Thursday, November 13

निजी कॉलेजों में एमबीबीएस की बढ़ी फीस पर लगी रोक, आईआईएमटी गंगानगर में छात्रा से मांगे डोनेशन में एक लाख, एडीएम सिटी ने कराया दाखिला, सरकार कराए विश्वविद्यालय की जांच

Pinterest LinkedIn Tumblr +

गरीबों, जरूरतमंदों और बेसहारा बच्चों को उच्च शिक्षा उपलब्ध कराने के लिए प्रयासरत सरकार द्वारा कई आदेश और निर्देश पूर्व में दिए जा चुके हैं। बीते दिनों ही हापुड़ के जीएस मेडिकल कॉलेज में एमबीबीएस की पढ़ाई करने वाले छात्रों ने वर्ष 2024-25 की फीस बढ़ाने के खिलाफ हाईकोर्ट में याचिका दायर की है। इस बारे में एक खबर के अनुसार इलाहाबाद हाई कोर्ट ने एमबीबीएस कोर्स के छात्रों की ट्यूशन फीस बढ़ाने संबंधी 5 जुलाई, 2025 की अधिसूचना पर रोक लगा दी है। यह आदेश न्यायमूर्ति चंद्र धारी सिंह ने हापुड़ के जीएस मेडिकल कालेज की छात्रा आन्या परवाल और 239 अन्य विद्यार्थियों की याचिका पर दिया।
अदालत ने मामले की अगली सुनवाई 17 सितंबर, 2025 को तय की है और तब तक अधिसूचना को निलंबित रखा है। इस मामले में राज्य सरकार से दो सप्ताह में जवाब मांगा है।
अधिसूचना के अनुसार, शैक्षणिक सत्र 2024-25 से एमबीबीएस की ट्यूशन फीस 11,78,892 से बढ़ाकर 14,14,670 कर दी गई थी। याचिकाकर्ताओं की ओर से अधिवक्ता निपुण सिंह ने दलील दी कि यह वृद्धि मनमानी और बिना पर्याप्त विचार के की गई है।
उन्होंने बताया कि मौजूदा सत्र में यह दूसरी बार फीस बढ़ाई गई है, जबकि छात्र पहले ही अन्य विविध शुल्क जमा कर चुके हैं। साथ ही, यह भी तर्क दिया गया कि छात्रों को प्रवेश कालेज के ब्रोशर में दी गई फीस संरचना के आधार पर दिया गया था, ऐसे में अचानक वृद्धि से अभिभावकों पर भारी आर्थिक बोझ पड़ेगा।
दूसरी ओर, उत्तर प्रदेश राज्य सरकार और निजी संस्थान की ओर से रिट याचिका का विरोध किया गया। उनका कहना था कि शुल्क वृद्धि यूपी प्राइवेट प्रोफेशनल एजुकेशनल इंस्टीट्यूशंस (रेगुलेशन आफ एडमिशन एंड फिक्सेशन आफ फीस) एक्ट, 2006 के प्रविधानों के तहत की गई है।
राज्यपाल ने शुल्क नियामक समिति द्वारा प्रस्तावित नई फीस संरचना को मंजूरी भी दे दी है। अदालत ने दोनों पक्षों की दलीलें सुनने के बाद कहा कि मामले पर गहन विचार की आवश्यकता है।
कोर्ट ने प्रतिवादियों को दो सप्ताह के भीतर जवाबी हलफनामा दाखिल करने का निर्देश दिया, जबकि याचिकाकर्ताओं को उसके एक सप्ताह बाद प्रत्युत्तर दाखिल करने की अनुमति दी। अब इस मामले पर अगली सुनवाई 17 सितंबर को होगी
