पांच अगस्त 2019 को जम्मू कश्मीर से अनुच्छेद 370 व 35ए समाप्त करने के बाद सुप्रीम कोर्ट में लगभग 22 याचिकाकर्ताओं द्वारा इसे चुनौती दी गई थी। इनमें से दो नेशनल कांफ्रेंस और पीडीपी के दल भी शामिल थे। बीते दिनों उक्त आदेश को कायम रखते हुए सुप्रीम कोर्ट ने 370 हटाने का फैसला सही ठहराया और कहा कि जम्मू कश्मीर राज्य का दर्जा बहाल करने के साथ ही सितंबर 2024 तक यहां चुनाव कराएं जाए। तथा यह भी कहा गया कि राज्य में आर्टिकल 356 लागू किया जा सकता है। साथ ही चीफ जस्टिस ने यह भी कहा कि राष्ट्रपति शासन को चुनौती देना सही नहीं। फैसले में कहा गया कि राज्य का भारत में एकीकरण पूर्ण स्थायी था। अनुच्छेद 370 संघवाद की विशेषता थी प्रभुसत्ता नहीं। राष्ट्रपति को इसे खत्म करने का पूरा अधिकार है। फैसला आने के बाद प्रधानमंत्री का कथन था कि शीर्ष कोर्ट का फैसला आशा की किरण और ऐतिहासिक है तो कंेद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने कहा कि पीओके भारत का अभिन्न अंग है। यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा कि एक भारत श्रेष्ठ भारत को फैसले से मजबूती मिलेगी लेकिन एकमात्र पीडीपी और नेशनल कांफ्रेंस को छोड़ दें तो किसी ने भी इस विरोध ऐसे शब्दों का उपयोग नहीं किया जिनका इन दोनों दलों के समान हो।
जब भी कोई ऐसा प्रकरण उत्पन्न होता है तो लोगों की अलग अलग राय होना लाजिमी है। यही लोकतंत्र की पहचान और मानवाधिकार की खूबियां है। मगर ज्यादातर का यह मानना रहा कि इस फैसले से विकास का नया युग शुरू होगा। जम्मू कश्मीर में बदलाव का सफल मजबूत होगा। कांग्रेसी दिग्गज नेता महाराजा हरिसिंह के पुत्र डॉ. कर्ण सिंह ने फैसला आने के बाद कहा कि अनुच्छेद 370 पर सुप्रीम कोर्ट के निर्णय का स्वागत है। राज्य का दर्जा जल्द बहाल किया जाए। कांग्रेस नेता पूर्व गृहमंत्री पी चिदंबरम तथा अभिषेक मनु सिंघवी ने मांग की कि राज्य में तत्काल चुनाव कराएं जाए।
मेरा मानना है कि देश में जब संविधान एक है तो मानक अलग अलग कैसे हो सकते हैं। और झंडा भी एक होना चाहिए। यह तभी संभव था जब जम्मू कश्मीर से यह धाराएं समाप्त होती। इसलिए देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का यह फैसला पूरी तौर पर हर भारतवासी के हित और सम्मान को कायम करने वाला तो है ही। जम्मू कश्मीर के नागरिकों और अन्य देश के निवासियों को आपस में जोड़ने में भी महत्वपूर्ण है। चुनाव होने के बाद वहां भी लोकतंत्र की बयार जो चलेगी उसका लाभ हर देशवासी को मिलेगा। यह बात विश्वास के साथ कही जा सकती है।
हम सब जानते हैं कि हमारे देश में अदालतों का महत्वपूर्ण स्थान हैं। जो भी फैसला हमारे न्यायाधीश चाहे हाईकोर्ट के हो या सुप्रीम कोर्ट के जो भी फैसला देते हैं हम उसे सिर झुकाकर मानते हैं। यह उनके प्रति सम्मान का प्रतीक है। वो बात और है कि मिले फैसले के विरूद्ध उच्च न्यायालय जा सकते है। कुछ लोग अनुच्छेद 370 और 35ए हटाने के निर्णय को लेकर पीएम की आलोचना भी करते रहे हैं। लेकिन ऐसा करने वाले यह भूल रहे हैं कि यह तो राष्ट्र से संबंध मामला था। अगर कहीं किसी के पड़ोस में नया आदमी आता है तो उसे भी तालमेल बैठाने में समय लगता है तो फिर इतने बड़े मामले में यह छोटे विरोध और आलोचना कोई महत्व नहीं रखती। जहां तक पीएम नरेंद्र मोदी सरकार के फैसलों की बात करें तो चाहे वह 2016 में हुई नोटबंदी हो या तीन तलाक कानून, अथवा दिल्ली अध्यादेश् विधेयक राफेल डील सेट्रल विस्टा परियोजना आधार की वैधानिकता कानून कुछ लोगों ने हमेशा इसका विरोध किया लेकिन देशवासियों ने इसकी प्रशंसा तो की ही अदालतों ने भी इन सभी फैसलों पर अपने मुहर लगाकर इसे सही साबित किया है। मुझे लगता है कि अब हम सभी को कश्मीरी पंडितों को वहां शीघ्र से शीघ्र वहां बसाने की मांग करते हुए वहां लोकतंत्र बहाल हो मानवाधिकारों की रक्षा हो और हर कोई यह कह सके कि कश्मीर में हम भी बस सकते हैं। ऐसे माहौल के साथ ही हम सबको इस मामले को अब विरोध करने की बजाय आपसी एकता और भाईचारा मजबूत करने के प्रयास की शुरूआत कर राष्ट्रपति और सुप्रीम कोर्ट के फैसले का सम्मान करना चाहिए इसी में देश की प्रगति और हम सब की भलाई और भावी पीढ़ी का भविष्य उज्जवल होगा।