Sunday, November 10

कुछ सरकारी हुक्मरानों को निरंकुशता से रोकने के लिए महत्वपूर्ण है निर्णय, आधा घंटा अवैध हिरासत में रखने पर एसएसआई पीड़ित को जेब से देंगे 50 हजार मुआवजा

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जाने अनजाने पुलिस द्वारा की जाने वाली ज्यादतियों और उत्पीड़न व नागरिकों को झूठे मामले में फंसाने की कोशिश व गलत तरीके से हिरासत में रखे जाने की खबरें आए दिन पढ़ने सुनने को खूब मिलती है। आम नागरिक एक तो यह जानता नहीं है कि संविधान में ऐसे प्रकरणों में उसके क्या क्या अधिकार है और जब वह खाकी के चक्क्र में फंसता है तो डंडे के डर से सबकुछ भूल जाता है। लेकिन अब अदालतों द्वारा पुलिस का नागरिक उत्पीड़न के संदर्भ में आए दिन दिए जाने वाले फैसलों से निरंतर जागरूकता बढ़ रही है। वो बात दूसरी है कि अभी पुलिस और प्रशासन के अफसरों द्वारा कार्रवाई किए जाने के बावजूद निचते स्तर पर पूर्ण सुधार नहीं हो पा रहा है। मगर मुझे लगता है कि देशभर में अधिवक्ताओं की ऐसी समितियां बने जो नागरिकों को संविधान में मिले अधिकारों से सोशल मीडिया मंचों गोष्ठियों और राय शुमारी के माध्यम से अवगत कराए और कुछ पुलिस वालों की ज्यादतियों के चलते जो समाज में भय और नागरिकों में इनकी छवि खराब हो रही है उसमें सुधार के लिए कदम बढ़ाएं।
इस संदर्भ में दिल्ली हाईकोर्ट द्वारा दो उपनिरीक्षकों पर 50 हजार का मुजावजा देने के दिए गए आदेश महत्वपूर्ण कहे जा सकते हैं। इस संदर्भ में प्राप्त एक खबर के अनुसार दिल्ली हाई कोर्ट ने दिल्ली पुलिस को करीब आधे घंटे तक हवालात में अवैध रूप से हिरासत में रखे गए एक व्यक्ति को 50 हजार रूपए का मुआवजा देने का फैसला सुनाया। अदालत ने कहा कि जिस तरह से अधिकारियों ने नागरिकों के साथ व्यवहार किया, उससे वह ‘क्षुब्ध है। न्यायमूर्ति सुब्रमण्यम प्रसाद ने एक ‘सार्थक संदेश देने के लिए निर्देश दिया कि मुआवजा दोषी पुलिस अधिकारियों के वेतन से वसूला जाएगाघ्। अदालत ने कहा कि अधिकारियों ने याचिकाकर्ता की स्वतंत्रता या कानून की उचित प्रक्रिया का पालन किए बिना मनमाने तरीके से काम किया क्योंकि याचिकाकर्ता को अकारण घटनास्थल से उठा लिया गया और हवालात के अंदर ड़ाल दिया गया। अदालत ने पांच अक्टूबर के अपने आदेश में कहा कि याचिकाकर्ता द्वारा हवालात में बिताया गया समय, चाहे थोड़ी देर के लिए भी हो, उन पुलिस अधिकारियों को बरी नहीं कर सकता, जिन्होंने कानून द्वारा स्थापित उचित प्रक्रिया का पालन किए बिना याचिकाकर्ता को उसकी स्वतंत्रता से वंचित कर दिया। न्यायाधीश ने कहा कि ‘इस अदालत का मानना है कि अधिकारियों को एक सार्थक संदेश भेजा जाना चाहिए कि पुलिस अधिकारी स्वयं कानून नहीं बन सकते। इस मामले के तथ्यों को देखें तो, भले ही याचिकाकर्ता की अवैध हिरासत केवल लगभग आधे घंटे के लिए थी, यह कोर्ट याचिकाकर्ता को 50 हजार रूपए का मुआवजा देने के लिए इच्छुक है, जिसे प्रतिवादी नंबर चार और पांच के वेतन से वसूल किया जाएगा। याचिकाकर्ता ने आरोप लगाया कि पिछले साल सितंबर में एक महिला और एक सब्जी विक्रेता के बीच लड़ाई की शिकायत के बाद उसे स्थानीय पुलिस द्वारा बिना किसी औपचारिक गिरफ्तारी के अवैध रूप से हवालात में रखा गया था। उन्होंने अपनी व्यक्तिगत स्वतंत्रता के उल्लंघन के लिए मुआवजे की मांग की। अदालत ने कहा कि याचिकाकर्ता को उसके खिलाफ प्राथमिकी के बिना ही मौके से उठा लिया गया और हवालात में ड़ाल दिया गया, जो संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत व्यक्तिगत स्वतंत्रता के उसके अधिकार के खिलाफ थाघ्। न्यायाधीश ने कहाॉ ‘यह अदालत इस तथ्य से बहुत क्षुब्ध है कि याचिकाकर्ता को गिरफ्तार भी नहीं किया गया था। उसे बस मौके से उठाया गयाॉ थाने लाया गया और बिना किसी कारण के हवालात के अंदर ड़ाल दिया गया। पुलिस अधिकारियों ने मनमाने तरीके से एक नागरिक के संवैधानिक और मौलिक अधिकारों का उल्लंघन कर कार्रवाई कीॉ जो भयावह है।
हाईकोर्ट के इस निर्णय में सबसे अच्छी बात यह रही कि बिना किसी प्राथमिकी के घर से उठाकर आधा घंटे असंवैधानिक रूप से हिरासत में रखकर उसके मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करने वाले पुलिस के दोनों एसएसआई प्रतिवादी नंबर चार और पांच को यह मुआवजा अपने वेतन से देना पड़ेगा।
मैं हमेशा यह मानता रहा हूं कि अदालतों में जो मुकदमों की संख्या बढ़ रही है और कुछ अफसर निरंकुश होकर कार्रवाई कर रहे हैं उनको फर्क इसलिए नहीं पड़ता कि इन हुक्मरानों के विरूद्ध ना तो कोई व्यक्तिगत कार्रवाई होती है और जो जुर्माना लगता है वह विभाग द्वारा भर दिया जाता है। इसलिए यह सरकारी बाबू निरंकुशता की सभी सीमाएं लांघ रहे हैं लेकिन अदालत के इस आदेश से कि मुआवजा इन एसएसआई को अपनी जेब से भरना पड़ेगा से समाज में एक अच्छा संदेश जाएगा वहीं जेब से पैसा निकलने पर कितना कष्ट होता है इसका भी इन्हें अहसास होगा। अभी तक तो ग्रामीण कहावत हडडी के चक्कर में कटरा कटवा दिया को आत्मसात करते हुए अपने छोटे से फायदे के लिए सरकार का बड़े से बड़ा नुकसान करने से भी नहीं चूकते हैं।

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