कि सोशल मीडिया से प्रचार के दम पर चुनाव जीता जा सकता तो इसके संचालक देश दुनिया के बड़े पदों पर होते। पूर्व में कुछ नामचीन चेहरों को छोड़ दें तो मीडिया के बड़े नाम भी इसमें सफलता प्राप्त नहीं कर सके। यह बात इससे भी सिद्ध होती है कि उत्तराखंड की यूटयूबर दीपा नेगा और हल्द्वानी में भीम सिंह भी ग्राम प्रधान का चुनाव हार गए। खबर के अनुसार रूद्रप्रयाग के एक गांव की दीपा नेगी उत्तरांखड की जानी मानी ब्लॉगर है। उनके चैनल पर 1.28 लाख फॉलोवर है लेकिन जब चुनाव का परिणाम आया तो इन्हें मात्र 269 वोट मिले जबकि समाज में रहकर काम कर रही उनकी प्रतिद्वंदी कविता को 480 वोट मिले और वो चुनाव जीत गई। इसी प्रकार से हल्द्वानी की बच्चीनगर पंचायत से प्रधान का चुनाव लड़ रहे भीम सिंह के चैनल पर 21 हजार सब्सक्राइबर है और फेसबुक पर 24 हजार लेकिन चुनाव में उन्हें मात्र 955 वोट ही प्राप्त कर पाए। जबकि उनके प्रतिद्वंदी हरेंद्र सिंह 1534 वोट लेकर प्रधान की कुर्सी पर काबिज हो गए। एक खबर के अनुसार उनके फालोवर ही उन्हें ट्रोल करने में लगे हैं। मेरा मानना है कि सोशल मीडिया की लोकप्रियता और समाज में सेवा भाव से काम करने वाले नागरिकों की प्रसिद्धि अलग अलग चीज है। सोशल मीडिया पर सक्रिय लोग अपने फॉलोवर बढ़ाते हैं उनकी रील पर उन्हें दुनिया से लाइक मिलते हैं लेकिन वह जिस शहर गांव में रहते हैं वहां उनका कोई योगदान नहीं होता क्योंकि वह समाजहित में काम करने के साथ ही अपने गांव शहर के विकास में योगदान दे सकते हैं मगर इस ओर कोई भी यूटयूबर शायद इस बारे में नहीं सोचता जबकि चुनाव की जगह रहने वाले जनता के बीच बने रहते हैं और उनके दुख दर्द में काम आते हैं। इसलिए उनकी जीत पर कोई आश्चर्य नहीं होना चाहिए। चुनाव परिणाम के बाद कोई कह रहा है कि सब्सक्राइबर को बूथ तक लाना भूल गए तो कोई कह रहा है कि रील से रियल्टी तक का सफर आसान नहीं है जबकि दीपा और भीम सिह ने चुनाव परिणामों को सम्मान देते हुए सबका धन्यवाद किया है। मेरा मानना है कि सोशल मीडिया के स्टारों की हार का मजाक नहीं उड़ाना चाहिए क्योंकि हर आदमी अपने फन में माहिर है। अगर वह चाहेंगे तो दीपानेगी और भीम सिंह सोशल मीडिया का लाभ उठाकर ग्राम पंचायत का भला कर सकते हैं क्योंकि जीतने के बाद भी कविता और हरेंद्र सिंह जब तक विकास कार्यो के प्रस्ताव सरकार तक भेजेंगे तब तक यह दोनों अपने माध्यम से पूरे देश को समस्याओं से अवगत करा सकते हैं। जब किसी की एक बात भी चल निकली तो अधिकारी गांवों की समस्या के समाधान के लिए सक्रिय हो सकते हैं। इसलिए ना कविता और हरेंद्र सिंह जीते और ना दीपा व भीम सिंह हारेंगे। उन्हें प्रशसकों द्वारा और मजबूती देने की जरूरत है जिससे वह नागरिकों की समस्या समाधान करा सके। ये दोनों ही नहीं अन्य यूटयूबर भी जो चुनाव में हारे वो भी अपने क्षेत्र के विकास को गति दे सके।
(प्रस्तुतिः- रवि कुमार बिश्नोई दैनिक केसर खुशबू टाइम्स मेरठ)
कविता और हरेंद्र सिंह भले ही पंचायत चुनाव जीते हों लेकिन जीत का सेहरा बांधने से चूके दीपा नेगी और भीम सिंह क्षेत्र के विकास और ग्रामीणों की समस्या का समाधान में निभा सकते हैं महत्वपूर्ण भूमिका
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