Saturday, October 25

नहाय खाय के साथ महापर्व छठ कल से आरंभ, 26 को खरना और 27-28 को अर्घ्य

Pinterest LinkedIn Tumblr +

मेरठ 24 अक्टूबर (प्र)। लोक आस्था और सूर्य उपासना का महापर्व छठ 25 अक्तूबर (शनिवार) को नहाय खाय के साथ शुरू हो जाएगा। शनिवार को व्रती सुबह के समय स्नान कर सूर्य भगवान और छठी मईया की आराधना के साथ व्रत का संकल्प लेंगे। 26 अक्टूबर रविवार सुबह से निर्जला व्रत कर शाम को खरना करेंगी। खरना के बाद ही 36 घंटे का निर्जला उपवास शुरू होगा, जो मंगलवार को उगते सूर्य को अर्घ्य के साथ संपन्न होगा।

उधर, गगोल सरोवर, गंगानगर, न्यू मीनाक्षीपुरम, सोमदत्त सिटी, पल्लवपुरम, राधा गोविन्द, गांधी आश्रम, चौ.चरण सिंह विश्वविद्यालय समेत विभिन्न कॉलोनियों में छठ की तैयारियों में लोग जुट गए हैं। शनिवार सुबह छठ व्रती गंगा नदी, पवित्र सरोवर अथवा घरों में स्नान कर अरवा चावल, चना दाल और कद्दू व लौकी की सब्जी बनाकर भगवान सूर्य और छठी मईया की आराधना करेंगे। चार दिवसीय महापर्व का संकल्प लिया जाएगा।

छठ का चार दिवसीय अनुष्ठान
नहाय खाय 25 अक्तूबर(शनिवार)
खरना या लोहंडा 26 अक्तूबर(रविवार)
अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ्य 27 अक्तूबर(सोमवार)
उगते सूर्य को अर्घ्य के साथ पारण या परणा 28 अक्तूबर(मंगलवार)

छठ पूजा को लेकर नगर निगम ने शुरू की तैयारी
छठ पूजा को लेकर नगर निगम ने तैयारी शुरू कर दी है। नगर आयुक्त सौरभ गंगवार ने गुरुवार को निगम अधिकारियों के साथ बैठक कर छठ को लेकर साफ-सफाई और रोशनी की उचित व्यवस्था का निर्देश दिया।

छठ पूजा विधि: छठ 2025 के चार दिवसीय अनुष्ठान से पहले ही छठ व्रतियों द्वारा महापर्व छठ व्रत का प्रसाद बनाने के लिए गेहूं व अरवा चावल को अच्छे से धोकर व साफ कर घर की आंगन व छतों पर धूप में बैठकर सुखाया जा रहा है। छठ महापर्व 2025 में नियम, निष्ठा, विधि विधान के साथ साथ स्वच्छता व साफ-सफाई का पूरा ख्याल रखा जा रहा है।
इस दिन व्रती केवल एक बार सात्विक भोजन ग्रहण करती हैं. भोजन में सेंधा नमक का प्रयोग किया जाता है. परंपरागत रूप से लौकी (कद्दू) की सब्जी, चना दाल और चावल का सेवन किया जाता है.
व्रती और श्रद्धालु सूप या बांस की टोकरी में ठेकुआ, फल, गन्ना, नारियल, और विभिन्न प्रकार के मौसमी फलों से बने प्रसाद को लेकर नदी या तालाब के किनारे जाते हैं. इस दिन पानी में खड़े होकर, सूर्य की अंतिम किरण को जल, दूध और फूलों से अर्घ्य दिया जाता है. डूबते सूर्य को अर्घ्य देने का महत्व यह है कि जीवन के कठिन दौर का भी स्वागत करना चाहिए.
व्रती और परिवार के सदस्य पुनः उसी स्थान पर एकत्रित होते हैं, जहां संध्या अर्घ्य दिया गया था. सूर्योदय से पहले पानी में खड़े होकर, सूर्य की पहली किरण को अर्घ्य दिया जाता है. अर्घ्य देने के बाद व्रती कच्चे दूध और प्रसाद से अपना व्रत खोलती हैं, जिसे पारण कहते हैं. इसके बाद प्रसाद घर-परिवार और आस-पड़ोस में वितरित किया जाता है.

Share.

About Author

Leave A Reply