Saturday, July 27

वर्तमान समय में बाकई बड़ी आवश्यकता है पुरूषों के सशक्तिकरण की

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जब भी कहीं महिला और पुरूष की बात चलती है तो हमेशा ही दुनिया की आधी आबादी को कमजोर बताकर उनके लिए सशक्तिकरण का अभियान चलाने की वकालत हर स्तर पर की जाती है। जबकि वर्तमान समय में मीडिया में आने वाली खबरों को पढ़ने सुनने और देखने से पता चलता है कि पुरूष उत्पीड़न भी कुछ कम नहीं हो रहा है। और इसकी असलियत का अंदाज इससे भी लगाया जा सकता है कि दुनिया भर के कई देशों में भारत सहित पत्नी पीड़ित पुरूषों को न्याय दिलाने हेतु पत्नी पीड़ित संघ और संगठन बन गये है और आधुनिक संचार माध्यमों तथा सोशल मीडिया की मदद से यह लोग अपनी बात जनमानस के सामने रख यह स्थिति स्पष्ट करने की कोशिश कर रहे है कि महिला पत्नी ही नहीं पुरूष पति भी हो रहे है प्रताड़ना के शिकार।
संयुक्त राष्ट्र कार्यालय यूएनओडीसी एवं यूएन वीमेन के नये शोध से भी यह बिन्दु उभरकर आया है कि 12 प्रतिशत पुरूष भी हत्या के शिकार हुए है। भले ही ये स्पष्ट न हो कि इनकी हत्या कैसे और क्यों हुई लेकिन बहुमूल्य जीवन से भी इन्हें हाथ धोना पड़ा। इस बात से कोई भी इनकार नहीं कर सकता अगर रिपोर्ट सही है तो।
उप्र की महा महिम राज्यपाल तथा जन नायक चंद्रशेखर विवि जेएनसीयू बलिया की कुलाधिपति आनंदीबेन पटेल जी के हवाले से छपि एक खबर अपने आप में अत्यंत महत्वपूर्ण है कि अब पुरूष को भी सशक्तिकरण की जरूर है। बीते रविवार 26 नवंबर को वर्तमान परिवेश में महिलाओं की बजाए पुरूषों के सशक्तिकरण अभियान की बात पर जोर देते हुए जेएनसीयू के पांचवें दीक्षांत समारोह में दौरान उन्होंने कहा कि कुछ युवा विदेश चले जा रहे है जबकि अधिकांश ड्रग्स का शिकार होकर जीवन बर्वाद कर ले रहे है। जेएनसीयू के पिछले तीन दीक्षांत समारोह में विवि की लड़कियों ने बाजी मारी है। और छात्र पिछड़ते जा रहे है। माननीय राज्यपाल जी का कथन भले ही किस भी ओर इंगित करता हो लेकिन एक बात तो स्पष्ट है ही क्षेत्र कोई भी हो पुरूषों को सशक्तिकरण और मानसिक स्वास्थय हेतु सामुहिक सामर्थ प्राप्त करने का माहौल तथा सामाजिक सुरक्षा की भावना के साथ ही इस बात की जरूरत है कि समाज पुरूषों के साथ भी न्याय करने के लिए संदर्भ में सोचता है। क्योंकि माननीय का कथन एक प्रकार से अगर देखे तो किसी ब्रहम वाक्य से कम नहीं है। मैं आदरणीय राज्यपाल जी को इस कथन के लिए बधाई और धन्यवाद देता हूं कि इससे कहीं न कहीं तो कुछ न कुछ पुरूषों के प्रति संवेदनाऐं लोगों में उत्पन्न होगी और इसे समाज की सोच में बदलाव आता है। जिससे पुरूष वर्ग के लिए जो मजबूती की सोच उभर रही है उसे बल मिलेगा।

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