पितरों को श्रद्धांजलि और उनकी प्रसन्नता के लिए बीती 7 सितंबर से शुरु होकर श्राद्ध का धार्मिक आयोजन गत दिवस २१ सितंबर को अमावस्या के दिन संपूर्ण रूप से सभी के द्वारा किए गए श्राद्ध से यह कार्य संपन्न हो गया। लेकिन श्राद्ध हमें एक संदेश जरुर देते हैं कि अगर हम जीवित माता पिता को उनके जीवन में सम्मान देने और उनकी सेवा करने पर ध्यान दें तो हम जो श्राद्ध व तर्पण करते हैं यह तो करना ही चाहिए जिससे उनकी आत्मा को शांति मिले लेकिन जीवन में उनकी सेवा से खुद भी उनका आशीर्वाद और दुआओं को प्राप्त किया जाए तो हमारी आत्मा को प्रसन्नता और हमें खुशहाली प्राप्त होगी और हम ऐसे लोगों को भी एक संदेश दे सकते हैं जो जीवित माता पिता का ध्यान नहीं रखते। महर्षि दयानंद सरस्वती ने इस बारे में शिक्षा और ज्ञान का खूब संदेश दिया। और उन्हीं की प्रेरणा से आर्य समाजियों द्वारा समाज के हर क्षेत्र में काम किया जा रहा है। वो अपने आप में महत्वपूर्ण है। मुझे लगता है कि माता पिता की सेवा ही पितरों का असली तर्पण है लेकिन श्राद्ध से कौओ और अन्य पक्षियों को भोजन की व्यवस्था हो जाती है क्योंकि जितने घरों में अमावस्या के दिन अंतिम श्राद्ध मनाया जाता है उतनी संख्या में कौए भोजन नहीं कर सकते मगर मुझे लगता है कि चिड़िया या अन्य पक्षी पितरों का भोजन करते हैं। इससे भी हमें माता पिता की सेवा में कुछ करने का जो मौका मिलता है वो उल्लेखनीय है और यह विश्वास से कहा जाता है कि कौओं के भोजन से जो शांति मिलती है चिड़िया के खाने से ही शायद ऐसा ही होता होगा। मेरा मानना है कि धार्मिक आस्था का पालन तो करना ही चाहिए लेकिन ज्ञानवान पुजारियों पंडितों से विचार कर पितरों के लिए निकाला गया भोजन अगर भूखे व असहाय लोगों तक पहुंचा दिया जाए तो पितरों की आत्मा की शांति के लिए यह भी एक बड़ा आयोजन हो सकता है। पितरों की आत्मा की शांति के लिए पूजा यज्ञ तो खूब होते हैं लेकिन अब इसमें कुछ नयापन भी अपनाया जाना चाहिए।
(प्रस्तुतिः- रवि कुमार बिश्नोई संपादक दैनिक केसर खुशबू टाइम्स मेरठ)
माता पिता की आत्मा की शांति के लिए श्राद्ध के साथ ही कुछ नया विद्वानों से विचार कर होना चाहिए
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