Friday, July 26

भारत की सफीना हुसैन को मिला वाइज पुरस्कार

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नई दिल्ली 04 दिसंबर। ‘एजुकेट गर्ल्स’ की संस्थापक सफीना हुसैन को भारतीय गांवों में स्कूली पढ़ाई को किसी वजह से बीच में छोड़ देने वाली 14 लाख लड़कियों को मुख्यधारा की शिक्षा में वापस लाने के लिए प्रतिष्ठित ‘वाइज’ पुरस्कार से सम्मानित किया गया है. वहीं पांच लाख डॉलर की इनामी राशि वाला यह पुरस्कार पाने वाली सफीना पहली भारतीय महिला हैं. बता दे कि ‘एजुकेट गर्ल्स’ एक गैर सरकारी संगठन यानि कि एनजीओ है.
सफीना हुसैन दिवंगत अभिनेता यूसुफ हुसैन की बेटी और फिल्म निर्माता हंसल मेहता की पत्नी है,जिन्हें इस हफ्ते की शुरुआत में दोहा में ‘वर्ल्ड इनोवेशन समिट फॉर एजुकेशन’ यानि कि वाइज शिखर सम्मेलन के 11वें संस्करण में कतर फाउंडेशन ने इस पुरस्कार से सम्मानित किया हैं. यह शिक्षा के क्षेत्र में दिए जाने वाले सबसे प्रतिष्ठित पुरस्कारों में से एक है.

सफीना यह पुरस्कार प्राप्त करने वाली दूसरी भारतीय हैं. इससे पहले सह-संस्थापक माधव चव्हाण को भारत में लाखों वंचित बच्चों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्रदान करने के लिए 2012 में ‘वाइज’ पुरस्कार से सम्मानित किया गया था. सफीना ने दिए एक इंट्रवयू में कहा- “जब 16 साल पहले ‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’ के बारे में किसी ने सुना भी नहीं था, तब मैंने स्कूल छोड़ने वाली लड़कियों को मुख्यधारा की शिक्षा में वापस लाने के लिए एनजीओ ‘एजुकेट गर्ल्स’ को स्थापित करने का फैसला किया था. भारत में 21वीं सदी में भी ऐसे गांव हैं जहां बकरियों को तो संपत्ति माना जाता है लेकिन लड़कियों को बोझ माना जाता है.”

सफीना ने कहा- “लड़कियों को स्कूल से बाहर रखने या उन्हें अपनी शिक्षा पूरी किए बिना स्कूल छोड़ने के लिए मजबूर करने के गरीबी से लेकर पितृसत्ता तक के कई वजह हैं, जिसें में गिन नहीं सकती.” उन्होंने कहा- ‘मुझे इस बात के महत्व का एहसास तब हुआ जब मैं अपने परिवार की कठिन परिस्थितियों के कारण तीन साल तक पढ़ाई नहीं कर पाई थी.” सफीना की किस्मत ने तब करवट ली जब तीन साल बाद उनकी एक रिश्तेदार ने उन्हें फिर से शिक्षण संस्थान भेजने का बीड़ा उठाया और आखिरकार उन्हें ‘लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स’ में दाखिला मिल गया था. उन्होंने कहा- “मैंने तभी फैसला किया कि मुझे अपने जैसी लड़कियों के लिए ऐसी ही अहम रोल अदा करना है.” सफीना ने जब ग्रामीण राजस्थान में यह मुहिम शुरू की थी तो उन्हें पारिवारिक उदासीनता, प्रेरणा की कमी और लड़कियों की अनिच्छा जैसी कई छोटी-बड़ी बाधाओं का सामना करना पड़ा था, लेकिन उन्होंने हिम्मत नहीं हारी. अब उनकी मुहिम अब मध्य प्रदेश, बिहार और उत्तर प्रदेश तक फैल गई है.

सफीना और उनकी टीम की सभी लड़किया गांव-गांव जाकर और हर घर का दरवाजा खटखटाकर यह पता करती है कि क्या कोई लड़की ऐसी है जो स्कूल नहीं जा रही है. उन्होंने कहा- “यह मिशन बहुत व्यक्तिगत है इसलिए हमारा मॉडल भी व्यक्तिगत होना चाहिए.

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