धनतेरस के शुभ अवसर पर दस नवंबर को मनाए जाने वाले अष्टम आयुर्वेद दिवस की तैयारियां खबरों से पता चलता है कि सरकारी स्तर पर जोरशोर से जारी है। इस अवसर पर हर दिन आयुर्वेद की थीम पर कार्यक्रमों को सफल बनाने के लिए शिक्षा अधिकारी आयुर्वेद विभाग यूनानी अधिकारियों आदि द्वारा जनपदों में मुख्य विकास अधिकारियों की देखरेख में तैयारियां की जा रही हैं। अगर ध्यान से देखें तो जिस प्रकार से बीमारियां बढ़ रही है उसी प्रकार से अंग्रेजी दवाईयों से तुरंत फायदा होने के बाद भी भविष्य में उससे जो नुकसान की संभावना से बचने के लिए नागरिकों द्वारा अब आयुर्वेद की तरफ ज्यादा ध्यान दिया जा रहा है। इसकी दवा कंपनियां भी नए नए उत्पाद बाजार में ला रही है। पिछले वर्षों में सरकार द्वारा भी आर्युेवेद चिकित्सकों को महत्ता दिए जाने की खबरे पढ़ने को मिलती है। इसके बावजूद भी आयुर्वेद चिकित्सकों का रूझान अपनी चिकित्सा पद्धति की ओर बढ़ाने का जो होना चाहिए था शायद वो नहीं हो रहा है। बीते वर्ष उज्जैन में आयुर्वेद सम्मेलन हुआ था जिसमें कई प्रस्ताव पास हुए थे। दूसरी तरफ यूपी के मेरठ के आयुर्वेद चिकित्सक डॉ. गलेंद्र शर्मा का कहना है कि प्रोत्साहन भी मिल रहा है और नागरिकों का रूझान भी आयुर्वेद की तरफ बढ़ा है। अगर ऐसे ही चला तो बहुत जल्दी आयुर्वेदिक दवाई नागरिक अंग्रेजी दवाई के मुकाबले ज्यादा करने लगेंगे।
मेरा मानना है कि केंद्र सरकार जिस प्रकार से जेनेरिक दवाईयों की बिक्री बढ़ाने और इनके स्टोर खोलने के लिए नागरिकों को आर्थिक मदद देने के साथ साथ अन्य विषयों पर ध्यान दे रही है उसी प्रकार अगर आयुर्वेद के स्टोर व आयुर्वेद चिकित्सकों को आर्थिक लाभ देने के साथ ही सभी सुविधाएं उपलब्ध कराकर उन्हें हर माह वेतन या सहयोग राशि के रूप में एक अच्छी रकम डॉक्टरो के वेतन की तरह दी जाए तो आयुर्वेद चिकित्सा के क्षेत्र में बढ़ावा होगा और इसमें रूचि रखने वाले नौजवानों की संख्या बढ़ेगी क्योंकि जब सामाजिक स्टेटस और आर्थिक मजबूती मिलेगी तो ज्यादा से ज्यादा युवा इसमें सक्रिय होकर बढ़िया परिणाम देने की कोशिश करेंगे। मुझे लगता है कि भगवान धन्वंतरी के दिवस धनतेरस के मौके पर मनाया जाने वाले आयुर्वेद दिवस का सही मायनों में मकसद सबको प्राप्त होगा।
आयुर्वेद चिकित्सकों को सरकार दे सुविधा और तनख्वाह
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