Wednesday, October 15

केंद्र सरकार है आदिवासियों के हितों के लिए प्रयासरत, असम की सरकार तीन हजार गज भूमि खनन के लिए देकर इन्हें उजाड़ने की पहल क्यों कर रही है

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असम के दिमा हंसाओ जिले में महाबल सीमेंट को लगभग आधी जमीन 3000 हजार बीघा जमीन आवंटित किए जाने को लेकर गुवाहाटी हाईकोर्ट ने सरकार से नाराजगी जताई और इसे आदिवासियों के हकों का उल्लंघन बताते हुए कहा कि यह क्या मजाक है। जो एक सीमेंट कंपनी को खनन के लिए आवंटित कर दिया गया इतना बड़ा क्षेत्र। ग्रामीणों की तरफ से दायर याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए गुवाहाटी हाईकोर्ट ने कहा कि यह गलत है और जस्टिस संजय कुमार मेघी ने इसे एक विचित्र फैसला सरकार का बताया। क्यांेकि संविधान की छठी अनुसूची के तहत यह जिला आता है जहां जनजाति के हितों को प्राथमिकता दी जानी चाहिए। जिले का उमंगरागसो क्षेत्र पर्यावरण के हिसाब से संवेदनशील है। यहां पानी के गर्म झरने, प्रवासी पक्षियों वन्य जीवों के आवास है। जिसे देखते हुए हाईकोर्ट ने महाबल सीमेंट को जमीन आवंटन करने की नीति का ब्यौरा रिकॉर्ड पर लाने का निर्देश दिया है। इस मामले में आदिवासियों के अधिकारों की रक्षा करने की बात कही गई है। देखना यह है कि असम सरकार इस मामले में क्या जवाब देती है और फैसला लेती है। आम आदमी के दृष्टिकोण से सोचे तो देश की सरकार भी आदिवासियों के हितों की सुरक्षा और वहां पर्यावरण को नुकसान ना हो ऐेसे प्रयास हो रहे हैं। ऐेसे में किसी सीमेंट कंपनी को तीन हजार बीघा भूमि खनन के लिए देना निदंनीय तो है ही केंद्र सरकार को भी इसमें सख्त निर्णय लेना चाहिए और विपक्ष के नेता राहुल गांधी को अपने सांसदों का एक दल भी असम के दिमा हसाओं जिले में भेजकर समीक्षाा करानी चाहिए। एनजीटी भी जानकारी लेकर इस मामले में जनहित में निर्णय ले। यह बड़ा ही सोचनीय विषय है कि केंद्र सरकार गरीबों आदिवासियों की सुरक्षा और उनके अधिकारों का संरक्षण करने की बात करते नहीं थक रही है और उसी की पार्टी व सहयोग से बनी सरकार एक सीमेंट कंपनी को जिले की तीन हजार बीघा जमीन जिला खनन के लिए आवंटित किया जाना सोचनीय है। भाजपा को असम सरकार के इस फैसले पर विचार कर आदिवासियों के हितों की अवहेलना के लिए सीएम से जवाब तलब करते हुए दोषियों पर कार्रवाई करनी चाहिए।
(प्रस्तुतिः- रवि कुमार बिश्नोई संपादक दैनिक केसर खुशबू टाइम्स मेरठ)

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