Wednesday, October 15

अलेक्जेंडर क्लब में उच्च पदों पर परिवर्तन परिवार ने फहराया विजयी ध्वज, शिक्षा संस्थाओं चैंबर आदि संगठनों में भी अब पारदर्शी वातावरण में हो काम ऐसी उठ सकती है मांग

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मेरठ 16 सितंबर (दैनिक केसर खुशबू टाइम्स)। शिक्षा स्वास्थ नागरिकों को भोजन उपलब्ध कराने व अन्य प्रकार की योजना पर खर्च तो भावी पीढ़ी भी खूब कर रही है और योजनाएं भी बनाती है। और जहां तक लगता है हमारी जो नई पीढ़ी आ रही है वो इस मामले में पीछे नहीं रहेगी मगर इस बात से भी इनकार नहीं किया जा सकता कि जितना धर्मकर्म समाजसेवा शिक्षा व स्वास्थ के क्षेत्र में हमारे बुजुर्ग खर्च करते थे और संस्थाओं को दान देने के साथ ही बड़े बड़े कालेज स्कूल अस्पताल व धार्मिक स्थान बनवाते थे उतना शायद हम नहीं कर पा रहे है।

पाठक और जागरूक नागरिक इस सच्चाई को वर्तमान में खूब जानते है कि वैसे तो हर जगह ही ऐसा ही हाल है मगर फिलहाल हमारे मेरठ में संचालित शिक्षा संस्थाओं व्यापारी व उद्योगपतियों के लिए काम करने वाली चौंबर आदि में मठाधीश के रूप में चिपक गये पदाधिकारियों की कार्यप्रणाली को देख सकते है। बताते चले कि कई संस्थानों में तो जिन महानुभावों ने इनकी स्थापना की और जमीन देने के साथ साथ इतना धन भी दिया कि ईमारते बनकर खड़ी हो जाए और इनमें हर क्षेत्र में सेवाभावी कार्य होने लगे। वर्तमान में हमारे ऐसी संस्थाओं के पदाधिकारी उन पूर्वजों का नाम लेना उनकी जयंती मनाना तो दूर कुछ ने तो असल दान देने वालों के फोटो भी नहीं लगाये हुए है। ऐसे में इनकी सोच और कार्यप्रणाली इससे भी स्पष्ट होती है कि चाहे शिक्षा संस्थान हो या अन्य सेवाभावी संस्थाएं उनमें से जो लोग वर्तमान में जमे है उनमें से ज्यादातर को याद नहीं होगा कि उन्होंने अपनी मेहनत की कमाई का कुछ अंश सेवाभाव से इनमें खर्च किया हो। लेकिन इनमें कुछ नये लोग आकर काम न करने लगे इसलिए एक षड़यंत्र के तहत इनके द्वारा सभी प्रकार की सदस्यता ज्यादातर संस्थाओं में बंद कर दी गई हैं इतना ही नहीं जो पुराने लोग सदस्य है वो अपने सुझाव देने के साथ साथ ये ना पूछने लगे कि वर्तमान कमेटियों ने क्या क्या कार्य किया है इस तथ्य को ध्यान में रख एक दो संस्थाओं को छोड़ दे तो बाकी संस्थाओं की वो बैठकें भी नहीं बुलाई जाती जिनमें पदाधिकारी चुने जाने का कार्यक्रम आय व्यय का विवरण और अब तक हमने क्या किया यह बताने हेतु वार्षिक सभा जनरल हाउस की बैठक तो बुलाई ही नहीं जाती। जो सदस्य विभिन्न प्रकार से बनते है उनकी भी समय से ना तो बैठक बुलाई जाती और ना ही संस्था के हित में कोई चर्चा होती है। बस चाय पिलाई एसी की हवा खिलाई और एजेंडे पे चर्चा किये बिना ही साईन कराये और बैठक समाप्त।

लेकिन अब शायद परिवर्तन की लहर इन सब संस्थाओं में भी चलने लगे ऐसा बीती 14 सितंबर को अलेक्जेंडर एथलेटिक्स क्लब जिसमें वार्षिक सभा भी होती है और कार्यक्रम भी घोषित किये जाते है तथा सदस्यों से उनके विचार भी जाने जाते है फिर भी पुराने की बजाए सदस्यों ने परिवर्तन परिवार पैनल के तीनों उच्च पदाधिकारी जिताकर यह साबित कर दिया कि वोट किसी ने भी बनाई हो लेकिन अब हर व्यक्ति उसका उपयोग करना समझ गया हैं एवं स्वतंत्र है। जो वर्तमान में लोग बैठे है इनके बुजुर्गों का सम्मान करते हुए क्योकि वो अच्छा काम करते थे उनके कहने से वोट देते रहे हो लेकिन अब यह गलतफमियां इन संस्थाओं में जमे लोगों को छोड़ देनी चाहिए क्योकि चुनाव हारना व जीतना कोई बड़ी बात नहीं होती है। विषय है पारदर्शी वातावरण में लोकतांत्रित तरीके से हो। कार्य व चुनाव इसलिए जहां कई लोगों का यह कथन सही लगा कि नगर के सभी चौंबरों व शिक्षा संस्थानों में मौजूद सदस्यो को आगे आकर इनमें लोकतांत्रित व्यवस्था लागू करने और सरकार से जो आर्थिक सहायता मिलती है या सदस्यों से जो शुल्क आता है उसे सही प्रकार से खर्च करने के लिए हर काम पारदर्शी हो तथा चुनाव का एजेंडा घोषित किया जाए। जो सदस्य अब नहीं है उनके बच्चों को भी सदस्य बनाया जाए और हर वर्ष नई सदस्यता शुरू कर नई पीढ़ी को आगे आने का मौका दिया जाए। जिसका मार्ग अलेक्जेंडर एथलेटिक्स क्लब में विजयी परिवर्तन परिवार के पदाधिकारियों द्वारा खोल दिया गया है।
(प्रस्तुतिः- अंकित बिश्नोई राष्ट्रीय महासचिव सोशल मीडिया एसोसिएशन एसएमए व पूर्व सदस्य मजीठिया बोर्ड यूपी संपादक पत्रकार)

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