Monday, December 23

स्कूल संचालक समझ ले लोकतंत्र में सूचना का अधिकार की बात को दबाना संभव नहीं है

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शहर के अंग्रेजी माध्यम के स्कूलों की संस्था स्कूल फेडरेशन की बैठक रूड़की रोड स्थित वेद इंटरनेशनल स्कूल में हुई जिसमें 50 से अधिक अपने आप को बड़ा कहने वाले स्कूलों के संचालक और प्रबंधक प्रधानाचार्या मौजूद रहे। बैठक में पूर्व मंडलायुक्त आईएएस सुरेंद्र सिंह की एक पुस्तक का भी वितरण किया गया जिसमें रामायण और महाभारतकालीन इतिहास से लेकर आजादी की लड़ाई में मेरठ की भूमिका का विवरण दिया गया है। इसके अलावा सामाजिक शैक्षिक धार्मिक व मेट्रों व विकास कार्यों की भी चर्चा की गई है। यहां तक तो सब ठीक है क्योंकि लोकतंत्र में सबकी अपनी पसंद और अपनी बात कहने का अधिकार सबको है। इस दीवाली मिलन समारोह के नाम पर हुई बैठक में स्कूलों की कमियां उजागर होने से परेशान कुछ संचालकों ने आरटीआई का दुरूपयोग होने की बात करते हुए निर्णय लिया कि प्रशासन को एक सुझाव पत्र दिया जाए ताकि आरटीआई जैसे सेवा का दुरूपयोग होने से बच सके। या तो स्कूल संचालक आरटीआई के बारे में अनभिज्ञ है या वो इसके असल मकसद को समझना ही नहीं चाहते क्योंकि जब इसको लागू किया गया था तो इसका उददेश्य यह था कि आम आदमी का उत्पीड़़न किसी भी स्तर पर ना हो और अगर वो कोई जानकारी चाहता है तो वह आरटीआई के माध्यम से संबंधित व्यक्ति से सूचना मांग सकता है। धीरे धीरे इसकी महत्ता को देखते हुए इसमें बदलाव होते रहे हैं। एक बार को अगर यह सोच भी ले कि कुछ लोग आरटीआई की आड़ में अपने मनोरथ सिद्धी के प्रयास में लगे हो सकते हैं तो पुलिस प्रशासन आरटीआई के उपयोग पर रोक नहीं लगा सकती। आयोग के चेयरमैन से शिकायत अगर कोई परेशानी है तो जरूर की जा सकती है इसलिए स्कूल संचालकों को यह लगता है कि कोई आरटीआई कार्यकर्ता उन्हें परेशान कर रहा है तो वह सूचना आयोग के चेयरमैन या उनके कार्यालय में लिखित शिकायत कर सकते हैं मगर उससे पहले स्कूल संचालकों को यह सोचना होगा कि वो क्या सारे काम शिक्षा नीति के अनुसार ही कर रहे है। असलियत तो स्कूल संचालक ही जान सकते हैं लेकिन मेरा मानना है कि ज्यादातर स्कूल संचालक पहले तो अवैध निर्माण कर कृषि या अन्य उपयोग की जमीनों पर स्कूल चला रहे हैं तो नीति के विरूद्ध है और सरकार को भी इससे भारी राजस्व का नुकसान उठाना पड़ रहा है। दूसरे फीस को लेकर मौखिक चर्चा अनुसार जो सुना जाता है सरकार शासन और अदालत ने कुछ आदेश दिए हैं जो सब स्कूल संचालक लागू नहीं कर रहे हैं। अभिभावकों का कहना है कि जिन नामों पर फीस ली जाती है उन विषयों की पढ़ाई पूरी तौर पर नहीं की जाती और स्कूलों में जो सुविधाएं बच्चों को दी जानी चाहिए वो नहीं दी जाती। स्कूल संचालकों के बारे में अभिभावकों का यह कहना कि अपने यहां आयोजित कार्यक्रमों में वीआईपी को बुलाकर तथा उसका महिमामंडन कर स्कूल वाले समझते हैं कि सूचना का अधिकार कार्यकर्ता व अभिभावकों की आवाज दबाई जा सकती है तो यह उनकी गलतफहमी है। मैं आम नागरिकों की इस बात से भी सहमत हूं कि पहले स्कूल संचालक प्रधानाचार्य अपनी व्यवस्थाएं सुघारे उसके बाद आरटीआई दुरूपयोग का मुददा उठाएं तो शायद सही होगा। एक अभिभावक की यह बात सही लगी कि कुछ स्कूल हर साल अपने रिजल्ट को लेकर विज्ञापन समाचार पत्रों में छपवाते हैं और प्रशंसा भरे लेख भी छपवाते हैं लेकिन यह एडमिशन अपने यहां किन बच्चों को लेते है। एक अभिभावक का मत है कि जब 70 प्रतिशत वाले बच्चे का एडमिशन लिया जाएगा तो रिजल्ट तो अपने आप अच्छा होगा ही। अगर यहां के प्रधानाचार्या व संचालकों मेें दम है तो 35 से 45 प्रतिशत लाने वाले बच्चों का प्रवेश अपने यहां ले और वह पूर्ण रिजल्ट लाए तो लगेगा कि इनमें कुछ काबिलियत है। एक सज्जन की यह बात अच्छी लगी कि स्कूल संचालक अपने गिरेबान में झांककर देखें तो पता चलेगा कि सरकारी शिक्षा नीति और पीएम व सीएम की भावनाओं के तहत दी जाने वाली शिक्षा को कैसे नजरअंदाज कर रहे है। कई लोगों का यह भी कहना है कि मंडलायुक्त बच्चों के प्रार्थना पत्र और आरटीआई कार्यकर्ताओं पर कार्रवाई करे लेंकिन इन्होंने जो नियम विरूद्ध कॉलेज बना रखे हैं और शिक्षा के नियमों का पालन शायद नहीं कर रहे हैं तो इन पर भी कार्रवाई की जाए तो ठीक है वरना अनाप शनाप फीस के दम पर यह लोकतंत्र की आवाज तो नहीं दबा पाएंगे। प्रयास चाहे कितने ही कर ले।

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