Friday, July 26

पीएम और सीएम साहब दे ध्यान! मिलावटी खाद्य पदार्थों की बिक्री, त्यौहारों पर ही क्यों मारे जाते है छापे, वर्ष भर अभियान क्यों नहीं चलाते खाद्य सुरक्षा अधिकारी, हार्टअटैक, किडनी जैसी गंभीर बिमारी

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मिलावट किसी एक घर मौहल्ला शहर या देश की समस्या नहीं है अब यह विश्वव्यापी अभिशाप बनती जा रही है। क्योंकि मिलावट खोर मुनाफा कमाने और रहीश बनने और ऐसपरिस्ती के साधन जुटाने के लिए हल्दी बेसन लाल मिर्च लड्डू मिठाई दूध पनीर केक कुकिंज नमकीन चायपत्ती अन्य मसालों कचरी और अब तो वर्ष में होने वाले धार्मिक तीज त्यौहारों में व्रतों में खाने वाले सामानों में भी मिलावट करने लगे है जिससे देश भर में आधी आबादी के पेट और हाजमें को मेरी निगाह में बिगाड़कर रख दिया है इसके अलावा मिलावटी खाद्यय सामग्री से पेट की गंभीर बिमारियों के अतिरिक्त हेपीटाईटिस पीलिया लीवर और पेट के रोग खून में संक्रमण के अतिरिक्त इससे लोग टीवी हार्टअटैक किडनी जैसी गंभीर बिमारियों से भी प्रभावित हो रहे है। लेकिन संबंधित विभाग के अफसर यही बताते घूम रहे है कि साल भर में इतने चालान किये इतना जुर्माना वसूला और दावा कर रहे है कि विभाग खाद्य सुरक्षा की टीमों द्वारा नागरिकों को अभियान चलाकर जागरूक किया जा रहा है। वो कहां जागरूक कर रहे है और किसे जागरूक कर रहे है ये तो वहीं जान सकते है। लेकिन मैंने ऐसा कोई जागरूकता अभियान चलते ना तो देखा और ना सुना। सवाल यह उठता है कि जब लगभग 50 प्रतिशत नमूने फेंल हो रहे है तो त्यौहार के मौकों पर ही खाद्य विभाग क्यों नमूने लेता है और सक्रिय होता पूरे साल उसके द्वारा क्यों नहीं नमूने भर लोगों को जागरूक कर मिलावटी खाद्यय प्रदार्थों की बिक्री क्यों नहीं रोकी जाती। सामाज में कोड के समान फैलती जा रही मिलावटी खोरी की ये कहानी कहां तक पहुंच रही है हम इसका अंदाज इस खबर से लगा सकते है। दिल्ली दूध योजना (डीएमएस) शनिवार से दूध की आपूर्ति नहीं कर पाएगी। दूध में कास्टिक सोडा पाए जाने के बाद भारतीय खाद्य सुरक्षा एवं मानक प्राधिकरण (एफएसएसएआई) की क्षेत्रीय इकाई ने दिल्ली दूध योजना का लाइसेंस तत्काल प्रभाव से निलंबित कर दिया है।
बताते है कि दो महीने पहले दिल्ली में डीएमएस के शादीपुर प्लांट में कास्टिक सोडा मिला था. उस दौरान बताया गया था कि उक्त दूध की आपूर्ति राजधानी में संचालित 400 बूथों और 800 दुकानों में की गयी थी. डीएमएस ने अनियमितता को स्वीकार किया था और सभी आधे लीटर के पैकेट वापस लेने का लिखित आदेश जारी किया था।
सभी बूथ संचालकों को पीने योग्य नहीं रह गए दूध के सभी पैकेट एकत्र कर डीएमएस को भेजने को कहा गया। ये दूध के पैकेट 20 जुलाई को तैयार किए गए थे और इन्हें जुलाई तक इस्तेमाल किया जा सकता था

डीएमएस वर्तमान में दिल्ली में आधा लीटर, एक लीटर और पांच लीटर के पैक में दूध की आपूर्ति करता है। दूध की आपूर्ति संसद भवन, सांसदों के आवास, साउथ एवेन्यू, नॉर्थ एवेन्यू, बंगाली मार्केट और एम्स और आरएमएल अस्पतालों के बूथों पर भी मरीजों को की जाती है।
इस चर्चा में दम लगता है कि वर्तमान जो हार्टअटैक और किडनी फेल होने के किस्से सुनने को मिल रहे है वो भी कहीं न कहीं मिलावटी सामग्री की देन हो सकते है। वैसे तो हम हर क्षेत्र में जागरूक होने के दावे कर रहे है जहां खड़े होते है बातें भी लंबी लंबी करते है लेकिन जिस जीवन को बचाने के लिए सब कुछ कर रहे है उसे बिगाड़ रही व्यवस्था से कैसे बचा जाए इस पर भी ध्यान देने की आवश्यकता के तहत हमें मिलावटी खाद्यय सामग्री की जांच करने की विधि का भी ज्ञान करना चाहिए और मुझे लगता है कि इसके लिए कोई बड़ी मेहनत करने की भी आवश्यकता नहीं है। क्योंकि गूगल पर इस संदर्भ में जानकारियां प्राप्त कर मिलावटी सामान खाने से बच सकते है। और सबसे बड़ी बात यह है कि समाज में किसी को भी मानव समाज और राष्ट्र विरोधी इसके काम में लगे व्यक्तियों के बचाव में नहीं आना चाहिए और खाद्यय सुरक्षा विभाग के अफसरों को मजबूर किया जाए कि वो प्रतिदिन अपने अपने क्षेत्र में अलग अलग एक साथ कई जगह छापे मारकर मिलावटी खाद्यय सामग्री की बिक्री रोकने का काम करे और इनके लिए प्रतिदिन नमूने भरे जाने की संख्या तय करने के साथ साथ उसकी जांच की नई विकसित व्यवस्था से भी इन्हें अवगत कराये।
बताते है कि खाद्य सामग्री खुले में न रखी जाए उसमें शुद्ध पानी का उपयोग हो। संक्रमित रोग से ग्रसित व्यक्ति को खाद्य निर्माण प्रतिष्ठिन में न रखे। बरतन साफ और धुले हुए हो। बासी खाद्य सामग्री का उपयोग न किया जाए। एक बार आग पर रखे उपयोग किये गये तेल का बार बार उपयोग न करे। लेकिन जितना देखने में आ रहा है ज्यादातर खाद्य पदार्थों के निर्माण करने वाले हलवाई हो या चाट पकोड़ी वाले होटल रेस्टोरेंट संचालक हो या ठेलों पर नमकीन या शिंकजी अथवा फल या उसकी चाट व चने बेचने वाले शायद 90 प्रतिशत के द्वारा इन नियमों का पालन नहीं किया जाता। मगर क्या कारण है कि खाद्य सुरक्षा अधिकारियों को यह दिखाई नहीं देता। और अब तो क्या कहे छोटी मोटी बिमारियों की तो बात दूर गंभीर बिमारियों की दवाई भी मिलावटी नकली और एक्सपाईरी डेट की दवाईयों की बिक्री भी पूरी तौर रोकने में असक्षम नजर आ रहे है। (प्रस्तुतिः अंकित बिश्नोई संपादक पूर्व सदस्य मजीठिया बोर्ड यूपी)

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