गरीब और जरूरतमंद नागरिकों को नॉ प्रॉफिट नॉ लॉस के आधार पर घर और व्यवसाय के लिए दुकान प्लॉट उपलब्ध कराने के लिए बनाए गए विकास प्राधिकरण और आवास विकास के धीरे धीरे बिल्डर बनते जा रहे अफसरों ने एक पवित्र उददेश्य से बनाए गए प्रतिष्ठान को व्यवसायिक बनाकर रख दिया है। पिछले कई वर्षों से कोई नई कॉलोनी विकसित करने में असफल लेकिन अपने खर्चों में निरंतर बढ़ोत्तरी होने से ना रोक पाने वाले अधिकारी आजकल समय समय पर इस बात को लेकर खुश होते दिखाई देते हैं कि उनकी फलां कॉलोनी में फला प्लॉट हॉट प्रोपटी बना। निर्धारित कीमत से दोगुनी या तीन गुना कीमत पर बिका। अफसरों की इस खुशी में हमारे कुछ जनप्रतिनिधि भी शामिल होते नजर आते हैं और जनता भी सीएम का ध्यान इस ओर नहीं दिला पा रही है कारण कुछ भी हो। परिणामस्वरूप अपने क्षेत्र में सरकार की नीति लागू करने और उसका लाभ जनता तक पहुंचाने की बात भूलकर खुद और सहयोगियों को ज्यादा से ज्यादा सुविधाएं कर आम आदमी के हितों पर कुठाराघात करने में लगे एसी कमरों में बैठकर कहे अनकहे रूप में अपने उददेश्यों को भूल महंगे प्लॉट बेचने और लाभ कमाकर व अपने ऊपर ज्यादा से ज्यादा सुविधाएं प्राप्त करने में लगे इन विभागों के अधिकारी अब पूरी तौर पर बिल्डर क्यों बने नजर आ रहे हैं। मुख्यमंत्री जी मेरठ विकास प्राधिकरण के वीसी की देखरेख में बीते दिनों कुछ कॉलोनियों में मौजूद प्लॉटों की बिक्री की गई और अब विभाग के अधिकारी बड़े गर्व से बता रहे हैं कि तीन गुना कीमत पर बिका प्लॉट मगर जो पात्र व्यक्ति थे वो तो उन पैसे वालों के मुकाबले मुंह ताकते रह गए जो तीन गुना कीमत में खरीदकर छह गुना कीमत पर उसे बेचेंगे और ऐसे ही धीरे धीरे पात्र व्यक्तियों की आंखों से उन्हें घर की छत मिलने के सपने खिसकते चले जाएंगे। मेरा मानना है कि या तो सरकार प्राधिकरण और आवास विकासों आदि को कॉमर्शियल विभाग घोषित कर दे या फिर जिस उददेश्य से बनाया गया था वो ही लागू कराए। क्योंकि अब तो जितना दिखाई दे रहा है यह हो रहा है कि यह विभाग सरकार से भी आर्थिक सहायता लेने की फिराक में लगे रहते हैं और महंगी जमीनें बेचकर अपने बड़े खर्च पूरा करने में लगे है। अगर पात्रों को इनमें जमीनें नहीं मिलनी तो जिस प्रकार बाजार भाव में बिल्डर संपत्ति बेचता है उसी प्रकार से इनकी भी जमीनें बिकनी चाहिए। क्योंकि जिस प्लॉट को यह 19600 के स्थान पर 39000 कीमत पहुंचने की बात कर रहे हैं हो सकता है कि वहां इसकी कीमत 50 हजार से ज्यादा हो। कुल मिलाकर कहने का मतलब सिर्फ इतना है कि आम आदमी को घर काा आश्रय देने के लिए बने इस विभाग को कॉमर्शियल और इसके अधिकारियों को बिल्डर बनने से रोका जाए। जो संपत्तियां इनकी कॉलोनियों में है उन्हें पूर्व की भांति प्रथम आओ प्रथम पाओं के आधार पर नागरिकों को सरकार अपनी योजना के अनुसार उपलब्ध कराएं। यही वक्त की सबसे बड़ी मांग है तथा मुख्यमंत्री का सबको घर उपलब्ध कराने का सपना साकार होगा।
मुख्यमंत्री जी दें ध्यान! आवास विकास एवं प्राधिकरणों के अधिकारी क्यों बनते जा रहे हैं बिल्डर
Share.