अदालत और सरकार के सभी प्रयासों के बावजूद कई कॉलेज और उनके संचालक व विश्वविद्यालय वैसे तो आए दिन समाज में सरकार की नीति के तहत और मानवीय दृष्टिकोण से शिक्षा देने की बड़ी बड़ी बातें करते हैं और अपने यहां बड़े कार्यक्रम मानव हित के बताकर आयोजित करते हुए अपने आप को समाजहित में काम करने के मामले में अग्रणी दर्शाने और महिमामंडित करने में पीछे नहीं रहते। इसके उदाहरण के रूप में मेरठ के सैनिक विहार कासमपुर गली नंबर 29 निवासी एंजल जब गंगानगर स्थित आईआईएमटी विश्वविद्यालय के बीएससी नर्सिंग के दाखिले के लिए गई तो उसके अनुसार दाखिले के लिए उससे एक लाख रूपये डोनेशन की मांग की गई। छात्रा द्वारा इस बारे में जब जनसमस्याओं के समाधान में शासन की नीति के अनुसार महत्वपूर्ण भूमिका निभाने में लगे एडीएम सिटी ब्रजेश कुमार सिंह से मिली और उन्हें अवगत कराया तो उनके द्वारा विवि के प्रबंध निदेशक व अफसरों को आदेश जारी कर छात्रा का दाखिला कराने के निर्देश किए गए और कहा गया कि आर्थिक स्थिति कमजोर होने के चलते शिक्षा से किसी को वंचित नहीं होना पड़ेगा। स्मरण रहे कि आए दिन अपने यहां सरकार के मंत्रियों और जनप्रतिनिधियों को बुलाकर शिक्षा के बारे में बातें करने वाले इस विश्वविद्यालय के प्रबंधन द्वारा एक लाख रूपये छात्रा से डोनेशन मांगा जाना समाजहित में नहीं कहा जा सकता। केंद्र और प्रदेश सरकार की बच्चों को पढ़ाकर देश के विकास में योगदान देने की नीति का भी उल्लंघन है क्योंकि एक तरफ हम बेटी पढ़ाओ बेटी बचाओ जैसे नारे लगाते हुए नहीं थकते और दूसरी तरफ अपने आप को समाजसेवी और अन्य बातों से महिमामंडित करने वाले विवि के सर्वेसर्वा के संस्थान में ही अगर ऐसा होगा तो सवाल उठता है कि हाथी के दांत खाने के और दिखाने के और वाली कहावत कब तक चरितार्थ होगी। क्योंकि ऐसे स्कूलों के संचालकर एक तरफ शिक्षा को बढ़ावा देने के नाम पर तमाम सुविधाओं को प्राप्त करने में पीछे नहीं रहते। दूसरी तरफ गरीबों के बच्चों का आर्थिक शोषण दोनों बातें एक साथ कैसे चलेंगी। मेरा मानना है कि प्रवेश की व्यवस्था तो एडीएम सिटी द्वारा कर दी गई। ऐसे और भी मामले हो सकते है। भविष्य में बच्चों की पढ़ाई में इस प्रकार का उत्पीड़न ना झेलना पड़े इस हेतु इस पूरे प्रकरण का संज्ञान लेकर उप्र की माननीय राज्यपाल और मुख्यमंत्री को ऐसे सभी विवि का सर्वे कराना चाहिए। क्योंकि हापुड़ के मोनार्ड विवि की जो कार्यप्रणाली की परतें खुलती चली आ रही हैं शिक्षा के क्षेत्र में सक्रिय कई लोगों का कहना है कि अपने यहां बड़े लोगों केा बुलाकर डिग्रियां बांटने और समाजोत्थान की लंबी बातें करने वाले अन्य विवि में भी शासन की नीति के विपरीत कार्रवाई चलने की बात की जाती है। अगर ग्रामीण कहावत जब आग लगी है तो चिंगारी उठी ही होगी को सोचकर कह सकते हैं कि कुछ तो हुआ होगा। बड़े लोगों की शासन की नीति के विपरीत किए जाने वाले कार्यों पर किसी ना किसी कारण से जांच के नाम पर पर्दा डाल दिया जाता है और गरीब पिसता रहता है। 
(प्रस्तुतिः- रवि कुमार बिश्नोई दैनिक केसर खुशबू टाइम्स मेरठ)

Share.

About Author

Leave A Reply