Saturday, July 27

पीएम साहब ! विकास कार्य योजनाएं समय से गुणवत्ता अनुसार पूूरी हो इसके लिए मंडल व जनपद स्तर पर उसी जनपद के सांसद विधायकों की अध्यक्षता में गठित हो निगरानी समितियां

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सरकार कोई सी भी हो देश में जो विकास और वादे चुनाव से पूर्व किए जाते हैं उन्हें पूरा करने का प्रयास उसके द्वारा हमेशा किया जाता है। और वर्तमान सरकार के मुखिया पीएम मोदी और यूपी के सीएम सहित भविष्य को ध्यान में रखते हुए सभी राज्यो के सीएम इस मामले में अग्रण्ीाय भूमिका निभाते नजर आते हैं और इसके लिए उनके और उनके सहयोगियों द्वारा योजनाएं भी बनाई जाती है। बजट भी निर्धारित किया जाता है और जिम्मेदार विभागों के अफसरों को आवंटन किया जाता है। यह बात किसी से छिपी नहीं है।
मगर हम सबको कभी ना कभी यह जरूर सुनने और पढ़ने को मिलता है कि जब इस काम का शुभारंभ किया गया था या जब यह योजना बनाई गई थी और इसके लिए बजट आवंटन किया गया था। उस समय लागत जो थी अब उसके मुकाबले इतने गुना बढ़ गई है। महंगाई भी चरम पर पहुंच गई है। लापरवाही भी नजर आती है। आखिर काम कैसे पूरा हो। ऐसे में कितने ही विभाग और सरकारी हुक्मरान या तो योजना को ठंडे बस्ते में दबाकर उस पर लीलापोती करते रहते हैं या सरकार को लिख देते हैं कि इतने बजट में यह कार्य नहीं हो पाएगा और सरकार का ध्यान इस ओर से हटाने हेतु कई मामलों में योजना को रद कर दूसरी परियोजनाओं पर काम शुरू कर दिया जाता है। अब क्योकि सरकार सरकारी अफसरों का स्थानांतरण एक समयसीमा में जरूर हो जाना है और फिर उनकी जगह छोटे बड़े बाबू आकर चार्ज संभालते हैं और ज्यादातर पुरानी योजनाओं पर ध्यान देने की कोशिश नहीं करते। नई योजना इनके द्वारा शुरू की जाती है। पहली जनहित की पास नीतियों का क्या हुआ ना किसी को बताने की फुर्सत होती है ना किसी को पूछने की। अगर सवाल हो भी गया तो कहा जाता है कि यह मेरे समय का मामला नहीं है। आपने बताया है तो पता करता हूं। परिणाम जहां से चले थे सालों बाद वहीं सरकार के सारे प्रयासों जनप्रतिनिधियों की कोशिशों और पैसा मिलने के बाद भी योजनाएं वहीं रूकी नजर आती है जहां से शुरू हुई थी।
उन्होंने तालाब खुदवाया आप बंद करा दो
कुछ वर्ष पूर्व दिल्ली से प्रकाशित एक समाचार पत्र में एक खबर पढ़ने को मिली थी कि एक अधिकारी ने तालाब खुदवाया जब उसका तबादला हुआ तो नए अधिकारी ने पूछा कि इसकी क्या जरूरत थी। तो बाबू ने जवाब दिया कि उन्होंने खुदवाया था आप बंद करा दीजिए। ऐसे मामलों में मुझे तो कोई अधिकृत ज्ञान नहीं है लेकिन ऐसे मामले सुनने को मिलते हैं। ऐसे मामलों में ना सरकार कार्रवाई करती है और ना जनता। कुछ अफसरों को सजा मिल गई और थोड़ा शोर मचाकर हम भी शांत हो गए। लेकिन जो उददेश्य था वो पूरा नहीं हुआ।
मेरा प्रधानमंत्री से क्योंकि वह सब विभागों के मुखिया है उनसे विनम्र निवेदन है कि उनकी भ्रष्टाचार समाप्ति लापरवाही और विकास कार्य समय से पूरा कराने की योजना और भावना को ध्यान में रखकर कि हर जिले में खासकर विकास से संबंध विभाग विकास प्राधिकरण आवास विकास स्थानीय निकाय नगर निगम कैंट बोर्ड हो सकता है इनके नाम कई जगह कुछ और लिए जाते हों मगर इनके माध्यम से जितनी योजनाएं शुरू की जाती है उनका बजट निर्धारित करने और देने से पूर्व सभी जिलों में इन कार्यों की जिम्मेदारी अधिकारियों के साथ साथ सांसद राज्यसभा सांसद विधायक एमएलसी और विभिन्न राजनीतिक दलों के अध्यक्षों की एक समिति बनाकर जिसमें प्रमुख अधिकारी भी मौजूद हो साथ में कलेक्टर भी उसके सदस्य हों के माध्यम से कराने चाहिए जिससे अफसर के चले जाने और समय से कार्य पूरा ना होने बजट बढ़ जाने पर आम आदमी जिसे इस योजना के शुरू होने के समय बड़े बड़े सपने दिखाए जाते हैं वो इन जनप्रतिनिधियों से पूछ सके कि आखिर परियोजना का क्या हुआ और जो पैसा मिला था वो कहां गया और समय से काम पूरा क्यों नहीं हो पाया।
पीएम साहब पिछले कुछ वर्षों में ऐसी कई योजनाएं सुरसा की मुंह की भांति लंबी होती जा रही है। अफसर सही जवाब देने को तैयार नहीं होते। जनप्रतिनिधि यह कहकर पल्ला झाड़ लेते हैं कि पत्र लिखकर पूछता हूं या मीटिंग में यह सवाल उठाउंगा। मगर कार्य शुरू होते समय आम आदमी की भावनाएं उत्पन्न हुई थी उन पर तो कुठाराघात ही हो जाता है। इसलिए भ्रष्टाचार लापरवाही के लिए जिम्मेदार अफसरों को सरकार दंडित भी कर रही है और समय से पूर्व सेवानिव्रत भी कर रही है। निलंबन भी किया जा रहा है लेकिन आम आदमी की मंशा और सरकार की भावना के तहत कार्य नहीं हो पा रहा है। आम आदमी अपने नेताओं से इनके बारे में पूछ सके इसके लिए जनहित में सरकारी योजनाएं समय से लागू कराने और पैसे के सदुपयोग को रोकने हेतु जल्द से जल्द हर जिले में जनप्रतिनिधियों की विकास कार्यों की निगरानी और उन पर नजर रखने के लिए कमेटी बनाए जाऐ जिससे यह कार्य संपन्न हो सके। जनता भी राहत की सांस ले। अब कोई कहे कि जिला स्तरीय समिति सरकार ने मंत्रियों की अध्यक्षता में सरकार ने गठित की है तो मुझे उससे कोई ऐतराज नहीं है लेकिन प्रभारी मंत्री आते हैं गहन समीक्षा करते हैं दोषियों को हड़काते हैं और यह कोशिश भी रहती है हर कार्य समय से पूरा हो लेकिन उनके जाने के बाद इन विभागों के अफसर क्या करते हैं यह किसी को बताने की आवश्यकता नहीं है। स्थानीय स्तर पर सांसद और विधायकों की समितियां गठित होंगी तो हर कार्य पर नजर रखेगे और जनता उनसे सवाल भी पूछ सकेगी। मेरा विश्वास है कि ज्यादा काम समय और गुणवत्ता से निर्धारित बजट में पूरा होने लगेंगे।

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