Saturday, July 27

मारपीट प्रकरण में दस दिन साथ बैठने का मेरठ के सिटी मजिस्ट्रेट का निर्णय है सराहनीय

Pinterest LinkedIn Tumblr +

दैनिक केसर खुशबू टाइम्स
मेरठ, 21 फरवरी। वैसे तो अपने यहां आने वालो मामलों और अदालत में आने वाले केस के संदर्भ में सारे ही अधिकारी अपनी समझ के अनुसार निर्णय देते हैं जिससे पीड़ित को न्याय मिल सके लेकिन यूपी के मेरठ के नगर मजिस्ट्रेट अनिल कुमार का एवं मारपीट प्रकरण में दस दिन एक साथ बैठने के आदेश का निर्णय काफी सराहनीय और प्रशंसा योग्य है। बताते चलें कि शहरी क्षेत्र के दो नजदीकियों में संपत्ति को लेकर मारपीट और विवाद का मामला गत दिनों नगर मजिस्ट्रेट अनिल कुमार की अदालत में पहुंचा तो उन्होंने किसी को भी जेल भेजने की बजाय इस दृष्टि से कि दोनों पक्ष करीबी है अगर साथ बैठेंगे तो शांति से बात सुलझाने का रास्ता निकल सकता है। मेरा मानना है कि ऐसे निर्णय अगर समयानुसार दिए जाने लगे तो अदालतों में जो मुकदमों की संख्या बढ़ रही है वो कम होगी। और सरकार तथा खासकर पीएम मोदी और यूपी के सीएम योगी की भावनाओं के तहत हर व्यक्ति को सस्ता और सुलभ न्याय भी प्राप्त हो सकेगा।
मामूली विवाद में लोगों का जेल जाना आम बात है और मुकदमे की पैरवी में लंबा समय कोर्ट-कचहरी के चक्कर काटने में गुजर जाता है। ऐसे में सिटी मजिस्ट्रेट ने नई पहल करते हुए मारपीट में आरोपित दो पक्षों को अपने आचरण में सुधार करने का मौका देते हुए जेल न भेजकर अपने ही कार्यालय में 10 दिन तक साथ बैठने के आदेश दिए।
मोहल्ला तोपचीवाड़ा निवासी एक पक्ष के इमरान व अकबर तथा दूसरे पक्ष के अय्यूब व जावेद के बीच संपत्ति को लेकर विवाद चल रहा है। दो दिन पहले दोनों पक्षों में मारपीट हो गई। कोतवाली पहुंचे तो वहां भी भिड़ गए। पुलिस ने मुकदमा दर्ज कर गत शनिवार को दोनों पक्षों को सिटी मजिस्ट्रेट अनिल कुमार की अदालत में पेश किया।
सिटी मजिस्ट्रेट ने दोनों पक्षों को सुना और जेल न भेजकर गलती सुधारने के लिए मौका दिया। अब दोनों पक्ष 10 दिन तक लगातार उनके कार्यालय आकर साथ बैठेंगे। सुबह दर्ज कराई उपस्थितिरू सिटी मजिस्ट्रेट के आदेशानुसार हर दिन दोनों पक्ष सुबह 10 बजे से पहले कार्यालय खुलने पर कलक्ट्रेट पहुंचेंगे और उपस्थिति दर्ज कराएंगे। दिनभर यहीं रहेंगे और शाम को कार्यालय बंद होने पर फिर उपस्थिति दर्ज कराकर घर जाएंगे। सोमवार को भी दोनों पक्ष घर से खाना लेकर आए और दिनभर बैठे रहे।
सिटी मजिस्ट्रेट की सोच सराहनीय है और विश्वास से कहा जा सकता है कि उनका विचार सफल होगा। जागरूक नागरिकों को अदालतों में बढ़ रही संख्या को कम करने के लिए सिटी मजिस्ट्रेट का करना चाहिए सार्वजनिक अभिनंदन और सरकार द्वारा भी ऐसे अफसरों को प्रोत्साहन दिया जाना चाहिए।
प्रस्तुति : अंकित बिश्नोई
मजीठियां बोर्ड यूपी के पूर्व सदस्य सोशल मीडिया एसोसिएशन एसएमए के राष्ट्रीय महामंत्री

Share.

About Author

Leave A Reply