Friday, November 22

देश हित में नहीं जातिगत जनगणना, गुटों में बंट सकते है लोग

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देश की आजादी से पूर्व मिली जानकारी के अनुसार भारत में कई जनगणना हुई जिसमें वर्गीकरण आपसी टकराव और तनाव भी बढ़ा उसके बावजूद पिछले कई वर्षों से जाति आधारित जनगणना की मांग उठ रही थी लेकिन पूर्व में मोदी सरकार ने 2021 में कोरोना महामारी के चलते यह साफ कर दिया था कि ये जनगणना में अलग से जाति की गणना नहीं करायेगी।
लेकिन बिहार में सरकार द्वारा कराई गई जाति आधारित जनगणना की रिपोर्ट जो जाहिर की गई आजादी के बाद देश में ऐसा पहली बार हुआ है। बताते है कि 215 जातियों में 190 की आबादी एक प्रतिशत से भी कम है। खबर है कि बिहार में केवल 25 प्रतिशत जातियां ही इस श्रेणी की है जिनकी जनसंख्या एक प्रतिशत से अधिक है। इससे कम प्रतिशत आबादी वाले लोग अति पिछड़ा और मुस्लिम व स्वर्ण समाज में भी है। बिहार के उप मुख्यमंत्री तेजस्वी यादव इसे ऐतिहासिक दिन बता रहे है। तो यूपी के पूर्व मुख्यमंत्री श्री अखिलेश यादव समाजिक न्याय का गणितय आधार बताते हुए कह रहे है कि ये संघर्ष का नहीं सहयोग का नया रास्ता खोलेगी। तो बिहार के मुख्यमंत्री नीतिश कुमार का कहना है कि इससे आर्थिक स्थिति को व्यापार का पैमाना बनायेगें। तो केन्द्रीय मंत्री गिरीराज सिंह का कहना है कि ये जनता में भ्रम फैलाने के अलावा कुछ नहीं है। नीतिश और लालू के कार्यकाल में गरीबों का क्या उद्धार किया इसका रिपोर्ट कार्ड देना चाहिए। लेकिन इस प्रकरण में देश के प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी का स्पष्ट कहना है कि विकास विरोधी आज भी जाति के नाम पर गरीबों की भावनाओं से खेलते है और आज भी खेल रहे है। जातपात के नाम पर लोगों को बांटते थे और आज भी ये ही पाप कर रहे है।
भले ही बिहार जातिगत गणना के आंकड़े जारी करने वाला पहला राज्य होने की बात कर रहा हो मगर इस बात से भी इनकार नहीं किया जा सकता कि पूरे देश को मजबूत राष्ट्र बनाये रखने भाईचारा और सद्भाव बना रहे इसके लिए जातिगत आधार पर जनगणना मेरी निगाह में सही नहीं कही जा सकती। क्योंकि एक तरफ हम जाति सूचक संबोधन से मना करते है दूसरी तरफ एक दूसरे को लड़ाने में सक्षम जाति गणना को बढ़ावा दे रहे है। मुझे लगता है कि ये समय ऐसा था कि हमें मानवीय दृष्टिकोण से ग्रामीण कहावत एक घाट बकरी शेर पीये पानी की मजबूती के लिए संगठित होकर काम करना था। जो जिसमें की ये शुरूआत अच्छी नहीं है। अब अगर सामान्य दृष्टिकोण से भी देखे तो ओबीसी केन्द्र बताने वाले हर मामले में मजबूत है। और इनका रूझान जिस प्रकार से केन्द्र में भाजपा की सरकार आने के बाद से भारतीय जनता पार्टी और उनकी सहयोगियों की सरकार में इन्हें संगठित रूप से बढ़ावा दिया गया। और अब प्रयागराज में होने वाले ओबीसी महाकुंभ में भाजपा इसके लिए कुछ अहम घोषणाऐं कर सकती है और मोदी सरकार में ओबीसी से