बीते दिवस देशभर में गंगा स्नान का पर्व मनाया गया। यह धार्मिक अवसर है इसलिए किसी भी मुददे को लेकर कोई विवादित टिप्पणी किया जाना उचित नहीं लगता लेकिन आजकल कुछ मीडियाकर्मियों द्वारा नहाती हुई महिलाओं के फोटो खींचकर प्रदर्शित किए जाते हैं समाचारों के साथ मुझे लगता है कि यह ठीक नहीं है। जबसे होश संभाला गंगा स्नान आदि पर्वो व हरिद्वार ब्रजघाट बनारस और इलाहाबाद आदि में पवित्र नदियों के किनारे महिलाओं के नहाने और कपड़े बदलने के लिए अलग से व्यवस्था दिखाई देती थी। लेकिन अब इसे आधुनिक क्राति कह लें या शांति के साथ स्नान संपन्न करने में लगे लोगों की लापरवाही अथवा खबर को चर्चित बनाने की सोच जो भी हो इस बार पुरूषों के साथ महिलाओं के नहाने के चित्र खबरों में देखने को मिले जिसे देखकर अच्छा नहीं लगा। हमारी सरकार मातृशक्ति के सम्मान और गौरव व उसके प्रति आम आदमी की आस्था को ध्यान में रखते हुए हरसंभव प्रयासरत है कि माता बहनों का हर तरीके से सम्मान और गरिमा बची रहे। शायद इसीलिए विवादित समाचारों में भी महिलाओं के फोटो व नाम नहीं छापे जाते। हो सकता है मेरी सोच समय के विपरित हो या इससे संबंध पहले नियम समाप्त हो गए हो लेकिन स्वीमिंग पूल व अन्य आधुनिक स्थानों पर क्या होता है उसमें ना पड़कर मेरा सरकार से आग्रह है कि पवित्र नदियों में होने वाले स्नान के दोरान माता बहनों के स्नान करने और कपड़े बदलने की व्यवस्था पूर्व की भांति कराई जाए। क्योंकि अभी समाज में फैशन की परंपरा सब जगह और सब पर नहीं पड़ी है इसलिए ग्रामीण महिलाएं ऐसे माहौल में या तो स्नान नहीं कर पाती हैं या अपने आपको अपमानित महसूस करती है। और यह स्थिति ठीक नहीं है। इसलिए खुले स्थान पर एक ओर बांस या कपड़ें के पर्दे लगाकर वस्त्र बदलने की व्यवस्था की जाए।
पवित्र नदियों में स्नान के लिए महिलाओ के अलग से स्नान की हो व्यवस्था
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