2027 में होने वाले यूपी विधानसभा चुनाव की तिथि तो अभी घोषित नहीं हुई है। मगर खबरों के माध्यम से जितना पता चलता है उससे यह लगता है कि अपने अपने उम्मीदवारों को जिताने के लिए पक्ष और विपक्ष दोनों के नेता प्रयास शुरू कर चुके है। जिसके तहत विपक्षी दल के नेता और कार्यकर्ता अपनी सरकारों के काम और वर्तमान में उत्पन्न समस्याओं को उजागर कर अब धीरे धीरे आम मतदाता की समस्याओं को उभारने और उन्हें आर्कषित करने हेतु धरने आंदोलन का दौर शुरू कर चुके है। दूसरी ओर क्योंकि जो सत्ताधारी दल है उसके पास हर समस्या का समाधान करने और मतदाताओं को अपने से जोड़ने के लिए भरपूर समर्थन और ताकत नजर आती है। मगर क्योंकि बनाई जा रही जनहित की योजनाओं और जिलों में जनता के कार्य जिस स्तर पर होने चाहिए न होने और माननीय मुख्यमंत्री जी के जनशिकायत पार्टल पर भेजे जाने वाले मामलों के हो रहे फर्जी निस्तारण की चर्चा शासन चला रहे जनप्रतिनिधियों और माननीय मुख्यमंत्री तक पहुंच रही है। इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता। शायद इसीलिए कुछ समय पहले से यूपी सीएम योगी आदित्यनाथ जी ऑन लाईन कान्फ्रंसिंग अथवा अफसरों की प्रदेश मुख्यालयों पर होने वाली समीक्षा बैठक या जब प्रदेश के दौरे पर जाते है तो हमेशा ही जिलों में तैनात बड़े हुकुमरानों को निर्देश देने से नहीं चूकते कि वो जन समस्याओं का समाधान करने और जनहित की शासन की योजनाओं का लाभ पात्रों तक पहुंचाने और सरकार में पहुंचने वाली शिकायतों का समय से और सही निस्तारण करें जैसे आदेश और निर्देश देते है। मगर जनप्रतिनिधि तो ऐसे मामलों में कोई ज्यादा प्रयास करते नजर नहीं आते। और मुख्यमंत्री जी घर घर तक पहुंच नहीं सकते शायद इसका लाभ उठाकर कुछ सरकारी छोटे बड़े बाबू अपनी मनमर्जी चलाने और जनहितों को नाराज करने में कोताही नहीं कर रहे लगते है। इसलिए माननीय मुख्यमंत्री जी के जनशिकायत पार्टल पर होने वाली शिकायतों की संख्या में कमी नहीं आ रही है।
पिछले दिनों एक खबर नागरिकों में चर्चा का विषय रही वो यह थी कि जनशिकायतों के निस्तारण में प्रथम रहे। उनके बारे में जागरूक नागरिकों का कहना था कि अगर माननीय मुख्यमंत्री जी निस्तारित शिकायतों में से कुछ की जांच जैसे अवैध निर्माण सरकारी भूमि घेकर बेचना रोड बाईडिंग की सड़कों पर दुकानों बनाकर बेचने आदि की जांच करा लें तो चुनाव में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले वोटरों का कहना है कि काफी प्रतिशत निस्तारित मामले खासकर प्राधिकरणों व नगर निगमों के फर्जी निकलेंगे तो दूसरी तरफ यह चर्चा भी जोरों पर सुनने को मिलती है कि अगर मिलने जाओ तो पहले तो उच्च अधिकारी शिकायतों को गंभीरता से सुनते नहीं और अगर सुनकर ज्ञापन ले लिया भी तो उस पर कार्रवाही नहीं होती और आम आदमी उनसे लड़ नहीं सकता क्योंकि जरा सा जोर से बोलने पर ही कितने ही मामलों में फंसा देने की खबरें पढ़ने को मिलता है तो उससे लगता है कि ऐसे व्यक्तियों में असंतोष बना रहता है।
उप्र के पूर्व पुलिस महानिदेशक और वर्तमान में राज्यसभा व प्रेस काउंसिल के सदस्य ब्रजलाल और वरिष्ठ आईएएस मुकेश मेश्राम हमेशा एक बात कहा करते थे अपने सहयोगी अफसरों कि जो मिलने आये उसकी बात जरूर सुनों और मजाक सा ना उड़ाकर गंभीरता से लो तो हर समस्या के समाधान में नागरिक आपके साथ खड़े नजर आयेंगे। अगर उसकी बात अनमने मन से सुनते है अगर वो कहे भले ही ना लेकिन उसके मन जो असंतोष शुरू होता है वो मौका मिलने पर अफसरों को जन समर्थन मिलने में बांधा उत्पन्न करता हैं। भले ही चाटुकारिता और सम्मान करने वाले वक्त पड़ने पर कहीं नजर नहीं आते। सरकार और शासन को इन बिन्दुओं पर समय अनुसार ध्यान देना होगा। क्योंकि यह वक्त की सबसे बड़ी मांग है क्योंकि हर आदमी समझदार है और वक्त पड़ने पर न्यायालय का द्वार खटखटाने से पीछे नहीं रह सकता।
सरकार और जनहित में ड्रक्स रिपोर्ट
माननीय मुख्यमंत्री जी आईजीआरएस पोर्टल पर आई शिकायतों के फर्जी निस्तारणों, अफसरों द्वारा जनशिकायतों के निस्तारण में की जाने वाली कोताही, 27 के विधानसभा चुनावों में आपके प्रति विश्वास होने के बाद भी
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