जुड़े हुए कार्यों की ओर इस वर्ग का ध्यान दिलाकर उन्हें अपने साथ ला सकती है। दूसरी तरफ देश भर में जिसकी जितनी हिस्सेदारी उसकी उतनी दावेदारी का मुद्दा हर क्षेत्र में उठ सकता है तो दूसरी तरफ जनसंख्या के हिसाब से कमजोर जातियां एक जुट होकर अपने अधिकारों और भविष्य में अपने उत्थान की बात कहकर कई मांग उठा सकती है। और सबसे बड़ी बात जो किसी भी क्षेत्र में कमजोर होता है वो ढाणे से मुकाबले के लिए जिस प्रकार से एक जुट होकर खड़ा हो जाता है उसी प्रकार अब राजनीति के क्षेत्र में भी अपना पैर जमाकर खड़े हो सकते है। कुछ भी हो मुझे लगता है कि ये जातिगण जनगणना किसी भी रूप में नहीं होनी चाहिए थी और देश हित में जो बिहार ने किया वो केन्द्र को नहीं करना चाहिए। हां विपक्ष ये आवाज जरूर उठायेगा कि पूरे देश में हो जातिगत जनगणना। बताते है कि जातिगत जनगणना में जो बात उभरकर आई है वो आंकड़े 2,83,4400107 परिवारों से जुटाए गये है। इन परिवारों में पुरूषों की संख्या 6,41,310092 बताई गई है। तो महिलाओं की संख्या इनसे लगभग 30 लाख कम बताते है। और यह 6,11,3800460 बताई जाती है। कुल मिलाकर इससे संबंध छपी खबरों को पढ़कर जो तथ्य उभरकर आ रहे है उससे लगता है कि इससे समाज में बिखराव मनमुटाव तो पैदा होगा ही जहां तक 2024 के लोकसभा चुनाव की बात है तो ऐसा लगता है कि पीएम मोदी ओबीसी वर्ग को बड़ी संख्या में अपने साथ बांधे रखने में सफल हो सकते है क्योंकि खबरों का कहना है कि वो खुद ओबीसी वर्ग से है। और सरकार ने इस वर्ग के लिए ओरों के साथ काफी कुछ किया है। और इसका लाभ भी किसी न किसी रूप में भारतीय जनता पार्टी को मिल सकता है। क्योंकि अन्य भले ही किसी कारण से केन्द्र सरकार और भाजपा चुनाव में कमजोर पड़ जाए लेकिन जातिगत गणना के हिसाब से ऐसा होने वाला नहीं लगता है। क्योंकि अभी भी विपक्ष जिस स्तर पर चुनाव की तैयारियां कर रहा है भाजपा उससे कई गुना आगे बढ़ गई है। और वैसे भी हर समझदार व्यक्ति ये सोचता है कि सरकार केन्द्र की हो या प्रदेश की वो मजबूत होनी चाहिए तभी कमजोरों के हित सुरक्षित रह सकते है। इस जनगणना में जो तथ्य उभरकर आये है उसके हिसाब से धर्म आधारित आंकड़ों को देखे तो 81.99 प्रतिशत हिन्दू 17.70 प्रतिशत मुस्लिम 0.05 प्रतिशत ईसाई 0.01 प्रतिशत सिख 0.08 प्रतिशत बौद्ध।
ये बड़े ही अफसोस की बात है कि हर व्यक्ति को मानवता के आधार पर आगे बढ़ाने और जातिगत सोच से दूर रखने के प्रबल समर्थक राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की जयन्ती पर विकास आयुक्त विवेक कुमार सिंह द्वारा ये आंकड़े जारी किये गये। जब कोई निर्णय होता है तो उसके कई परिणाम निकलकर सामने आते है अब देखना ये है कि बिहार सरकार ने जो जातिगत जनगणना की है उसके कैसे कैसे परिणाम सामने आयेंगे। फिलहाल तो ये ही कहा जा सकता है कि होना क्या है ये भगवान और मतदाता ही जानता है।

 

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