मेरठ, 08 दिसंबर (विशेष संवाददाता)। चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय मेरठ से संबंधित सभी सर्टिफिकेट कोर्स के समाजशास्त्र विषय की चित्रा प्रकाशन द्वारा प्रकाशित पुस्तकों के पाठयक्रम में आमूल चूल परिवर्तन करने की बात सामने आई है। इसके बाद प्रकाशक द्वारा छात्रों को पुस्तक बदलकर देने या पुरानी पुस्तकें वापस लेकर सेलेबस में सुधार करने या पैसा वापस करने की बजाय एक छोटी सी सूचना अति आवश्यक छपवाकर उसमें यह दर्शाते हुए कि छात्र बदले हुए सिलेबस के संदर्भ में विवि की वेबसाइट से पाठयक्रम मिलान कर लें। और तब परीक्षा की तैयारी करे। पाठयक्रम से संबंधित हमारी कोई जिम्मेदारी नहीं होगी और उससे क्षति के लिए विद्यार्थी स्वयं जिम्मेदार होंगे।
इस बारे में डीएन डिग्री कॉलेज के पूर्व छात्रसंघ अध्यक्ष व जुझारू नेता अंकित चौधरी का कहना है कि यह गलती विवि और प्रकाशक की है कि दोनों ने आपस में तालमेल बैठाकर जल्द आ रही परीक्षाओं को ध्यान में रखकर निर्णय क्यों नहीं लिया। अंकित चौधरी का कहना है कि विवि और कॉलेजों में किसान मजदूर और गरीबों के बच्चे पढ़ते हैं। एक तो निरंतर महंगी होती शिक्षा को लेकर इस वर्ग के छात्र वैसे ही परेशान रहते हैं क्योंकि उनके अभिभावक अपना पेट काटकर उन्हें किताबें दिलाते हैं और पढ़ने के लिए फीस जमा कराते हैं। ऐसे में परीक्षा से तीन चार माह पूर्व सिलेबस में बदलाव करना बिल्कुल उचित नहीं है। या तो प्रकाशक प्रयास करें कि विवि यह आमूल चूल परिवर्तन इन परीक्षाओं तक टाले वरना छात्रों से पुरानी पुस्तकें वापस लेकर उन्हें नई सिलेबस की पुस्तकें चित्रा प्रकाशन के संचालक उपलब्ध कराएं। या पुस्तकें लेकर उनमें सिलेबस सही कराएं अथवा बुक सेलरों के माध्यम से पुरानी किताबें वापस ली जाए क्योंकि अब सिलेबस बदला जाना छात्रों के साथ धोखा है। क्योंकि जो तैयारियां छात्रों ने की थी वो कर ली और ऐन मौके पर पाठयक्रम में बदलाव ना तो छात्रहित में है ना सरकार की शिक्षा नीति के हिसाब से है। इसलिए प्रकाशक तुरंत छात्रों के हित में निर्णय ले वरना विवि इन्हें काली सूची में डाले और इनकी किताबों के प्रकाशन पर रोक लगाए।
स्मरण रहे कि अंकित चौधरी की बात तो बिल्कुल सही है ही अगर सामान्य दृष्टिकोण से देखें तो 2008 में जब सरकार ने नोटबंदी की थी तो एक समय सीमा निर्धारित कर पुराने बदलकर नए नोट दिए थे। इसी प्रकार जब हम किसी के यहां से कोई सामान लेते हैं और वो सही नहीं होता तो बदलकर दिया जाता है।
वाहन कंपनियां हजारों गाड़ियां कमी होने पर वापस लेकर नई देती है तो फिर गरीब किसानों के बच्चों के साथ यह मानसिक और आर्थिक समस्या क्यों खड़ी की जा रही है। अंकित चौधरी का कहना था कि अभी तक छात्रों ने जो जानकारी दी है अगर इसके अलावा पता चला और आवश्यकता हुई तो प्रकाशक व अन्य दोषियों के खिलाफ संविधान के तहत शांतिपूर्ण आंदोलन भी किए जाने से नहीं चूकेंगे।