Saturday, July 27

गुठली लडडू से आपत्तिजनक शब्द हटाने का निर्णय ले सेंसर बोर्ड

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अहमदाबाद 14 अक्टूबर। गुजरात उच्च न्यायालय ने केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड (सीबीएफसी) को हिंदी फिल्म गुठली लड्डू में जातिगत शब्द इस्तेमाल किए जाने के मामले में फैसला लेने के लिए कहा है। अदालत ने वाल्मीकी समुदाय के लिए आपत्तिजनक शब्द के इस्तेमाल किए जाने को लेकर 24 घंटे में फैसला लेने का निर्देश दिया। न्यायमूर्ति वैभवी नानावटी ने एक आदेश जारी कर सीबीएफसी को सिनेमैटोग्राफ अधिनियम 1952 की धारा छह के प्रावधानों के तहत शक्तियों का प्रयोग करते हुए 24 घंटे के भीतर इस मुद्दे पर निर्णय लेने को कहा।

फिल्म 13 अक्टूबर को स्ट्रीम किए जाने के मद्देनजर अदालत ने सहायक सॉलिसिटर जनरल देवांग व्यास के अनुरोध पर पेश हुए अधिवक्ता सिद्धार्थ दवे को इस आदेश से तुरंत सीबीएफसी को अवगत कराने का निर्देश दिया। गुरुवार को एक संक्षिप्त सुनवाई के दौरान, फिल्म के निर्माताओं में से एक- यूवी फिल्म्स ने दलील दी कि फिल्म को कई फिल्म फेस्टिवल में दिखाई जा चुकी है। इतना ही नहीं सेंसर बोर्ड ने भी इसे ‘यू’ प्रमाणपत्र दिया गया है।
‘यू’ प्रमाणन वाली फिल्में सार्वजनिक प्रदर्शन के लिए होती हैं। इससे पहले नौ अक्टूबर को न्यायमूर्ति नानावटी ने वाल्मीकि समुदाय के संबंध में आपत्तिजनक शब्द के इस्तेमाल को चुनौती देने वाली याचिका पर सीबीएफसी और निर्माताओं को नोटिस जारी किया था।

ये नोटिस निमेश वाघेला की ओर से दायर एक याचिका पर जारी किए गए थे, जिसमें फिल्म से एक शब्द हटाने के साथ-साथ इसका प्रमाणन वापस लिये जाने का अनुरोध किया गया था ।

याचिका में कहा गया है कि फिल्म में उक्त शब्द का इस्तेमाल सिनेमैटोग्राफ अधिनियम 1952 के साथ-साथ अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम 1989 के प्रावधानों का उल्लंघन है। इसमें दावा किया गया है कि यह वाल्मीकि समुदाय की भावनाओं को आहत करता है। याचिकाकर्ता ने कहा कि वह फिल्म के विषय का विरोध नहीं करते हैं, लेकिन ‘‘आहत करने वाले’’ शब्द के इस्तेमाल के साथ-साथ फिल्म को ‘यू’ प्रमाणपत्र देने के सीबीएफसी के फैसले के खिलाफ हैं। इसमें यह भी कहा गया है कि फिल्म के ट्रेलर में मां और बेटे के बीच बातचीत के दौरान इस शब्द का कई बार इस्तेमाल किया गया है।

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