Tuesday, December 23

उपराष्ट्रपति पद पर एनडीए ने राधाकृष्णन और विपक्ष ने सुदर्शन रेडडी को बनाया उम्मीदवार, आरएसएस की भूमिका को लेकर चर्चा करना ही बेकार है

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पूर्व उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ के इस्तीफा दिए जाने के बाद रिक्त स्थान पर अब एनडीए ने महाराष्ट्र के राज्यपाल राधाकृष्णन तो विपक्ष ने सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जस्टिस सुदर्शन रेडडी को अपना उम्मीदवार घोषित किया गया है। दोनों उम्मीदवारों द्वारा 20 अगस्त को नामांकन किया जा सकता है। खबर के अनुसार एनडीए के उम्मीदवार राधाकृष्णन सुबह 11 बजे नामांकन करेंगे। इस मौके पर पीएम मोदी के नेतृत्व में गठबंधन के नेता और सांसद मौजूद रहकर इनके नाम पर प्रस्तावक के रूप में हस्ताक्षर करेगे। बताते चलें कि गत दिवस राधाकृष्णन द्वारा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात की जा चुकी है। द्रमुके वरिष्ठ नेता पीएस इलागोवन का कहना है कि उनकी पार्टी राधाकृष्णन का समर्थन नहीं करेगी। उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि भाजपा ने अपने चुनावी फायदे को ध्यान में रखते हुए महाराष्ट्र के राज्यपाल सीपी राधाकृष्णन को उपराष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बनाया है। सत्ताधारी दल के सभी सहयोगी उनके साथ खड़े नजर आ रहे हैं।
बताते चलें कि उपराष्ट्रपति को चुनाव जीतने के लिए 992 वोट चाहिए। राजग के पास अभी कुल 422 का आंकड़ा मौजूद हैं मगर सहयोगी दलों तेदेपा और जदयू के समर्थन महत्वपूर्ण कह सकते हैं क्येांकि तेदेपा के पास 18 जबकि जदयू के पास 21 सांसद मौजूद हैं। आंध्र प्रदेश के सीएम चंद्रबाबू नायडू ने बीते शनिवार को राधाकृष्णन को अपना समर्थन दिया है तो बिहार के सीएम नीतिश कुमार ने भी अपने समर्थन की घोषणा की है। 11 सदस्यों वाली वाईएसआर कांग्रेस भी राधाकृष्णन का समर्थन कर रही है।
राधाकृष्णन की उम्मीदवारी के बाद कुछ विपक्षी क्षेत्रों में यह चर्चा जोरों पर है कि वो आरएसएस की पसंद है और उन्हीं की सहमति से उनका नाम चुना गया है। मुझे लगता है कि इसमें कोई बुराई नहीं है। भाजपा के सत्ता में आने के बाद देशभर में संघ प्रमुख मोहन भागवत द्वारा जो सांप्रदायिक सौहार्द का माहौल बनाने के साथ विरोध करने वालों को जोड़ने की कोशिश की जा रही है उसे ध्यान में रखकर सोचें तो 1925 में डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार द्वारा नागपुर में इसकी नींव रखी गई और आज देशभर में इसके कार्यकर्ताओं की काफी संख्या है तो इस बात का प्रतीक है कि हर महत्वपूर्ण मामले में संघ कार्यकर्ताओं की सहमति होती है। खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी साधारण प्रचारक से अपना जीवन शुरू कर प्रधानमंत्री के पद पर विराजमान है। ऐेसे में इस बात से कोई इनकार नहीं कर सकता कि आरएसएस की भागीदारी उपराष्ट्रपति का नाम चुनने में नहीं रही होगी क्योंकि अगर अकेले नरेंद्र मोदी द्वारा भी उनका नाम तय किया गया है तो कहीं ना कहीं उसमें संघ की सोच भी होगी। मुझे लगता है कि विपक्ष को अपने आप को मजबूत बनाने पर ध्यान देना चाहिए। संघ की सरकार में भागीदारी और दखल को लेकर चर्चा करना बेकार है जो विपक्षी दल नहीं कर रहे हैं। होना यह चाहिए कि भाजपा से पहले विपक्ष अपना उम्मीदवार घोषित करते और नामांकन कराकर उनके समर्थन में प्रचार किया जाता। लोकतंत्र में सबकुछ संभव है इसलिए कुछ भी हो सकता था।
(प्रस्तुतिः- रवि कुमार बिश्नोई संपादक दैनिक केसर खुशबू टाइम्स मेरठ)

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