नई दिल्ली, 20 नवंबर। शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने बीते शनिवार को कहा कि केंद्र ने पाठ्यक्रम में वेदों और भारतीय भाषाओं को शामिल करने के उद्देश्य से 100 करोड़ रुपये अलग रखे हैं, जो छात्र वैदिक बोर्ड द्वारा दी जाने वाली दसवीं (वेद भूषण) और बारहवीं (वेद विभूषण) की परीक्षा उत्तीर्ण करते हैं, वे अब चिकित्सा और इंजीनियरिंग सहित उच्च शिक्षा के लिए किसी भी कॉलेज में शामिल होने के पात्र होंगे।
यह निर्णय सरकार द्वारा नामित निकाय, एसोसिएशन ऑफ इंडियन यूनिवर्सिटीज द्वारा हाल ही में वैदिक शिक्षा को फिर से शुरू करने पर सहमति के बाद आया है। इस निर्णय से भारतीय शिक्षा बोर्ड, महर्षि सांदीपनि राष्ट्रीय वेद संस्कृत शिक्षा बोर्ड और महर्षि सांदीपनि राष्ट्रीय वेद विद्या प्रतिष्ठान जैसे वैदिक बोर्डों के छात्रों को लाभ होगा। उन्हें राष्ट्रीय मुक्त विद्यालयी शिक्षा परीक्षा द्वारा आयोजित किसी अन्य परीक्षा में बैठने की आवश्यकता नहीं होगी। इससे पहले अन्य बोर्डों के छात्रों को आगे की शिक्षा के लिए कॉलेजों में प्रवेश के लिए आवेदन करने के लिए एनओएसई परीक्षा उत्तीर्ण करनी पड़ती थी।
केंद्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय में शनिवार को लक्ष्मी पुराण के संस्कृत अनुवाद का विमोचन करते हुए प्रधान ने इस बात पर प्रकाश डाला कि कैसे वेदों के ज्ञान, मूल्यों और संदेश को आत्मसात करके हम सामाजिक न्याय, महिला सशक्तिकरण और महिला नेतृत्व वाले विकास की ओर बढ़ सकते हैं।
उन्होंने आशा व्यक्त की है कि विश्वविद्यालय नई पीढ़ियों को संस्कृत सहित भारतीय भाषाओं, साहित्य और विरासत से जोड़ने का काम करेगा। लक्ष्मी पुराण एक भक्तिपूर्ण काव्य है, जिसकी रचना महान संत कवि बलराम दास ने 15वीं शताब्दी में पुरी (ओडिशा) में की थी। बलराम दास को उड़िया भाषा में उनकी महान कृति रामायण के कारण ओडिशा के बाल्मीकि के रूप में जाना जाता है। वह उड़िया साहित्य के पंचसखा युग से संबंधित हैं, जो भक्ति और ब्रह्म ज्ञान के प्रचार के लिए जाना जाता है।